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सत्ता का हस्तांतरण न करना विपक्ष के कमजोर होने का कारण है

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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इसे आप विपक्ष की हार का समीक्षा कहें या मन की भड़ास पर सच्चाई से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता। तो आइए आज हम देश की राजनीति में विपक्ष के पतन होने पर चर्चा करते हैं।

आम तौर पर जब कोई चुनाव हारता है तो लोग कुल मिलाकर आम जनता को ही दोषी मान लेते हैं पर हर बार जनता को दोषी मानना श्रेयस्कर नहीं होता है,बार बार विपक्ष पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगते रहता है पर ऐसा नहीं है कभी कभी अपनी नियत और नीति में भी बदलाव लाने की जरूरत होती। भारत की आजादी मिलने के बाद देश को एक संविधान मिला जिसमें देश की आम आवाम को चार वर्गों में बांटा गया जो मुख्यत सामान्यवर्ग,ओ.बी.सी,अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा अन्य लेकिन अधिक दिनों तक सामान्य वर्गों का शासन रहा बीच बीच में कभी कभार अनुसूचित जाति के लोग भी कहीं कहीं सत्ता में आई लेकिन सत्ता का हस्तांतरण हमेशा से होते रहा इसी प्रक्रिया की वजह से सत्ता ओ.बी.सी वर्ग के हाथों में आ गई लेकिन यहां पर आकर सत्ता की हस्तांतरण थम सी गई ऐसा लगा मानो सत्ता स्थाई हो गई हो।

शायद यही वजह है की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का बहुत बड़ा हिस्सा इससे वंचित रह गई मतलब ये समाज अपने आप को राजनीतिक रूप से उपेक्षित समझने लगी और जब ऐसा हुआ तब ये लोग अपनी अपनी अलग राजनीतिक भूमि तलासने में लग गई। ओ.बी.सी समाज में भी जो छोटी छोटी टुकड़ी थी उसे भी लगा की हम लोग राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं तो वो लोग भी अपनी अपनी अलग अलग राजनीतिक जमीन तलासने में लग गई उदाहरण के लिए बिहार को ही ले लीजिए यहां लगभग पिछले चालीस वर्षों से अतिपिछड़ों की सरकार है लेकिन इतने दिनों में सबको अवसर नहीं मिला। अब सवाल यह उठता है की क्या अतिपिछड़ा में दो तीन जाति के अलावा किसी भी जाति समुदाय में योग्यता नहीं है या ये लोग सत्ता छोड़ना ही नहीं चाहते हैं? अब यदि बिहार की राजनीतिक दल में मुख्यरूप से देखा जाए तो राष्ट्रीय जनता दल में जिन यादवों को सम्मान नहीं मिला या उपेक्षित रखा गया वो लोग अपनी अपनी अलग पहचान बनाने में लग गए या जिनको जहां सम्मान मिला वो वहां शिफ्ट हो गए और कुछ लोग राजनीतिक रूप से उपेक्षित किया गया वो राजनीतिक रूप से शोषण का शिकार हो गए। जनता दल यूनाइटेड में भी वही बात हुई एक दो जाति को छोड़कर या उसमें भी जो तेज तर्रार थे अथवा जिनको लगा हम यहां महफूज़ नहीं हैं वो लोग सम्मान की तलास में इधर उधर भटकने लगा। लोक जनशक्ति पार्टी में भी वही हाल था चाहे स्व.राम विलास पासवान जी थे या आज उनके भाई भतीजा,बेटे ये लोग भी अपने परिवार से ऊपर नहीं उठ सके या अपने परिवार के अलावा किसी को भी ऊपर उठने नहीं दिए।

भारतीय जनता पार्टी ने इन उपेक्षित लोगों को अपने पार्टी में सम्मान देना शुरू कर दिया और शायद इसीलिए आज सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आ चुकी है। अंग्रेजी में एक पुरानी कहावत है, “गिव रिस्पेक्ट,टेक रिस्पेक्ट” मतलब सम्मान पाने के लिए पहले सम्मान देना परता है। आज आपने जिन्हें सम्मान नहीं दिया वो किसी के घर मेहमान बना हुआ है। बहुत शोध करने के बाद हम आज इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं की अब चाहे कांग्रेस पार्टी हो या अन्य विपक्षी पार्टी हो उन लोगों को अपनी अपनी पार्टी की नीति में बदलाव करना चाहिए। वो लोग जो भूले भटके हुए हैं या रूठे हुए हैं उनको मनाकर घर वापसी करने की जरूरत है नहीं तो विपक्ष कभी भी मजबूत नहीं हो सकती है। आज भले ही भारतीय जनता पार्टी सबका विकास करती है या नहीं पर,“सबका साथ,सबका विकास” का नारा जरूर देती रहती है। मैं ना तो मायावती जी को दोषी मानता हूं और न ही अन्य किसी भी नेता को दोषी मानता हूं क्योंकि सबको सत्ता में भागीदारी मिलनी ही चाहिए। आज देश मंहगाई,बेरोजगारी और बेकारी से त्रस्त है फिर भी लोग कसाई के निकट ही रहना पसंद कर रहा है। हमारे देश में बलि प्रथा है,“जो बधिक होते हैं वो बलि देने से पहले बकड़े को अच्छे से खिला पिला देता है और बलि देते वक्त थोड़ा सा चावल और बतासा उसे दिखाकर नीचे रख देता है ताकि वो ज्यों ही चावल खाने के लिए गर्दन नीचे झुकाता है बस बधिक उसके सर को धर से अलग कर देता है जबकि बकरे का अंतर्मन कहता है की आज हम कटने वाले हैं फिर भी वो थोड़े से चावल और बतासे के लालच में आकर कसाई की बात मानने लगता है क्योंकि कटने से पहले उसे फूलों का हार पहनाकर सम्मानित किया जाता है। आज हमारे देश और समाज के लोग भी उसी कसाई का शिकार हो चुका है पर क्या करें दूसरों में दोष निकालने की आदत जो पड़ गई है। हम लोग यहां एक दूसरे में नुक्स निकालने में लगे हैं और वो वहां अपने लक्ष्य पर फोकस करके सत्ता कायम कर रहा है।

हम लोग यहां कौन बनेगा पी.एम? कौन बनेगा सी.एम की जद्दोजहद में समय गंवा रहे हैं और वो उधर सिर्फ जीत को अपना लक्ष्य मानकर सत्ता कायम कर रहा है। पता है एक हिरण की रफ्तार 190 किलोमीटर प्रति घंटा है और एक चीते की रफ्तार मात्र 160 किलोमीटर प्रति घंटा मतलब हिरण चीते से 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज्यादा भागती है फिर भी हिरण चीते का शिकार हो जाति है जानते हैं ऐसा क्यों होता है? क्योंकि हिरण को हमेशा डर लगा रहता है पकड़े जाने का इसीलिए वह हमेशा पीछे मुड़ मुड़कर देखते रहता है जबकि चीते का लक्ष्य हमेशा शिकार पर रहता है। सफलता प्राप्त करना है तो हमेशा चीते की तरह सोचना परेगा तभी आप सफल हो सकते हैं।

यह राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषण वर्तमान परिदृश्य को देखकर किया गया है। विपक्ष को धार देखकर पतवार बदल लेना चाहिए।