चुनावी मौसम में महिला वर्ग की हिस्सेदारी और रुझान निराश
Sunita kumari
देश में जहां एक तरफ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चल रहा है और लिंग समानता की मिसालें पेश की जा रही हैं।वहीं चुनावी मौसम में महिला वर्ग की हिस्सेदारी और रुझान निराश करने वाला है ।आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पांच राज्यों में आए दिन अलग अलग पार्टियां उम्मीदवारों की घोषणा कर रही हैं। प्रत्याशियों की सूची में पुरुष और महिलाओं का अनुपात चौंकाने वाला है।
विदित दिनों भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में उनसठ प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की उसमें सिर्फ छह महिलाओं को टिकट दिया गया है। जोकि संख्या का मात्र दस फीसद है।एक तरफ भाजपा नारी शक्ति और नारी सम्मान की बात करती है वहीं दूसरी तरफ यह अनुपात हैरान करने वाला है।इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा देती हैं पर उत्तराखंड में तिरपन उम्मीदवारों में सिर्फ पांच फीसद को ही चुनाव लड़ने योग्य माना गया है। हालांकि चुनाव के रण में पुरुषों के साथ साथ महिलाएं भी समान रूप से साझीदारी करती हैं।लेकिन पार्टियां पुरुषों के प्रति ज्यादा मेहरबान रहती हैं। अगर किसी सीट से महिला प्रत्याशी होती है तो यह कयास लगाया जाता है कि जीतने के बाद महिला सिर्फ पद पर दिखाई देगी बाकी सारे काम पुरुष ही करेंगे। महिला सीट पर पुरुष उन्हें मोहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं! पार्टियों का यह द्वैतवाद कहीं से भी अनुकरणीय नहीं है।