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नमो के चरणागत हुए नीती अब क्‍या चाहिए भाजपा को

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भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष सम्राट चौधरी अपने माथे की पगड़ी नहीं उतारी है, इससे पहले जदयू के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चरणों में अपनी पगड़ी रख दी। इससे बड़ी जीत भाजपा की क्‍या होगी। चार हजार से अधिक सांसदों वाली जीत से बड़ा भाजपा को और क्‍या चाहिए। भाजपा नीतीश को झुकाने की कवायद में सफल हो गयी थी, लेकिन मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार तो चरणों में लोट गये।

भाजपा के सभा मंच पर नीतीश ने भाषण दिया। श्रेय की होड़ में ऐसे उलझे कि सैकड़ों और हजार का अंतर भूल गये। माईक से वापस आकर अपनी सीट पर बैठते ही प्रधानमंत्री पर न्‍योछावर हो गये। मुख्‍यमंत्री ने बात-बात में प्रधानमंत्री के चरण स्‍पर्श को हाथ बढ़ा दिया, लेकिन यह नरेंद्र मोदी की महानता थी कि उन्‍होंने चरण की ओर बढ़े हाथ को झटक दिया और मुख्‍यमंत्री की हड़बड़ी बिहार की गरिमा के खिलाफ थी, बिहार के 13 करोड़ जनता का अमपान था। चुनाव के बाद कुर्सी गंवाने से भयभीत नीतीश कुमार चरणागत होकर अभयदान चाहते हैं।द

 

रअसल मुख्‍यमंत्री कुछ चौधरियों के दलदल में ऐसे उलझ गये हैं कि अपनी चौधराहट भूल गये हैं। मुख्‍यमंत्री हैं, इसकी गरिमा का भी ख्‍याल नहीं रख रहे हैं। राजद से नाता तोड़ने के लिए सबसे ज्‍यादा मानसिक दबाव संजय झा और अशोक चौधरी ने बनाया था। एक कायस्‍थ सेवानिवृत अधिकारी भी शामिल थे। इसमें संजय झा ने बिना चुनाव लड़े संसद की राह पकड़ ली और अशोक चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी चौधरी (किशोर कुणाल की पुत्रवधु) को लोजपा का टिकट दिलवाकर लोकसभा की राह पकड़ा दी है। और अब नीतीश चरण पकड़ते फिर रहे हैं।

नीतीश कुमार कुछ सवर्ण नौकरशाहों और नेताओं के जाल में ऐसे उलझ गये हैं कि उससे निकलना संभव नहीं है। इसलिए हर बार जदयू का सवर्ण लॉबी नीतीश कुमार को भाजपा के दरवाजे पर धकेल देता है और भाजपा के कंधे पर आगे की राह पकड़ लेता है। इसलिए न्‍याय के साथ विकास की यात्रा की राह भी तिरोहित (अंधकारपूर्ण) हो गयी है।