चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाया जाने व मतदाताओं को लुभाने के लिए महंगे उपहार देने की परंपरा धड़ल्ले से चलती
उप संपादक
चुनाव प्रचार सामग्री के रूप में आकर्षक पोस्टर बड़े बड़े बैनर होर्डिंग आसमान छूते कट आउट और संचार माध्यमों में महंगे विज्ञापन पर अकूत पैसा खर्च की बन गई परंपरा।
चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाया जाने व मतदाताओं को लुभाने के लिए महंगे उपहार देने की परंपरा धड़ल्ले से चलती।
चुनाव धीरे धीरे धनबल और बाहुबल के आधार पर लड़े और जीते जाने लगे।
हर चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग चुनाव खर्च का अनुमान भी लगाता है।उसी के अनुसार खर्च सीमा तय करता है पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर निर्वाचन आयोग ने विधानसभा प्रत्याशी के लिए खर्च सीमा अट्ठाईस लाख रुपए से बढ़ा कर चालीस लाख रुपए कर दी है।इसी तरह लोकसभा के लिए पंचानबे लाख रुपए तय किया गया है नियम के मुताबिक कोई भी प्रत्याशी तय सीमा से अधिक पैसा चुनाव पर खर्च नहीं कर सकता इसके लिए प्रत्याशियों को बाकायदा अपने खर्च का प्रमाण भी जमा कराना पड़ता है उसके जमा कराए प्रमाण और खर्च संबंधी दावों की जांच भी की जाती है अगर निर्वाचन आयोग को लगता है।
कोई प्रत्याशी तय सीमा से अधिक खर्च कर रहा है तो उसे नोटिस भी जारी करता है। मगर हकीकत यह भी है कि अब तक इसके लिए किसी को दंडित नहीं किया गया है।फिर यह भी छिपी बात नहीं कि गिने चुने ऐसे प्रत्याशी होंगे जो निर्वाचन आयोग द्वारा तय सीमा में धन खर्च करते हैं। ये वही लोग होते हैं जिनके पास पैसे नहीं होते वरना आजकल ग्राम पंचायत जैसे मामूली चुनावों में भी कई प्रत्याशी चालीस लाख से अधिक रुपए खर्च कर देते हैं।
विधानसभा और लोकसभा के चुनाव धीरे धीरे धनबल और बाहुबल के आधार पर लड़े और जीते जाने लगे हैं।इस तरह इन चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाया जाने लगा है! मतदाताओं को लुभाने के लिए महंगे उपहार देने की परंपरा धड़ल्ले से चल निकली है। नगदी बांटने का भी खूब चलन है। हर चुनाव में निर्वाचन आयोग बड़े पैमाने पर नगदी, शराब, महंगे उपहार आदि की जब्ती करता है।
इसके अलावा प्रचार सामग्री के रूप में आकर्षक पोस्टर बड़े बड़े बैनर होर्डिंग आसमान छूते कट आउट और संचार माध्यमों में महंगे विज्ञापन पर अकूत पैसा खर्च किया जाता है।अब तो अपने पक्ष में खबरें छापने या बनी बनाई खबरें छापने के लिए पैसे देने का चलन भी सुनने को मिलता रहता है।
ऐसे में निर्वाचन आयोग की तय सीमा के बावजूद प्रत्याशी चुनाव में कितना पैसा खर्च करता होगा इसका ठीक ठीक अंदाजा लगाना मुश्किल बना रहता है।दरअसल निर्वाचन आयोग ने प्रत्याशियों के लिए तो खर्च सीमा तय कर रखी है पर पार्टियों के लिए कोई सीमा तय नहीं की है।इसकी आड़ लेकर प्रत्याशी अपना बहुत सारा खर्च पार्टी के हिस्से में दिखा देते हैं यह भी छिपी बात नहीं कि जो राजनीतिक दल चंदे के मामले में जितना संपन्न है उसका प्रत्याशी अपने चुनाव में उतना ही अधिक पैसे खर्च करता है।
चुनावों में गैरकानूनी ढंग से जमा किए गए पैसे को जायज बनाने का धंधा भी बड़े पैमाने पर होता है इसलिए तमाम विशेषज्ञ लंबे समय से मांग करते रहे हैं कि निर्वाचन आयोग को प्रत्याशी और पार्टियों के चुनाव खर्च पर अंकुश लगाने का कोई व्यावहारिक उपाय किया जाना चाहिए।मगर अब तक इस दिशा में कोई व्यावहारिक कदम उठाने की जरूरत किसी ने नहीं समझी है।