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गुजरात स्पष्ट जनादेश की ओर बढ़ता

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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प्रदीप कुमार नायक की रिपोर्ट

आठ दिसंबर की तारीख पर सारे देश की निगाहें लगी हुई हैं, क्योंकि उसी दिन गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आने वाले हैं। हालांकि गुजरात विधानसभा को लेकर सारे विपक्षी दल जो भी दावा करें, यहां की जनता का भरोसा स्पष्ट रूप से भाजपा पर ही कायम दिख रहा है। मोरबी जैसी बड़ी दुर्घटना के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन होता नहीं दिखा। वैसे भी ऐसी किसी बड़ी दुर्घटना से भारत में चुनावों का रुख परिवर्तन नहीं होता रहा है। पांच दिसंबर की शाम को आए एग्जिट पोल के नतीजे भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। गुजरात में 27 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा रिकॉर्ड 7 वीं बार सरकार बनाती दिख रही है। तीन एग्जिट पोल के मुताबिक भाजपा को गुजरात में 117 से 150 सीटें मिलने का दावा किया जा रहा है। जबकि कांग्रेस को एक बार फिर जबरदस्त झटका लगने का अनुमान है। कांग्रेस को तीन सर्वे में 30 से 51 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। वहीं आम आदमी पार्टी अपने दावों के विपरीत प्रदर्शन करती नजर आ रही है। यहां पार्टी 3 से 13 सीट के साथ खाता खोलती नजर आ रही है। इस तरह भाजपा 2017 के विधानसभा चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करती नजर आ रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जहां मात्र 99 सीटें मिली थीं। वहीं कांग्रेस को 77 सीटें हासिल हुई थी। जबकि आम आदमी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था।
विधानसभा चुनाव में मोरबी की घटना को लेकर गुजरात में हर कोई कह रहा था कि जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन झूले वाले पुल की मरम्मत करने वाली कंपनी के प्रमुख जयसुख भाई पटेल को सजा देने की मांग मुश्किल से ही सुनाई दे रही थी। इसकी एक वजह यह रही कि जयसुख पटेल प्रभावशाली पाटीदार समाज से आते हैं और इस समाज को कोई भी दल नाराज करने का साहस नहीं दिखाना चाहता था। फिर पाटीदार समाज किस तरह भाजपा के साथ जुड़ा हुआ है, इसका अनुमान इससे भी लग जाता है कि पाटीदार आंदोलन समिति के खुले विरोध के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता हासिल करने में कामयाब रही थी।
यही वजह रही कि पाटीदार आंदोलन का चेहरा बनकर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बनने में सफलता प्राप्त करने वाले हार्दिक पटेल को भी यह बात भली भांति समझ में आ गया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही सही मायने में गुजरात और देश का विकास कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी पर बेतुकी टिप्पणियां करके चर्चित हुए अल्पेश ठाकोर तो हार्दिक पटेल के पहले ही भाजपा के साथ आ चुके थे। यह अलग बात है कि उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
पिछले विधानसभा चुनाव के समय जब राहुल गांधी गुजरात में भाजपा को चुनौती दे रहे थे तो यही दोनों चेहरे थे, जिनके जोर से कांग्रेस के सत्ता में आने की उम्मीद बंध गई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर के बनाए माहौल पर जो मेहनत की, उसका लाभ कांग्रेस को मिला और कांग्रेस पार्टी को 77 सीटें मिलीं। तब भाजपा विधानसभा में सीटों का शतक लगाने से चूक गई थी। यह अलग बात है कि 2017 से 2022 आते अब तक 18 विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा। इन्होंने भाजपा में शामिल होकर और चुनाव जीतकर उसके विधायकों की संख्या 111 कर दी।
गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार जहां अरविंद केजरीवाल पूरी ताकत झोंक दी थी, तो वहीं राहुल गांधी गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार से दूर रहकर भारत जोड़ो यात्रा में ही व्यस्त दिखे। इससे गुजरात में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का माहौल बनता अवश्य दिखाई पड़ा था और इसकी वजह से ही कांग्रेसी भी कहने लगे थे कि आम आदमी पार्टी इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी। इतनी ही नहीं कांग्रेसियों के साथ भाजपा नेता भी यह मानने लगे थे कि आम आदमी पार्टी अगले चुनाव में कुछ अच्छा कर सकती है।
यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार देने के अरविंद केजरीवाल के निर्णय ने गुजरात में आम आदमी पार्टी के माहौल को खराब कर दिया। पत्रकार से नेता बने इसुदान गढ़वी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने पर गोपाल इटालिया की नाराजगी भले ही सामने नहीं आई हो, लेकिन आम आदमी पार्टी के तीसरे सबसे बड़े चेहरे इंद्रनील राज्यगुरु केजरीवाल का साथ छोड़कर फिर कांग्रेस में चले गए। इंद्रनील पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के खिलाफ लड़े थे और सबसे अमीर प्रत्याशी थे। फिर दिल्ली और पंजाब की खबरों ने भी गुजरात में आम आदमी पार्टी का माहौल खराब किया। दीपावली को देखते हुए जब दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था, तब अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट पर कई बच्चे पटाखे चला रहे थे।
वास्तव में दिल्ली से देश के दूसरे राज्यों का राजनीतिक चित्र कभी स्पष्ट नहीं दिखता। दिल्ली से दिखने वाला राज्यों का राजनीतिक चित्र असल चित्र का आवरण होता है। इस विधानसभा चुनाव पर गौर करने के बाद एक बात समझ में आई कि मोदी और भाजपा विरोधी मतों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सेंधमारी करने में सफल रही है। चूंकि गुजरात देश के दूसरे राज्यों जैसा नहीं है, इसलिए अरविंद केजरीवाल की शैली वाली राजनीति यहां उस तरह प्रभावी नहीं दिखती, जैसी दिल्ली या फिर बाद में पंजाब में दिखी।
दूसरी ओर गुजरात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लोगों को अगाध विश्वास है। गुजरातियों को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी की वजह से उनके राज्य की प्रतिष्ठा बढ़ी है। देश के विकास में गुजरात माडल का योगदान भी उन्हें गौरवान्वित करता है। यही वजह है कि कई तरह की समस्याओं के बीच जब कोई भी सवाल करता था कि इस बार भाजपा आएगी या नहीं तो जवाब एक ही उत्तर आता था कि ‘आएगा तो मोदी ही।’ मोदी ने पहले मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री रहते गुजरात की विकास यात्रा को लगातार गति दी है।
वर्तमान में गुजरातियों के लिए गांधी, पटेल के बाद मोदी ही ‘गर्वी गुजरात’ के चेहरे के तौर पर दिखते हैं। नर्मदा नदी पर बांध बनाने और उसका जल गुजरात लाने के लिए मोदी के प्रयासों को गुजरात की जनता भगीरथ प्रयास के तौर पर ही देखती है। टाटा की नैनो का गुजरात आना हो या फिर फाक्सकान-वेदांत की सेमीकंडक्टर यूनिट का, गुजरातियों को लगता है कि मोदी की वजह से गुजरात में ऐसा माहौल तैयार हुआ है कि उनके मुख्यमंत्री न रहने पर भी देश-दुनिया की हर कंपनी को निवेश के लिए सबसे सुरक्षित प्रदेश गुजरात ही दिखता है। ब्रांड मोदी पर गुजरातियों का भरोसा इतना बना हुआ है और कांग्रेस के सुषुप्तावस्था में होने से अरविंद केजरीवाल का बनाया माहौल भी भाजपा के लिए स्थितियां कुछ बेहतर किया है। ऐसी स्थिति में भाजपा 8 दिसंबर को गुजरात में सबसे बड़ी जीत हासिल कर ले तो कोई हैरत की बात नहीं होगी।