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राष्ट्रीय लोक अदालत 12 नवम्बर को

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News डेस्क

पटना/आगामी राष्ट्रीय लोक अदालत 12 नवम्बर को अपनी किसी भी तरह की समस्या हो जैसे-बिजली बिल, पानी बिल बैंक ऋण, वन विवाद, परिवारिक विवाद, दहेज संबंधित विवाद,भूमि विवाद अन्य किसी ने भी न्यायालय में लंबित मामला जो सुलहनीय वाद है,आपसी सुलह-समझौता के आधार राष्ट्रीय लोक अदालत में निपटारा करवाएं लोक अदालत के माध्यम से वकील फीस,कोर्ट फीस इत्यादि का खर्च नहीं लगता है। आपको यह जानकर हर्ष होगा कि राज्य मुख्यालय एवं आपके जिला में विधिक सेवा प्राधिकार कार्यरत हैं। इस प्रकार का उद्देशय विधिक साक्षरता एवं यह सुनिश्चित करना है कि इस क्षेत्र का कोई भी निवासी आर्थिक या किसी अन्य नियोगता के कारण न्याय पाने से वंचित नहीं रहे तथा लोक अदालत के द्वारा वादों के त्वरित निष्पादन कराया जा सके।

निशुल्क विधिक सहायता

1.सरकारी खर्च पर अधिवक्ता उपलब्ध कराएं।
2. मुकदमे की कोर्ट फीस माफ़ की जाती है।
3.न्यायालय के समक्ष विचाराधीन मामलों में कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
4. अनुसूचित जाति / जनजाति के सदस्य महिलाएं एवं बच्चे मानसिक रोगी एवं विकलांग किन्नर बरीये नागरिक, तेजाब पीड़ित/पीड़िता अनपेक्षित प्रभाव जैसे जनजातिय हिंसा, जाति अत्याचार, बाढ़,भूकंप या औद्योगिक विनाश की दशाओं के अधीन सताए हुए व्यक्ति, औद्योगिक श्रमिक बंदी ऐसे सभी व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय एक लाख पच्चास हजार रुपिये से कम है।

लोकअदालत

1.पटना के सभी न्यायमंडलों में लोक अदालत कार्यरत है। लोक अदालत में सभी दीवानी एवं शुलाहनिये फौजदारी मुकदमों का निपटारा होता है। किसी भी पछ यह दोनों पछ का आवेदन पर मुकदमा लोक अदालत में भेजा जा सकता है। न्यायालय अपने विवेक से भी अपने यहाँ लंबित मुकदमे लोक अदालत में भेज सकती है। यह आवश्यक नहीं है कि लोक अदालत में लाए जाने वाले मुकदमे किसी न्यायालय में लंबित हो यहां वैसे विवादों का निपटारा भी हो सकता है जो अभी न्यायालय में नहीं लाए गए हैं लोक अदालत द्वारा मुकदमों के निपटारे में निम्नलिखित फायदे हैं।

1.वकील पर खर्च नहीं होता तथा 2)कोर्ट फीस नहीं लगता।
3.पुराने मुकदमे की कोर्ट फीस वापस हो जाती है।
4.किसी पक्ष को सजा नहीं होती। मामले को बातचीत द्वारा सफाई से हल कर लिया जाता है।
5.मुआबजा और हर्जाना तुरंत मिल जाता है।
6.सभी को आसानी से न्याय मिल जाता है फैसला अंतिम होता है लोक अदालत फैसले के विरुद्ध कही अपील नहीं होता है।

