संस्कृति

होली खेले रघुबीरा अवध में होले खेले रघुबीरा और आज बिरज में होरी रे रसिय

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
Listen to this article

 

कौन सा त्यौहार लोगों और समाज के बीच आपसी सद्भाव के संदेश नहीं देता हो।

त्यौहारों पर शहर ही नहीं गांव का युवा वर्ग भी अब वाट्सऐप और यूट्यूब पर मशगूल।

औपचारिकता निभाने के लिए लोग होली में गले तो मिलते।

 

होली में जीवन का राग समाहित है अब तक होली को हम जैसा भी देखते रहे हों लेकिन अब होली उदास है। उमंग और उत्साह गायब है।शायद इसे नए जमाने की नजर लग गई! नए जमाने मतलब नई सोच और नई जीवन शैली जब जीवन शैली बदल जाती है तो पर्व त्योहारों के मानने के तौर तरीके भी बदल जाते हैं। हालांकि सिर्फ होली की बात नहीं है बल्कि हर पर्व त्योहार के साथ भी कमोबेश ऐसा ही है।लेकिन अब होली को शहरीपन की नजर लग गई अब होली खेले रघुबीरा अवध में होले खेले रघुबीरा और आज बिरज में होरी रे रसिय जैसे कर्णप्रिय होली गीत सुनाई नहीं देते।अब इन पारंपरिक गीतों की जगह भौंडे और अश्लील गानों ने अपना स्थान बना लिया है होली के महीने भर पहले से ही तिपहिया और बसों में होली के नाम पर ऊंची आवाज में अश्लील गाने बजने शुरू हो जाते हैं ।

इससे महिलाओं के लिए कहीं आना-जाना भी मुश्किल हो जाता है । होली के दिन भी अलग अलग टोलों में लोग ताश के पत्ते फेंटते दिखते हैं पूरे गांव की होली पहले टोलों फिर परिवार और अब पति पत्नी और बच्चे तक सिमट कर रह गई है । शरारती युवाओं की टोली अब जल्दी चिढ़ने वाले किसी बुजुर्ग को खोज कर उन्हें गहरे रंगों से सराबोर नहीं करती उनके गुस्से को हंसी ठहाकों में तब्दील नहीं करते शहर ही नहीं गांव का युवा वर्ग भी अब वाट्सऐप और यूट्यूब पर मशगूल है। बुजुर्ग अब बेकार की वस्तु बन गए।