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साँच को आँच नहीं; विरोधाभाषी, अनर्गल और फर्जी बयानों से अपने ही दुष्चक्र में फँसा बोलबम कमिटी

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जयनगर(मधुबनी)एक कहावत है कि दूसरे के लिए षड्यंत्र रचने वाला कई बार अपने ही खोदे गए गड्ढ़े में गिरकर फँस जाता है। कुछ यही हुआ है जयनगर के कमला पुल के पास लगने वाले श्रावणी मेला हेतु बोलबम कमिटी के दुष्चक्र का। दरअसल हुआ यह है कि पिछले रविवार यानि 16 जुलाई को जयनगर में कमला नदी सेतु के पास जल भरने आए दरभंगा निवासी एक काँवड़िये की पानी में डूबने से मृत्यु हो गई और इस घटना के बाद एसडीआरएफ की टीम तैनात की गई और घटना के बाद नदी में कमिटी द्वारा घेराबंदी की गई।

घटना के बाद अस्पताल परिसर में पुलिस के सामने मीडिया वालों के समक्ष मृतक के नजदीकी/परिजन ने कमिटी की कुव्यवस्था की पोल खोली और सच्चाई बयान कर दी। जब वीडियो न्यूज में आया तो कमिटी के साथ ही दलाल पत्रकारों को दर्द होने लगा सच्चाई सामने आने पर। मृतक को जानने वाला एक लड़का(वह भी काँवड़िया वेश में है) का कमिटी की कुव्यवस्था पर बोलते हुए वीडियो सामने आया और वीडियो में स्पष्ट देखा जा सकता है कि उसके साथ पुलिस के लोग भी हैं।

यहीं से शुरू हुआ अफवाहबाज और दलाल पत्रकारों द्वारा कमिटी को भड़काने और उकसाने का खेल। लेकिन फर्जी मुद्दे को लेकर बोलबम कमिटी द्वारा कल शुक्रवार को किये गए फर्जी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो बातें निकलकर सामने आई, उससे कमिटी की पोल खुल गई है और कमिटी से जुड़े लोगों के बयानों में विरोधाभास स्पष्ट दिख रहा है।

जयनगर अनुमंडल अस्पताल में एक काँवड़िये कि मृत्यु के बाद उनको जानने वाले अन्य काँवड़िया द्वारा जो बोला गया, उसी को न्यूज में दिखाया गया है तो इसमें दिक्कत क्या है? सच दिखाने पर कमिटी से अधिक पेट में दर्द होने लगा फर्जी, दलाल, अधर्मी, विधर्मी और अफवाहबाज, कॉपी-पेस्ट करने वाले कथित/तथाकथित पत्रकारों को। ऐसे अफवाहबाज, विधर्मी पत्रकार लग गए कुचक्र रचने में और मेला कमिटी को भड़काने में। वीडियो में जो बोला जा रहा है, वही दिखाया गया है। दलाल पत्रकारों द्वारा कमिटी को यह कहा गया है वीडियो असली नहीं है यानि कम्प्यूटर से बनाया गया या कृत्रिम है और उसी को लेकर फर्जी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करवाया गया, जिसमें अपने ही रचे साजिश में बोलबम मेला कमिटी फँस गया और उसी के बयानों में विरोधाभास दिखता है। अब उकसाने वाले अधर्मी-विधर्मी दलाल पत्रकारों और मेला कमिटी को मुँह छुपाने के लिए जगह नहीं मिल रहा है।

यदि कमिटी को लगता है कि वीडियो मॉर्फ्ड/स्क्रिप्टेड/एडिटेड/इंजीनियर्ड है तो कमिटी वीडियो अपलोड करने वाले, न्यूज बनाने वालों पर केस दर्ज करें। लेकिन बोलबम कमिटी न तो केस दर्ज कर रही है और न ही वीडियो/न्यूज अपलोड करने वालों से वीडियो/न्यूज का स्रोत, मूल वीडियो मँगवा रही है और न ही न्यूज अपलोड करने वालों से उसकी सत्यता का प्रमाण पूछ रही है, न पक्ष ले रही है और केवल अफवाहबाज-दलाल पत्रकारों के उकसावे पर झूठा अफवाह फैला रही है। कमिटी को लगता है जिस किसी ने या जिस-जिस न्यूज पोर्टल इत्यादि ने वीडियो अपलोड किया है और जिस वीडियो पर उसे शक है, उस-उस पोर्टल पर या न्यूज भेजने वाले रिपोर्टर पर केस दर्ज करें। लेकिन कमिटी ऐसा कुछ नहीं कर रही है और न ही वीडियो की प्रमाणिकता पता लगा रही है केवल कुछ धूर्तों के चक्कर में अपने साजिशों में खुद ही उलझकर रह गई है और प्रमाण सहित सही न्यूज देने वालों के विरुद्ध भ्रामक प्रचार कर स्वयं भी अफवाह फैला रही है, दुष्प्रचार कर रही है।