बाल किशोर अधिकार

नागरिक अधिकार सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार ,समान वैधानिक सुरक्षा एवं समानता का अधिकार, बढ़ने एवं विकसित होने का अवसर, शिक्षा का अधिकार प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार, आहार, पोषाहार, सुरक्षित स्वस्थ एवं निष्पछता पाने का अधिकार व्यक्तित्व के मान सम्मान पाने का अधिकार, शांतिपूर्ण ढंग से आगे बढ़ने हेतु निरपेक्ष वातावरण का अधिकार, विकलांगता से पीड़ित, वेश्याओं संतानों, कुष्ठ रोगियों की संतानों एवं एचआईवी संक्रमित बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था ऐसे बाल अधिनियम जो बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करें। 18 वर्ष की आयु तक को बाल काल में सम्मान सहित अभिव्यक्ति भागीदारी एवं मांग रखने का अधिकार बाल अधिकारों के अतिक्रमण पर सार्वजनिक उत्तरदायितब।

 

banner jjj page 0001 2 राष्ट्रीय लोक अदालत 12 नवम्बर कोमहिलाओ का अधिकार

1.भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र के किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 के नियम (3) के मुताबिक अगर महिलाओ और बच्चों के लिए स्पेशल प्रोविजन बनाए जा रहे हैं तो अनुच्छेद 15 ऐसा करने से नहीं रोक सकता। जैसे महिला आरक्षण या बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा स्त्रीलिंग होने के कारण किसी भी कार्य से उनको वंचित करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना जाता है तथा ऐसी स्थिति में कानून के सहायता हो सकेगी महिलाओं के लिए जिला विधिक सेवा परिवार की ओर से निशुल्क कानूनी सहायता की सुविधा उपलब्ध है। कोई भी महिला जिसकी बार्षिक आय कितनी भी क्यों ना हो वह इस सुविधा का लाभ हासिल कर सकती है।

असंगठित मजदूर

1.भारतीय संविधान के प्रस्तावना सभी नागरिकों के लिए प्रतिष्ठा और अवसर की समानता सुनिश्चित करती है। असंगठित क्षेत्र समाज के उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है तथा वे देश के नागरिक होने के कारण काम का अधिकार न्याय उचित एवं मानवीय कार्य व्यवस्था ,निर्वाह मजदूरी ,मातृत्व लाभ तथा उचित जीवन स्तर के समान रूप से हकदार हैं अनुच्छेद 43 द्वारा राज्य सभी कामगारों के लिए काम निर्वाह मजदूरी, उचित स्तर सुनिश्चित करते हुए कार्य स्थिति तथा पूर्ण मनोरंजन आपका समाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर सूचित करती है। विधिक सेवा प्राधिकरण न्याय प्राप्ति तक उनकी पहुंच स्थापित करने में सहायता करती है।

नागरिक का मौलिक अधिकार

1. समता का अधिकार (समानता का अधिकार)।
2. स्वतंत्रता का अधिकार।
3) शोषण के विरुद्ध अधिकार।
4.धर्म के स्वतंत्रता का अधिकार।
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार।
6.संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

वरिष्ठ नागरिक

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 माता-पिता को भी भरण पोषण प्राप्त करने की कानूनी अधिकार देती है। धारा 125 पति, पिता और पुत्रो पर अपने आश्रित माता पिता के भरण-पोषण की कानूनी जानकारी डालती है। वरिष्ठ नागरिकों का परित्याग कराना दण्डनीय अपराध है जिसके लिए 3 माह का कारावास अथवा ₹5000 का जुर्माना अथवा दोनों है राज सरकार ने सभी जिलों के समाज कल्याण विभाग के सहायक निदेशक एवं समकक्ष अधिकारी को भरण-पोषण अथवा अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष उनका प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। वरिष्ठ नागरिक के लिए जिला एवं तालुका स्तर पर विधिक सेवा प्राधिकार कानूनी सहायता का प्रावधान है। इसके अलावा नालसा के तहत मानसिक रूप से विकलांगता एबं पीड़ित तस्करी और वाणिजियक यौन शोषण पीड़ित लिए योजना (2015)(एसिड हमलों के लिए पीड़ितों के लिए विधिक सेवा) चलाया जा रहा है।