मनरेगा को बंद करना चाहती है मोदी सरकारः सीपीआई
पटना/ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव कॉमरेड रामनरेश पांडेय ने कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने मनरेगा को बंद करने के उद्देश्य से एक कमेटी गठित की है। कमेटी को बजट सत्र से पहले रिपोर्ट देने को कहा गया है ताकि बजट सत्र के साथ रिपोर्ट संसद में पेश किया जा सके। सरकार के इस कदम का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी निंदा करती है।
सीपीआई राज्य सचिव ने कहा कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से मनरेगा की राशि में लगातार कटौती कर रही है। यह कतई उचित नहीं है। बिहार का केंद्र पर करीब एक हजार करोड़ रुपये मजदूरी और सामग्री मद का बकाया है। केंद्र से राशि नहीं मिलने के कारण ग्रामीण इलाकों में रोजगार ठप पड़ा हुआ है। कार्य की गारंटी देने की एकमात्र योजना मनरेगा की राशि में कटौती को लेकर सुधार के नाम पर कमेटी गठित की गई है। इसका मकसद मनरेगा को बंद करना है। मोदी के कई पूंजीवादी मित्र मनरेगा को बंद करने की मांग करते रहे हैं। प्रधानमंत्री ने खुद खैरात पर सवाल उठाया था। इसके बाद ही यह कमेटी गठित की है।
ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम की मांग बहुत ज्यादा बनी हुई है। इसके बावजूद सरकार सुधार के नाम पर इसे बंद करना चाहती है। एक पूर्व अफसरशाह की अध्यक्षता में अक्टूबर में कमेटी गठित की गई थी, कमेटी को बजट से पूर्व जनवरी तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। यह रिपोर्ट फरवरी में संसद में पेश किए जाने वाले केंद्रीय बजट के पहले आएगी।
सीपीआई राज्य सचिव ने कहा कि बिहार जैसे पिछड़े राज्यों को विकसित राज्यों की तुलना में कम राशि आवंटित की जाती है। चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 में पांच करोड़ मानव दिवस की कटौती की गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब से ही मनरेगा का विरोध करते रहे हैं। इनके कार्यकाल में मनरेगा की राशि मंे लगातार कटौती होती रही है। अब सरकार एक बार फिर सुधार के नाम पर अगले वित्तीय वर्ष 2023-24 में फिर से राशि की कटौती करने के उद्देश्य से कमेटी गठित की है। सीपीआई राज्य सचिव ने केंद्र सरकार से अगले वित्तीय वर्ष में मनरेगा की राशि में बढ़ोतरी करने और बिहार का बकाया राशि जारी करने की मांग की है ताकि ग्रामीण मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिल सके तथा पलायन पर भी रोक लगे।