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सरकारी विद्यालयों में बच्चें नई किताबों से वंचित

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न्यूज़ डेस्क

पटना /बिहार सरकारी प्रारंभिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना किस तरह बुना जा रहा है। यहाँ बच्चे जमीन पर बिछी गन्दी सी जीर्ण शीर्ण दरी पर बैठे पढ़ते मिले। लेकिन कुछ ही बच्चों के हाथो में फटी पुरानी किताबें दिखी। ज्यादातर बच्चों के पास पाठ्य पुस्तकें नहीं हैं। ऐसे बच्चें निजी स्कूलों से प्रतिस्पर्धा करने के सरकारी दावों का मजाक उड़ा रहे थे। मासूमों को यह भी पता नही की नई कक्षा में जाने पर नई किताबों पर उनका हक है। नाम नही छापने की शर्त पर स्कूल शिक्षिका ने बताया की बच्चों को पैसा मिला है पर नई किताबें बाजार में नही है।

banner 2 सरकारी विद्यालयों में बच्चें नई किताबों से वंचितसरकार ने जिन दर्जन भर प्रकाशकों को नई किताबें छापने और हर जिले में आपूर्ति की जिम्मेदारी दी है। उनका अलग रोना है कागज के बढ़े दामों ने इस दफा उनके सामने परेशानी पैदा कर दी है। एक प्रकाशक के प्रबंधक संजय पोद्दार ने बताया की कागज के दाम बेतहासा बढ़ गए है। इसके चलते समय से पर्याप्त संख्या में किताबों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। हमें तो बच्चों को किताबें ही बेचकर पैसा हासिल करना है। ऐसे में पूंजी का संकट भी किताबों की छपाई और आपूर्ति में बड़ी बाधा हैं।

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शिक्षा विभाग के अपर मुख्या सचिव दीपक कुमार सिंह ने बताया की सभी प्रारंभिक विद्यालयों में अध्यनरत पहली से आठवीं कक्षा तक के सभी बच्चों को पाठ्य पुस्तकों की खरीद हेतु डीबीटी के माध्यम से उनके खाते में राशि जा चुकी है। चयनित प्रकाशकों को किताबों की आपूर्ति की जिम्मेदारी दी गई है। जो प्रखंडो एवं जिला मुख्यालयों में पुस्तकों की आपूर्ति सुनिश्चित कर रहे। लेकिन अफसरों ने विभिन्न जिलों में विद्यालय निरीक्षण के क्रम में पाया है की पैसे मिलने के बाद 40-50 प्रतिशत बच्चों ने किताबें खरीदी नहीं है। इसलिए शिक्षा विभाग ने यह फैसला किया है की अगले साल अप्रैल में नए सत्र में बच्चों को उनके विद्यालयों में नई किताबों की आपूर्ति की जाएगी। अब उन्हें किताबों को खरीदने हेतु पैसा नहीं दिया जाएगा। इससे सम्बंधित प्रस्ताव विभाग ने तैयार कर लिया है।