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पर्व में गाती महिलाओं के बीच जीवित है सभी प्रकार के लोकगीत

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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लदनियां से अमरनाथ यादव की रिपोर्ट

महिलाएं पर्व-त्योहार पर खुशी का इजहार गाकर और मन को किसी प्रकार की ठेंस लगने पर दुख का इजहार रोकर करतीं हैं। दोनों ही स्थिति में किसी से या किसी के प्रति कुछ कहती नजर आती हैं। कहने की शैली गंवारू व गेयात्मक होती है। यह गुण प्राय: सभी महिलाओं में होती है।

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इन गुणों के मुख्य आधार विभिन्न प्रकार के संस्कार व उत्सव हैं। इन मौके पर लक्ष्मी, छठी, सूर्य, ब्रह्म, शिव, भगवती, गोसाउन आदि देवी-देवताओं को मनाने, रिझाने व खुश करने की कामना से गाने तथा व्यथा व दारूण-दाह होने पर रोते हुए गाने जैसी मूल प्रकृति है, जो महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा दृढ़ होती है। महिलाओं की इस दृढ़ता के दर्शन उनके गायन व रोदन में सहज ही हो जाते है।

अच्छे वर, पुत्र, दीर्घायु, विद्या, वैभव, मनोरंजन, मजाक, उपहास, रक्षा, आरोग्य, उलाहना, व्यंग्य, व्यथा आदि की कामना से गाए जाने वाले सभी प्रकार के गीत लोकगीत की श्रेणी में परिगणित हैं, जिसका इतिहास बहुत पुराना है। ये गीत आज भी अपनी पुरातनता के साथ महिलाओं के बीच जीवित है, जिसका आधार हमारे पर्व-त्योहार हैं।