देश में 13-14 अक्टूबर को मनाया जाएगा करवा चौथ
सेंट्रल डेस्क
करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के जम्मू,बिहार,हिमाचल प्रदेश,पंजाब,उत्तर प्रदेश,हरियाणा,मध्यप्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सुहागिन स्त्रियाँ मनाती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।इस वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 13 अक्तूबर को रात 01 बजकर 59 मिनट से शुरू हो जाएगी, जो 14 अक्तूबर को रात 03 बजकर 08 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
करवा चौथ के मौके पर सोलह श्रृंगार करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन महिलाएं दुल्हन की तरह सजती हैं और अपने पिया की लंबी उम्र और उनके स्वास्थ्य के लिए कामना करती है।
मांगटिका,बिंदी,काजल,नथिया,झुमका,मंगलसूत्र,बाजूबंद,मेहँदी,चूड़ियां,अर्सी यानी की थम्ब रिंग,कमरबंद या करधनी,पायल,बिछिया,इत्र तथा बालों में गजरा आदि ये सोलह श्रृंगार अपने पति की लम्बी तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती है।
करवा चौथ पर छलनी से पति को देखना एक पौराणिक कथा है।कथा के अनुसार पतिव्रता वीरवती के सात भाई थे।जब वीरवती का विवाह हुआ तो उसने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। चूंकि उसने व्रत निर्जला रखा था इसलिए उसकी तबियत बिगड़ने लगी।भाइयों से उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी।एक भाई से यह बिल्कुल बर्दाश्त ना हुआ और वो पेड़ पर एक छननी में दीपक रखकर बैठ गया। जब वीरवती ने छननी में जलते हुए दीपक को देखा तो वो उसे चंद्रमा समझ बैठी और व्रत खोल लिया। उसकी एक छोटी सी भूल से उसके पति का निधन हो गया।वीरवती को जब इस सच्चाई का पता चला तो वो बहुत दुखी हुई और पति के मृत शरीर को अपने पास रखकर आंसू बहाने लगी। सालभर बाद जब करवा चौथ का दिन आया तो वीरवती ने एक बार फिर पूरे विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत रखा। उसने बिल्कुल सुहागिन महिला की तरह व्रत के नियमों का पालन किया। इससे करवा देवी प्रसन्न हो गईं और वीरवति के मृत पति को फिर से जीवित कर दिया। कहते हैं कि तभी से करवा चौथ के दिन पति को छननी से देखने की परंपरा चली आ रही है।