बिहार

आज जो वादे किए जा रहे हैं उससे क्या आप अच्छे राष्ट्र के निर्माण की बात कर सकते हैं

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सेंट्रल डेस्क

संविधान निर्माताओं ने चुनाव का नियम लोकतंत्र की पवित्रता को बनाए रखने के लिए तैयार किया था।उनका मानना था कि यदि पांच साल में जनता अपने शासक से ऊब जाए तो नए और स्वच्छ छवि वालों और शिक्षित लोगों को चुनकर देश की श्रेष्ठ लोकसभा विधानसभा या पंचायत में भेज सकती है।जो उनकी समस्या सर्वोच्च पटल पर रखकर उससे निजात दिलाने में मदद करेंगे। बहुत दिनों तक उनकी इच्छाओं के अनुरूप देश में चुनाव होते भी रहे। स्वच्छ छवि के लोग चुनकर जनसेवा के लिए सर्वोच्च लोकसभा विधानसभा व पंचायत में पहुंचते भी रहे।लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसा लगने लगा है कि उम्मीदवार चाहे मवाली या गुंडा हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। बस उसके पास वैध या अवैध धन संपदा होना चाहिए! जिसके दम पर वह मतदाताओं को अपने पाले में खींचने में सक्षम हो जाता है। वह मतदाताओं को वोट के बदले नाना तरह के उपहार देने का प्रयास करते हैं या इस तरह भी कह सकते हैं कि उनकी बातों से आकर्षित होकर न चाहते हुए भी भोले भाले मतदाताओं को अयोग्य और दागी उम्मीदवारों को अपना मत दान करना पड़ता है।अब व्यक्तिगत रूप से किसी दल के उम्मीदवार की ही बात क्यों करें आज तो हर दल अपने मतदाताओं को कुछ इसी तरह का प्रलोभन देते हैं जिसे सुनकर संविधान निर्माता यदि जीवित होते तो उन्हें इन नेताओं के वादे से शर्मसार होना पड़ता।

अभी पांच राज्यों में जहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां कुछ तरह तरह से वादे किए जा रहे हैं कि अगर हमारी सरकार बनी यह देंगे वो देंगे।अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आज जो वादे किए जा रहे हैं उससे क्या आप अच्छे राष्ट्र के निर्माण की बात कर सकते हैं? यह तो रिश्वत देकर अपने पक्ष में मतदान कराने की बात हो गई! और यही अब तक होता रहा है।
अगर आजादी काल का उदाहरण दे तो पं.जवाहरलाल नेहरू,अल्लामा इक़बाल,डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद,लियाकत अली खान,डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, स्व.महात्मा गांधी,बेगम जहां आरा जैसी कुछ महान हस्तियों के नाम गिनाए जाएं तो उन्होंने आजादी के लिए सब कुछ त्यागकर जनहित में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करते रहना उचित समझा लेकिन आज की राजनीति में इस प्रकार के गुणियों की कमी महसूस की जा रही है।आजादी की लड़ाई में यदि ऐसे सपूत हमारे बीच नहीं होते तो हम आज भी अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए होते यह ठीक है कि हमारे गरम दल के योद्धाओं की कुर्बानियों को हम भुला नहीं सकते जिन्होंने हंसते हंसते फांसी के फंदों पर झूलना आजादी के उपलब्धि को सर्वश्रेष्ठ समझा। आज की राजनीति तो एक व्यवसाय है रोजगार का साधन है अब वह बात कहां रही जब राजनीति में स्वच्छ छवि के ही लोगों के लिए गुंजाइश थी और ऐसे लोग ही इसमें शामिल हुआ करते थे।