बिहार

राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट 2023

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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पटना /क्योंकि जब से नीति आयोग ने उक्त रिपोर्ट को जारी किया है (17 जुलाई) तब से बिहार सरकार के एक के बाद दूसरे मंत्री प्रेस के समक्ष आकर अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं और यह भी अपेक्षा कर रहे हैं कि भाजपा भी उनकी पीठ थपथपाए इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि इस संदर्भ में जनता को वस्तुस्थिति से अवगत कराया जाए।
हमने भी रिपोर्ट को देखा है और उसमें ऐसी कोई विशेष उपलब्धि नहीं कि राज्य सरकार की पीठ थपथपाई जाए। उल्टे रिपोर्ट पढ़कर चिंता होती है कि केंद्र से लगातार मिल रही सहायता और प्रोत्साहन के बावजूद बिहार अभी भी देश में सबसे निचले पायदान पर बना हुआ है। यह दुखद है कि राज्य की 34% आबादी अभी भी बहुआयामी गरीबी से ग्रस्त है जबकि राष्ट्रीय औसत 15% ही है।यहाँ तक कि ‘बीमारू राज्य’ में शुमार झारखंड में 29%, मध्यप्रदेश में 21%, छत्तीसगढ़ में 16%, राजस्थान में 15%, उत्तरप्रदेश में 23% और उत्तराखंड में मात्र 10% लोग ही अब बहुआयामी गरीबी से ग्रस्त रह गए हैं।
यह भी द्रष्टव्य है कि बिहार का प्रदर्शन 12 में से 9 सूचकांकों में अत्यंत ही निराशाजनक है। 5 सूचकांकों में तो नीचे से फर्स्ट आया है। यहां यह बता देना भी प्रासंगिक होगा कि 2021 की रिपोर्ट में भी बिहार की स्थिति ऐसी ही थी। उसमें भी बिहार सबसे निचले पायदान पर ही था।
राज्य सरकार का जोर इस बात पर है कि गरीबी घटने का बिहार का दर (18%) देश में सर्वाधिक है। हम इस बात से इंकार नहीं करते कि दर सबसे अधिक है पर यह भी अपर्याप्त ही माना जाएगा क्योंकि यदि हमें अन्य राज्यों के समकक्ष पहुँचना है तो इसे और बढ़ाना चाहिए था। अगर दर को ही देखा जाएगा तो इस दृष्टिकोण से सर्वाधिक विकसित राज्य केरल को खराब प्रदर्शन वाल राज्य माना जाएगा क्योंकि वहां गरीबी घटने का दर मात्र 0.15% है।
दरअसल दर के मामले में baseline को भी देखना पड़ेगा क्योंकि इसके बगैर पूरी तस्वीर साफ नहीं होगी। अर्थात यह देखना होगा कि संदर्भित राज्य कहाँ खड़ा था। एक पूर्णतः विकसित राज्य में गरीबी घटने का दर तो शून्य हो जाएगा। केरल के संदर्भ में भी यही बात है। 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक वहां गरीबी मात्र 0.70 % थी जिसमे से उसने 0.15 % घटाकर 0.55 % पर लाया है।
जनता पार्टी के प्रयोग के विफल हो जाने के बाद 1980 से, यानी पिछले 42-43 वर्षों से कांग्रेस, राजद तथा जदयू ही राज्य की ड्राइविंग सीट पर बैठी रही हैं।अतः बिहार के पिछड़ेपन के लिए इन्हीं दलों को जिम्मेवार माना जाएगा। खासकर नीतीश कुमार को आगे आकार स्पष्टीकरण देना चाहिए कि विकसित बिहार के वायदे के साथ 2005 से मुख्यमंत्री बने हुए हैं पर बिहार अभी भी सबसे निचले पायदान पर क्यों खड़ा है। पिछली रिपोर्ट 2021 के अनुसार बिहार की 52 % आबादी बहुआयामी गरीबी से ग्रस्त पायी गई थी। यह तब था जब उनके शासन में आए 15-16 वर्ष बीत चुके थे। वे उसी समय क्यों नहीं सावधान हुए ताकि अगली रिपोर्ट (यानी वर्तमान रिपोर्ट) तक स्थिति नियंत्रित हो जाती?
भाजपा की समझ है कि नीतीश कुमार का ध्यान विकास से हट कर ‘स्वकेन्द्रित राजनीति’ पर केंद्रित हो चुका है और राजद तथा कांग्रेस को तो विकास से कोई मतलब है ही नहीं लिहाज़ा उन्हें शासन में बने रहने का कोई हक नहीं है।

प्रेस वार्ता में मुख्य रूप से भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सिद्धार्थ शंभू , प्रदेश मीडिया प्रभारी राकेश कुमार सिंह, राजेश कुमार झा उपस्थित थे l