बच्चो का बचपन मोबाईल खेल टीवी और मोबाइल गेम में सिमटता
बचपन हर चिंता और फिक्र से मुक्त होता है बच्चों के बीच जाति धर्म और नस्ल की कोई दीवार नहीं होती है! बच्चे उन्मुक्त होकर खेलते रहना चाहते हैं ।लेकिन आज बच्चों के खेलने का मैदान विलुप्त होता जा रहा है । आजकल हर जगह निजी स्कूल भरे हुए हैं लेकिन शायद ही किसी विद्यालय के पास खेल का मैदान है! खेलने की जगह पर आज बड़ी बड़ी इमारतें बन गई हैं ।बच्चों का परंपरागत खेल क्रिकेट फुटबाल लुका छिपी कबड्डी पतंगबाजी आदि बंद हो गए है! आजकल माता पिता भी यहीं चाहते हैं कि बच्चे अधिकांश समय शांतिपूर्वक घर मे रहें!बच्चों का बचपन आज घर के अंदर के खेल टीवी और मोबाइल में सिमटता जा रहा है।
इससे बच्चों का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो रहा है! बच्चों में अकेले रहने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।वीडियो गेम और टीवी की लत से बच्चों में नकारात्मक भावना बढ़ती है हिंसात्मक टीवी गेम देखने से छोटे-छोटे बच्चे भी आज स्कूल में अपराध कर बैठते हैं।बच्चों का बचपन मोबाइल और टीवी में सिमट कर रह गया है, हमें बच्चों का बचपन बचाना होगा बच्चों के लिए समाज और सरकार को खेल का मैदान उपलब्ध कराना चाहिए बच्चे ही देश का भविष्य है।भविष्य की रक्षा करना उन्हें संवारना हर नागरिक का धर्म है।