जयनगर में कमला पुल के पास श्रावणी मेला उदघाटन के समय जयनगर एसडीओ, डीएसपी, थानाध्यक्ष इत्यादि ने पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था और मेला कमिटी ने भीड़ प्रबंधन को लेकर आवश्यक उपाय, नदी में खतरे के निशान इत्यादि पर बैरिकेडिंग, एसडीआरएफ इत्यादि की तैनाती की बात सार्वजनिक रूप से कही थी और यदि उस अनुरूप व्यवस्था में कमी थी और ऐसा मृतक काँवड़िये के साथी भी वीडियो में कह रहे हैं तो इस सच्चाई को न्यूज में आने से कमिटी बौखला क्यों गई है? जैसा वह लड़का बोल रहा है, वैसा ही वीडियो दिखाया गया है और कमी थी तभी तो काँवड़िये की मृत्यु हुई। ऐसा तो हुआ नहीं कि सारी व्यवस्था उचित थी और समुचित व्यवस्था देखकर काँवड़िये ने आत्महत्या कर ली। बोलबम कमिटी सच से भाग क्यों रही है?

यदि वीडियो स्क्रिप्टेड/एडिटेड या गलत था तो वीडियो विभिन्न न्यूज पोर्टल्स पर रविवार और सोमवार यानि 16 और 17 जुलाई को ही अपलोड हुआ था। तो क्या इतने दिनों तक वीडियो सही था और अचानक से वीडियो गलत हो गया? या बोलबम कमिटी की बुद्धि मन्द-मन्द गति से कार्य करने के कारण देर से समझ में आई वीडियो के गलत होने की बात? यदि बोलबम कमिटी के मन्दबुद्धियों को धीरे-धीरे ही सही, चार दिन लग गए समझने में कि वीडियो गलत है तो ठीक है, चार-पाँच दिनों बाद ही सही; यह वीडियो जहाँ-जहाँ अपलोड हुआ है उसके विरुद्ध केस दर्ज करे। बोलबम कमिटी केस दर्ज कराने की बजाय सोशल मीडिया में खुद ही विरोधाभासी बयान देकर खुद का ही उपहास कर रही है। आयोजन के समय कमिटी बड़े-बड़े दावे करती है, ठीक है यदि कुछ कमी भी रह गई तो किसी ने कमी दिखा दिया तो कमी को सुधारो, बौखलाते क्यों हो और बौखलाहट में अपनी ही छीछालेदर क्यों करते-करवाते हो?

कल शुक्रवार को बोलबम कमिटी द्वारा हुए कथित/तथाकथित प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोला जा रहा है कि जिस समय काँवड़िये की पानी में डूबने से मृत्यु हुई उस समय बैरिकेडिंग नहीं था। यही बात वीडियो में है तो बौखलाते क्यों हो? बैरिकेडिंग नहीं था घटना के समय, यह तो कमिटी ने स्वयं ही स्वीकार कर लिया कि कमियां थी वहाँ तैयारियों में। फिर कमिटी के एक सदस्य कह रहा है कि बैरिकेडिंग एक दिन पहले यानि शनिवार 15 जुलाई को लगाया गया था और पानी में टूट/डूब/बह गया। फिर डूबने के सम्बन्ध में बचाव के लिए कहता है कि पानी 3 फीट ही था तो 3 फीट पानी में डूब कैसे गया या इतने कम पानी में बैरिकेडिंग जलधारा में बह कैसे गया? कमिटी के फर्जी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सभी बयानों को मिलाने से उसकी गलती भी सामने आती है और गलती से बचाव में वो विरोधाभासी बयानबाजी करते दिखते हैं। अभी भी समय है, वीडियो गलत लग रहा है तो फोरेंसिक जाँच करवा लो, जहाँ-जहाँ अपलोड हुआ है वहाँ केस दर्ज करो। कमिटी ये सब न करके फर्जी, दलाल, अफवाहबाज पत्रकारों के बहकावे में आकर खुद ही फजीहत करवा ली।

