राजनगर के काली मंदिर के साथ भेदभाव क्यों
राजनगर (मधुबनी )बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड में पंजीकृत मंदिरों की संख्या करीब पांच हजार है!ये मठो, ट्रस्टो के तहत संचालित होते है।राज्य में गांवो और टोलो की संख्या 30 हजार से अधिक है!शायद ही ऐसा कोई गाँव है, जहाँ प्राचीन मंदिर न हो।इनमें हजारों मंदिर तो राजा -रजवाडो के बनवाये हुए है।इनमें ज्यादातर नागर शैली के है और वे सामंती खंडहर में तब्दील होते जा रहें है!
राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड भी सिर्फ उन्ही मंदिरों कों नियंत्रण में लेकिन रहा है, जिनकी आमदनी ठीक -ठाक है।इसका अच्छा उदाहरण दरभंगा राज परिसर का श्यामा मंदिर और राजनगर राज पैलेस स्थित माँ काली मंदिर है।दरभंगा श्यामा मंदिर की आमदनी सालाना 15 लाख है तो उसे बोर्ड ने अपने अधीन कर लिया!लेकिन राजनगर का माँ काली मंदिर ढहने के कगार पर है तो उसे बोर्ड ने अपने अधीन नहीं लिया आखिर क्यों।
बिहार धार्मिक बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष किशोर कुणाल ने कहाँ था की राज्य में दस हजार से अधिक राम जानकी, कबीर और शिव मंदिर है!लेकिन जमींदारों ने जों मंदिर बनवाये उनमें ज्यादातर की स्थिति ख़राब है!राज्य सरकार ने क़ानून में संशोधन कर यह प्रावधान किया है की जहाँ चढ़ावा और दान चढ़ता है, उन मंदिरों कों धार्मिक न्यास बोर्ड उनके विकास और राज भोग की व्यवस्था के लिए अपने अधीन कर सकता है!बोर्ड ने अब तक 21ऐसे मंदिरों कों अपने नियंत्रण में ले लिया है!फिलहाल कई ऐसे मंदिरों कों भी बोर्ड ने अपने नियंत्रण में लेने की योजना बना रखा ह।
जों भी हो यह तो जनता कों बेवकूफ़ बनाने की बात हो गई!क्योंकि जिस मंदिर में आमदनी है, उसे बोर्ड ने अपने अधीन कर लिया है!लेकिन जिस मंदिर में आमदनी का जरिया नहीं है, उसे बोर्ड ने अपने नियंत्रण से हटा दिया है!लगता है की इसमें भी पैसा उगाही की नीति कही न कही शामिल है!नहीं तो फिर राजनगर माँ काली मंदिर के साथ ऐसा भेदभाव क्यों? सभी लोग सोचे विचारे और इसका विरोध करें!तभी राजनगर के माँ काली मंदिर का कल्याण हो सकता है।वर्ना टाय -टाय फिस्स होकर रह जायेगा।