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नए सिरे से पैर जमाने को लोग उठ खड़े हो

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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काल की गति तय है वह निंरतर चलता रहता है कालो गच्छति धीमताम पर अपने पीछे वह जो निशान और निशानियां छोड़ जाता है ,उनकी चर्चा उनकी यादें बनी रहती हैं। हालांकि कोई भी वक्त मुकम्मल तौर पर सभी के लिए एक सा नहीं होता है न वह केवल सुखद अनुभूतियों से सराबोर होता है न वह इतना कठोर होता है कि केवल कड़वाहटें भर जाए इसीलिए कठिन से कठिन माने जाने वाले वक्त में भी बेहतरी की उम्मीदें कभी खत्म नहीं होतीं। एक साल और हमारे जीवन में बीत गया हमने उसे खुशी मना कर विदा किया तो नए का स्वागत भी किया गए की कड़वाहटें अब धीरे धीरे धुल जाएंगी ।उसके अच्छे पक्ष चमकते रहेंगे ।

नए का उल्लास और उससे उम्मीदें बनी रहेंगी हालांकि जो चला गया उसकी बुराइयों को गिनने की परंपरा हमारी संस्कृति में नहीं रही है पर मूल्यांकन करने बैठें तो उनकी यादें तो उभरती ही हैं ।गए के गए साल में जब कोरोना ने धमक दी थी ।तब महीनों पूरी दुनिया की रफ्तार थमी रही थी लोग घरों में कैद होने को मजबूर हुए थे हालांकि मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार उन बुरे दिनों में भी बहुत कुछ रचनात्मक बहुत कुछ सकारात्मक करता रहा था।

वह साल बीता तो पिछला साल नई उम्मीदें लेकर आया था बेहतरी की उम्मीदें मगर विषाणु के प्रकोप ने गए को उसके पिछले से भी भयावह साबित कर डाला इन दो सालों में तरक्की के पैमाने बहुत बार प्रश्नांकित हो चुके हैं गए से पिछले साल ने तो दुनिया की सारी अर्थव्यवस्था का ही भट्ठा बिठा दिया मगर उससे पार पाने का जज्बा कम न हुआ अर्थव्य वस्थाएं पटरी पर लौटनी शुरू हो गईं ।

हालांकि अब भी पहले की तरह सरपट नहीं भाग रहीं दुनिया ने बहुत कुछ खोया अपने जन और धन का बहुत नुकसान उठाया बहुत सारे परिवार बरसों पीछे चले गए बहुतों ने अपने जमे जमाए कारोबार गंवाए तो बहुतों ने रोजगार फिर भी जीजिविषा कम न हुई नए सिरे से पैर जमाने को लोग उठ खड़े हुए।

हालांकि इस साल ने जाते जाते हमें जीवन के बहुत सारे सूत्र पहचानने का अवसर दिया हमें अपनी गलतियों मनमानियों को मुड़ कर मूल्यांकित करने का मौका दिया ।विकास के पैमाने पर पुनर्विचार का अवसर प्रदान किया ।इसलिए बहुत कुछ खोकर भी बहुत कुछ पाने के बिंदु रेखांकित हुए पर उन बिंदुओं पर कितना कोई कायम रह पाता है देखने की बात है।