संस्कृति

नेपाल का गौरव पशुपतिनाथ

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पप्यू सिंह

नेपाल प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों ,संत महात्माओं का केंद्र रहा है। सनातन धर्म हिंदुओ के देवताओं के मठ मंदिर तीर्थयात्रियों का प्रमुख आकर्षण रहा है। जिसका अवलोकन के लिए लाखों पर्यटक प्रतिवर्ष नेपाल आते है।भगवान शंकर का प्रिय क्षेत्र नेपाल रहा है। यहां प्राचीन काल में भगवान श्री कृष्ण एव मध्यकाल में आदि शंकराचार्य का आगमन हुआ था। नेपाल कला धर्म और प्राकृतिक संपदाओं का धनी देश और एक प्राचीन राष्ट्र रहा है। विश्व का एक मात्र संवैधानिक राष्ट्र नेपाल वैदिक युग से ही महान तपस्वी का तपोभूमि रहा है। यहां उच्च हिमालय का हिम बर्फ पिघलकर अनेक नदियों का रूप ले लेती है,जो नदी पहाड़ों से गुजरकर एक विशाल रूप धारण करती है जिसका दृश्य मन को विभोर कर देता है। इन्ही नदियों के कारण नेपाल विश्व का जलस्रोत का धनी राष्ट्र कहा जाता है। पहाड़ ,सुंदर नदियों,सदाबहार जंगल और प्रकृति से प्राप्त फलफूल एव कंदमूल, प्राचीन काल से ही आकर्षक का केंद्र रहा है।

महान धर्मग्रंथ रामायण में वर्णित राजा जनक का राज्य और आदर्श नारी सीता की जन्मभूमि जनकपुर नेपाल में ही है। विश्व प्रसिद्ध शांतिदूत महान आत्मा भगवान बुद्ध का जन्मस्थल लुंबनी नेपाल ही है। इस क्षेत्र के धार्मिक महत्व को समझकर भारत के आदि शंकराचार्य भी नेपाल गए थे। विश्व में यह एक ऐसा राष्ट्र है जहां कभी स्वतंत्रता दिवस नही मनाई जाती है क्योंकि यह राष्ट्र कभी परतंत्र ही नही हुआ,कभी किसी अन्य देश का उपनिवेश नही रहा। भारत में ब्रिटिश कंपनी के शासन काल में अनेक बार नेपाल पर आक्रमण हुआ किंतु गोरखाओं ने अपनी पराक्रम से नेपाल की अस्मिता को बचाए रखा,इसीलिए यहां प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक , बौद्ध तीर्थयात्रियों भगवान बुद्ध के पावन जन्मभूमि को स्पर्श करने तथा भ्रमण पर आते है।यहां के पवित्र तीर्थों के दर्शन से मानव जीवन की वास्तविकता एव सार्थकता का ज्ञान होता है।
नेपाल की राजधानी काठमांडू को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है।जहां नेपाल का गौरव पशुपति नाथ मंदिर एक ऊंचे स्थान पर विराजमान है। इतिहासकारों की माने तो प्राचीन काल में नेपाल का भू भाग बहुत छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था उसी में काठमांडू एक ताल के रूप में था,ताल के चारो ओर पहाड़ ही पहाड़ था ।उस पहाड़ में विपश्वि और कनकमूनी नाम के बुद्ध तपस्या करते थे बुद्ध के द्वारा बोए गए कमल के बीज से छह महीने बाद एक अलौकिक कमल उत्पन्न हुआ, उस कमल के फूल से भगवान स्वयंभू का ज्योति जागृत हुआ था।कमल में उत्पन्न ज्योति का दर्शन करने चीन से महामंजूश्री आए उन्होंने जल निस्काशन कर काठमांडू को आवाद किया। पर्वत के पास की भूमि काठमांडू पर सर्वप्रथम क्षत्रिय राज धर्माकर ने शासन किया था। वर्तमान में नेपाल के दो प्रमुख धर्म हिंदू और बौद्ध है।नेपाल एक बहुभाषीय राष्ट्र है लेकिन यहां के राष्ट्रीय भाषा नेपाली और लिपि देवनागरी है।

