संस्कृति

सनातन के व्यापारी और सनातन की लाचारी

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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विदित हो कि सृष्टि के संचालन से संबंधित प्रकृति द्वारा निर्धारित नियम भूतकाल-वर्तमान काल व भविष्य काल की दृष्टि से अपरिवर्तनीय होते हैं ।

और जो अपरिवर्तनीय होता है वही ‘सत्य’ या शाश्वत कहलाता है और जो ‘सत्य’ या शाश्वत है वही सनातन कहलाता है ।

अर्थात् सनातन ना तो किसी की बपौती है और ना इसका किसी खास मानव निर्मित धर्म से कोई लेना देना है ।

सनातन तो सृष्टि के संचालन से जुडे उन अपरिहार्य एवं अपरिवर्तनशील स्थाई नियमों को कहा जाता है जोकि युगों युगों से ना सिर्फ इंसानों वरन् सभी जीव—जंतुओं के सह—अस्तित्व हेतु अपनाए जाते रहे हैं।

जो सृष्टि संचालन के नियमों की गहरी समझ रखता हो, जो सह—अस्तित्व यानी अनेकता में एकता के महत्व को समझता हो तथा उनके अनुसार ही जीवन जीता हो, केवल ऐसा व्यक्ति ही ‘सनातनी’ हो सकता है।

सह—अस्तित्व या अनेकता में एकता के विरोधी एवं स्वयं को स्वयं ही ‘सनातनी’ घोषित करने वाले तथा सनातनी के नाम पर समाज में तनातनी पैदा करने वाले लोग ‘भेड़ की खाल में छुपे भेड़िये हैं जिनका लक्ष्य फूट डालकर ‘भेड़ों’ को पहले अलग-अलग करना और फिर उनका बारी बारी से शिकार करना मात्र है।

ऐसे लोग ना सिर्फ देश व समाज के गद्दार हैं वरन् समता,प्रेम व सह—अस्तित्व पर आधारित सृष्टि के लिए भी अभिशाप हैं ।

हमें ‘सनातनी’ के खोल में छिपे ‘तनातनी’ के अभिलाषी इन गद्दारों को ना सिर्फ पहचानना होगा वरन् उनके इंसानियत, देश व समाज विरोधी विनाशक षड़यंत्र का पर्दाफाश भी करना होगा।

प्रश्न उठता है कि सनातनी कौन ?

”जो प्रकृति में ‘सह—अस्तित्व’ की महत्ता समझे,
जो ‘इंसानियत’ को सर्वोच्च धर्म माने,
जो सदगुण संकल्प को सर्वश्रेष्ठ ध्यान माने,
जो तर्कशीलता को विकास का उपकरण माने
और जो पाखंड से बचकर सतकर्म को ही पूजा माने । ”

हमारी नजर में वही ‘सनातनी’ है।

याद रहे सनातन प्रकृति निर्मित है, बाकी सभी सांसारिक धर्म मानव द्वारा निर्मित हैं तथा ‘सनातन’ नियमों को ही अपने—अपने ढंग से आंशिक रूप से प्रचारित व प्रसारित करते हैं । सह—अस्तिव को स्वीकारते हुए ये कार्य किया जाता रहा है और किया जाता रहे तो किसी को भी, कभी भी, ना तो कोई समस्या हुई है और ना ही हो सकती है ।

परन्तु, जब जब किसी धूर्त ने बहुसंख्यकों को बरगलाकर, उनके संख्या बल को आधार बनाकर ‘सत्ता प्राप्ति’ के मुख्य मकसद से सह—अस्त्तिव को चुनौती देते हुए ​किसी खास मान्यता(मानव निर्मित धर्म) को सर्वश्रेष्ठ बताया है तथा अपने अलावा अन्य सभी मान्यताओं का तिरस्कार या अपमान किया है, धूर्त सत्ताधीशों के हिस्से में भले ही कुछ समय के लिए सत्ता आयी हो परन्तु जनता के हिस्से में सिर्फ अशांति,भुखमरी, शोषण एवं लाशों का ढेर रूपी विनाश ही आया है और आता आता रहेगा ।

अत: हमें धूर्तों के षडयंत्र के प्रति सदैव सतर्क रहना होगा तथा धर्म के वास्तविक मर्म या प्राकृतिक/सत्य/सनातन/शाश्वत नियमों को खोजना,समझना व अपनाना होगा।

और ‘सनातन’ के व्यापारियों और सनातन के आचारियों (जीवन में सनातन नियमों को अपनाने वालों) में अंतर करना होगा।