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विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग द्वारा संस्कृत दिवस के अवसर पर ‘मानव- जीवन में संस्कृत की उपादेयता’ विषयक राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित

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ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग द्वारा श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के अवसर पर “मानव- जीवन में संस्कृत की उपादेयता” विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। संस्कृत विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संस्कृत विश्वविद्यालय से साहित्य एवं व्याकरण की संकायाध्यक्षा प्रो रेणुका सिन्हा, उद्घाटन कर्ता के रूप में भी एस जे कॉलेज, राजनगर के प्रधानाचार्य प्रो जीवानन्द झा, सारस्वत अतिथि के रूप में एमएलएसएम कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य प्रो विद्यानाथ झा, विशिष्ट वक्ता के रूप में बीएचयू, वाराणसी से प्रेरणा नारायण एवं देवघर से अमित कुमार झा, संस्कृत विश्वविद्यालय से डा नंद किशोर ठाकुर, संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया, प्राध्यापिका डा ममता स्नेही तथा संस्कृत- प्रेमी ओमप्रकाश आदि ने अपने विचार व्यक्त किये।

अपने संबोधन में प्रो रेणुका सिन्हा ने संस्कृत दिवस एवं रक्षाबंधन की बधाई एवं शुभकामना देते हुए वेबीनार के विषय को विस्तृत एवं महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत हमारी पथ- प्रदर्शिका एवं जीवन- दर्शन की व्यावहारिक भाषा है, जिसके अध्ययन- अध्यापन से मानव का जीवन सफल हो जाता है। संस्कृत मधुर एवं परिष्कृत तथा जीविकोपार्जन देने वाली राष्ट्रीय एवं विश्व कल्याण के लिए महत्वपूर्ण भाषा है।
प्रो जीवानन्द झा ने कहा कि संस्कृत संस्कारनिष्ठ, समुनन्नत तथा प्राचीनतम भाषा है, जिसकी महत्ता एवं वैज्ञानिकता को संसार के सभी विद्वानों ने स्वीकारा है। इसमें मानव के चतुर्दिक विकास एवं परम कल्याण का भाव निहित है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को खत्म करने के अनेक षड्यंत्र होते रहे, पर यह आज भी यथास्थिति में समाज की कल्याणकारी, इहलौकिक एवं पारलौकिक कल्याण की भाषा बनी हुई है। प्रो विद्यानाथ झा ने संस्कृत विभाग के ऐसे कार्यक्रमों की सराहना करते हुए कहा कि यह एक वर्ग विशेष की भाषा नहीं, बल्कि भारत का प्राण है, जिसपर सबका समान अधिकार एवं कर्तव्य है। उन्होंने संस्कृत में वर्णित विभिन्न न्यायों की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें सिर्फ दार्शनिकता ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिकता भी विद्यमान है। उन्होंने आह्वान किया कि संस्कृत विश्व की बेहतरीन विरासत है, जिसे समुन्नत करना हम सबका कर्तव्य है।
अमित कुमार झा ने कहा कि वाणिज्य एवं विज्ञान के छात्र भी 1 वर्षीय संस्कृत डिप्लोमा कोर्स या दो वर्षीया पीजी कर प्राध्यापक आदि बन सकते हैं। संस्कृत संस्कार देने वाली साहित्यिक एवं आध्यात्मिक भाषा भी है, जिसमें रोजी- रोजगार के नए- नए अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। प्रेरणा नारायण ने कहा कि संस्कृत न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह विश्व के ज्ञान- विज्ञान एवं संस्कार- संस्कृति का भी एक अमूल्य हिस्सा है। इसके अध्ययन एवं संरक्षण से हम न केवल अपने अतीत को समझ सकते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी समृद्ध एवं सुसंस्कृत बना सकते हैं।
अध्यक्षीय संबोधन में डा घनश्याम महतो ने कहा कि 1969 में आज ही के दिन केन्द्रीय सरकार ने संस्कृत दिवस मनाने का निर्देश दिया था। संस्कृत दिवस को हम ऋषिपर्व के रूप में भी मानते हैं, क्योंकि संस्कृत के जनक ऋषिगण ही हैं। प्राचीन काल में श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही शिष्य जनेऊ धारण कर अपनी पढ़ाई प्रारंभ करते थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत अध्ययन में कमी के कारण ही मानवीय मूल्यों में कमी आयी है। संस्कृत हमें नीति- निपुण तथा आचार्यवान बनता है, जिससे संस्कृति सुदृढ़ होती है। संस्कृत- प्रेमी ओम प्रकाश ने कहा कि संस्कृत राष्ट्रीय एकता की वाहक सरस एवं सरल भाषा है।
अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश करते हुए डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि संस्कृत शब्दों के उच्चारण से शरीर के सभी महत्वपूर्ण ऊर्जा बिन्दु झंकृत हो जाते हैं, जिससे शरीर में नवीन ऊर्जा एवं आनंद का संचार होता है। संस्कृत मंत्रों, श्लोकों एवं स्तुतियों से दुःख, शोक, क्रोध, भय आदि दूर हो जाते हैं और मानसिक अवसाद, बीपी, डायबिटीज आदि से मुक्ति मिलती है।
संस्कृत व्याकरण के प्राध्यापक डा नंदकिशोर ठाकुर ने संस्कृत में स्वागत गान प्रस्तुत किया, जबकि कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभागीय प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही ने रक्षाबंधन के दिन संस्कृत दिवस के अवसर पर संस्कृत को रक्षणीय एवं संवर्धनीय बताया। कार्यक्रम में विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो प्रेम मोहन मिश्र, डॉ मधु कुमारी, डॉ अर्चना कुमारी, डॉ बालकृष्ण सिंह, डॉ नारायण कुमार झा, शिक्षक नीरज कुमार सिंह, डॉ अंजू कुमारी, डॉ बालकृष्ण चौरसिया, प्रमोद साह, रीतु, सदानंद, दिनेश, मनीष, सुजय, दीपक, बालकृष्ण, संगम, गुलशन, प्रहलाद, अतुल, कामेश्वर, रतन, नीतीश, राकेश, संतोष तथा राघव झा आदि सहित 60 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।