श्री पशुपतिनाथ की उत्पति

सतयुग के समय में भगवान शंकर तथा माता पार्वती बागमती के तट पर स्थित मनमोहक वन में पहुंचे थे, इस क्षेत्र में अपार सौंदर्य ,फलफूल से भरा वन,निर्मल बागमती नदी से प्रसन्न और मुग्ध होकर शिवशक्ति मृग रूप धारण कर वन विहार करने लगे थे। ब्रह्मा ,विष्णु और इंद्र आदि देवतागण कैलाश में भोलेनाथ को न पाकर ढूंढते हुए यहां आ पहुंचे। इस रमणीय क्षेत्र में मृग रूप से विचरण कर शिव पार्वती को पहचान कर कैलाश लौटने का अनुरोध करने लगे।
भोलेशंकर ने ब्रह्मा,विष्णु और इंद्र आदि देवताओं को इसी रमणीय स्थल में रहकर लोक कल्याण करने का निस्चय सुनाया। उसी समय से इस जगह का नाम पशुपतिनाथ पड़ा। भगवान शंकर ने कहा जो लोग यहां मेरा पशुपति लिंग का दर्शन करेगा उसका कभी भी पशुयोनी में जन्म नही होगा। ज्योति लिंग के रूप भगवान यहां निवास करने लगे।
कालांतर में भूकंप से पशुपतिनाथ के ज्योति लिंग को मिट्टी से ढंक दिया और इस क्षेत्र में घना जंगल उग आया। द्वापर युग में वानासुर नाम के राक्षस ने वहां तालाब बनाया था तब भगवान श्री कृष्ण वहां आकर वानासूर का दमन कर अपने सुदर्शन चक्र से ` चाभोर ` नाम के दक्षिण पहाड़ को काटकर तालाब के पानी का निष्कासन किया। भगवान के साथ अनेक ग्वाला भी आए थे जिसके पास बहुडी नाम की एक कामधेनु गाय थी लगातार दूध देने वाली गाय यहां आने के बाद दूध देना बंद कर दिया था। इसका कारण जानने के लिए ग्वालाओं ने इस गाय का पीछा किया,कामधेनु गाय जंगल के एक टीले में जाकर दूध छोड़ रही थी। एक ग्वाला ने उस टीले में जाकर देखा तो वहां से तेज ज्वाला निकल रही थी उसी ज्वाला में वो भष्म हो गया, बाकी ग्वाला वहां से भाग गया। इसके बाद वहां भूत,प्रेत या राक्षस होने की आशंका में वहां खोदने पर एक तेजोमय ज्योतिलिंग प्रकट हुआ। श्री पशुपतिनाथ के ज्योर्तिलिंग के तेज से कई ग्वाला भष्म होकर कैलाश को प्राप्त हुए। पुराण के अनुसार भगवान श्री विष्णु ने पशुपति नाथ के तेजोमय ज्योतिलिंग के ऊपर नीलमणि का पंचमुखी लिंग बनाकर ढक दिया और उसे दर्शन योग्य बनाया था। वर्तमान का पशुपति लिंग उसी नीलमणि का है।