श्रावणी मेला को लेकर बोलबम कमिटी बनाई गई है। सावन माह सनातन हिन्दू धर्म में पवित्र महीना होता है तो इस धार्मिक मेले में कमिटी द्वारा धर्म का कितना ध्यान रखा जाता है, कितना ख्याल किया जाता है? कमिटी के सदस्य धार्मिक होते तो दलाल पत्रकार दल्ली के बहकावे और उकसावे में आकर मीडिया जिहाद के ट्रैप में नहीं फँसते। अफवाहबाज कथित/तथाकथित पत्रकार दल्ली ने सनातन परंपरा के श्रावणी मेला कमिटी को उकसाकर कमिटी का छीछालेदर किया और अपने मीडिया जिहाद के उद्देश्य में सफल रहा। बोलबम कमिटी द्वारा मीडिया संयोजन के लिए मीडिया प्रभारी नियुक्त किया गया है तो मीडिया प्रभारियों ने जहाँ उसे लगा कि फलां-फलां जगह उसके अनुसार गलत वीडियो समाचार लगा है तो स्पष्टीकरण क्यों नहीं माँगा, नोटिस क्यों नहीं भेजा उन सभी मीडिया पोर्टल्स को जहाँ यह वीडियो अपलोड हुआ? मीडिया प्रभारियों की ओर से सही और असली, मान्यताप्राप्त पत्रकारों को ससमय सूचना क्यों नहीं भेजी गई कार्यक्रमों, आयोजनों, प्रेस कांफ्रेंस इत्यादि को लेकर? कई ऐसे प्रश्न है जिसमें बोलबम कमिटी के सदस्य उत्तर देने में अक्षम हैं। मीडिया में यदि मेला कमिटी का पक्ष सही से नहीं जा रहा है, नहीं आ रहा है तो मीडिया प्रभारियों ने प्रयास नहीं किया, प्रयास क्यों नहीं करते समन्वय का? मेला एक धार्मिक आयोजन है तो प्रश्न है कि कमिटी से जुड़े लोग कितने धार्मिक है? कोई पत्रकारिता की आड़ में सरकारी कार्यालयों की गोपनीयता भंग कर रहा है तो कोई वर्षों से सरकारी आवास पर अवैध कब्जा जमाए बैठा है तो किसी का इस्लामपुर में अवैध संबंध के कारण पिटाई हो चुकी है। एक मीडिया जिहादी के ट्रैप में आकर सनातनी हिन्दू मेला कमिटी ने अपना, अपने कमिटी का ‘नाटक’ बना लिया। किसी ने कह दिया कि वीडियो कम्प्यूटर से बनाया गया है तो बौखला गया। जो वीडियो में व्यक्ति कह रहा है वही दिखाया गया है।

कल शाम जयनगर थानाध्यक्ष ने किसी व्हाट्सएप्प ग्रुप में ऐसे अफवाहबाजों, अफवाह’बहादुरों’ के विरुद्ध लिखा है कि किसी भी समाचार में सम्बंधित सभी पक्षों की राय शामिल की जाय, प्रशासन का पक्ष भी शामिल किया जाय और किसी न्यूज इत्यादि का प्रमाण चाहिए तो वीडियो, फोटो, डॉक्यूमेंट की पुष्टि कर लिया जाय। उसी अनुरूप न्यूज प्रकाशित/प्रसारित होना चाहिए। अन्यथा विधिक कार्रवाई होगी।

अब स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि इस मामले में किसी के बहकावे-उकसावे में आकर बोलबम सेवा समिति/कमिटी द्वारा सोशल मीडिया पर जो निराधार वीडियो-फोटो-न्यूज प्रकाशित-प्रसारित हुआ है/करवाया गया है इस मामले में मेला कमिटी के सम्बन्धित अफवाहबाजों, मेला कमिटी के मीडिया प्रभारियों, मेला कमिटी को उकसाने वाले लोगों का पता लगाकर ऐसे लोगों पर सार्वजनिक शांति भंग करने, गलत समाचार प्रकाशित-प्रसारित करवाकर माहौल खराब करने के मामले में सम्बंधित धाराओं में केस दर्ज कर कार्रवाई करना चाहिए।