जिस परिवार में बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता उस परिवार में सुख संतुष्टि और स्वाभिमान नहीं आ सकता
हम सब कुछ बदल सकते हैं लेकिन पूर्वज नहीं, हम उन्हें छोड़कर इतिहास बोध से कट जाते हैं और इतिहास बोध से कटे समाज जड़ों से टूटे पेड़ जैसे सूख जाते हैं। जिस परिवार में बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता उस परिवार में सुख संतुष्टि और स्वाभिमान नहीं आ सकता।हमारे बड़े बुज़ुर्ग हमारा स्वाभिमान हैं हमारी धरोहर हैं उन्हें सहेजने की जरूरत है ।
यदि हम परिवार में स्थायी सुख शांति और समृध्दि चाहते हैं तो परिवार में बुजुर्गों का सम्मान करें। आज हमारे समाज में हमारे ही बुजुर्ग एकाकी रहने को विवश हैं उनके साथ उनके अपने बच्चे नहीं हैं। गावों में तो स्थिति फिर भी थोड़ी ठीक है लेकिन शहरों में तो स्थिति बिलकुल भी विपरीत है।ज्यादातर बुजुर्ग घर में अकेले ही रहते हैं और जिनके बच्चे उनके साथ हैं वो भी अपने अपने कामों में इस हद तक व्यस्त हैं की उनके पास अपने माता -पिता से बात करने के लिए समय ही नहीं है। युवाओं को भी समय प्रबंधन थोड़ा ठीक करना होगा और अपने बुजुर्गों को सम्मान देना होगा। आखिर वो आज जो कुछ भी हैं अपने बुजुर्गों के कारण ही हैं।
साथ ही बुजुर्गों को भी आज की समय और परिस्थितियों को देखते हुए बच्चों के विषय में सकारात्मक रुख अपनाना होगा ।
अंत में मैं यही कहूँगा की हमें एक स्वस्थ और मजबूत समाज की रचना के लिए अपने बुजुर्गों के मार्गदर्शन और युवाओं के जोश की आवश्यकता है न की एक दुसरे को तिरस्कृत कर टूटे हुए समाज की।