पशुपतिनाथ दर्शन का महत्व

IMG 20240221 WA0005 नेपाल का गौरव पशुपतिनाथप्राचीन धर्मग्रंथ के अनुसार पशुपति नाथ लिंग दर्शन तथा परिक्रमा का रहस्य का वर्णन किया गया है। पुराण के अनुसार बागमती नदी में स्नान करके पशुपतिनाथ का दर्शन करने से संसार से निष्पाप होकर शिवलोक प्राप्त होता है भक्तिपूर्वक जो मनुष्य श्री पशुपतिनाथ के पंचमुखी लिंग का दर्शन करते है वे अज्ञानता से हुए पापों से मुक्त होकर यज्ञ,दान,व्रत तथा उपवास का फल प्राप्त होता है और पशुयोनि में कभी भी जन्म नही होता है ।पशुपति मंदिर परिसर हमेशा जय शंभू जय शंभू नारे के साथ गूंजता रहता है। पशुपति मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की ओर से किया जाता है। मंदिर में प्रवेश करते ही एक विशाल नंदी सोने जैसा चमकता हुआ दिखाई देता है जो नेपाल का सबसे बड़ा नंदी का प्रतिमा है। पशुपतिनाथ मंदिर एक विशाल परिसर के मध्य में पैगोडा शैली में बना दो मंजिला इमारत है। जिसके ऊपर स्वर्ण का कलश (गजूर) है साथ में डमरू सहित त्रिशूल भी है । मंदिर में चारो दरवाजा बहुमूल्य धातुओं से बना हुआ है।
पशुपतिनाथ क्षेत्र आसपास कई देवी देवताओ का तीर्थ स्थल है जैसे पशुपति नाथ के पूर्व दिशा में लाल गणेश की भव्य मंदिर जहां श्रद्धा पूर्वक अर्चना करने से मन की मुराद पूरी होती है। वहीं बागमती नदी पूर्व में ही राममंदिर है।पशुपति मंदिर परिसर में कृतिमुख भैरव ही एक मात्र मूर्ति है जहां पशु की बलि दी जाती है। कहावत के अनुसार कृतिमूख भैरव ने भूख से क्रोध में आकर अपने ही शरीर को खा गए थे सिर्फ सिर ही बचा था। यहां प्रत्येक पूर्णिमा में पशुपति जी को महाभोज देते समय बली प्रदान भी किया जाता है। वहीं पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशाओं में कई देवी देवता विराजमान है।मानो स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है। श्री पशुपतिनाथ मंदिर में पौष माह में एक विशेष प्रकार की पूजा होती है पूजा संपन्न होने के बाद खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। अगले दिन मंदिर बंद रहता है। पुराण के अनुसार चंद्रमास पूजा के दिन में कड़ाके की ठंडी के कारण पशुपति पर्वत के उत्तर में स्थित शिवपुरी नाम के पहाड़ में धूप सेंकने चले जाते है वास्तव में पशुपतिनाथ की महिमा अपरम्पार है पशुपति नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता गुहेश्वरी का मंदिर,भुवनेश्वरी माता का मंदिर,वनकाली मंदिर, विश्वरूपा मंदिर,गौरखनाथ मंदिर, किरातेश्वर महादेव, श्री सत्यनारायण मंदिर,शीतला माता मंदिर, कृष्ण मंदिर,संतानेश्वर शिवलिंग ,विरुपाक्ष मंदिर,और स्वंय स्वयंभूनाथ विराजमान है। स्वयंभूनाथ के शीर्ष पर से पूरा काठमांडू का स्वर्ग जैसा नजारा देखने को प्रतीत होता है। पशुपति नाथ परिसर में वीर विक्रम शाहदेव का स्वर्ण प्रतिमा विराजमान है साथ ही राजपरिवार के सभी सदस्यों की प्रतिमा भी है जो सभी श्री पशुपतिनाथ को हाथ जोड़कर प्रार्थना करने की मुद्रा में है।

श्री पशुपतिनाथ का पंचमुख की विशेषताएं

श्री पशुपतिनाथ लिंग के दक्षिण दिशा के मुख को अघोर मुख कहते है। यह शिव का शाकाहारी रूप है यह अघोर मुख सिर्फ विनाशकारी न होकर दुष्ट का विनाश करने वाले रक्षक का प्रतीक है।
२. पूर्व मुख पशुपतिनाथ का ज्ञान और विवेकपूर्ण लोक कल्याण कारी रूप है।
३. उत्तरमुख पशुपति का अर्धनारीश्वर रूप है।इस मुख में बाए तरफ आधा रूप पार्वती का और दाएं तरफ आधा महादेव का रूप जो शिव शक्ति का प्रतीक और सृष्टि का प्रतीक है।
४. श्री पशुपतिनाथ के पश्चिम तरफ का मुख बालक के समान दिखाई देता है जो कल्याणकारी है।
५. श्री पशुपतिनाथ लिंग के ऊपरी भाग को ईशान मुख कहते है यह निराकार मुख है। यही पशुपति का श्रेष्टम मुख है और यह वरदाता शिव का रूप भी है।

श्री पशुपतिनाथ मंदिर में प्रत्येक दिन पूजा होती हैं तथा प्रत्येक मास के पूर्णिमा को महास्नान पूजा होती हैं। पशुपति नाथ मंदिर की पूजा सिर्फ दक्षिण भारत के ब्राह्मण ही करते है यहां वे पुजारी के अलावा कोई भी पशुपतिनाथ को स्पर्श नही कर सकता है।

 

पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचने का मार्ग

भारत या अन्य देशों से सिर्फ दो ही मार्ग से पशुपतिनाथ तक पहुंच सकते है। एक हवाई मार्ग से तो दूसरा स्थल मार्ग से। हवाई मार्ग से जाने के लिए नेपाल का एक मात्र इंटरनेशल एयरपोर्ट काठमांडू का त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। भारत से हम दिल्ली,मुंबई, कोलकाता से सीधा काठमांडू जा सकते है वहीं पटना और दिल्ली से हम स्थल मार्ग से भी जा सकते हैं।काठमांडू पहुंचने के बाद हम नेपाल के सरकारी या निजी वाहन से पशुपतिनाथ मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।