बिहार

विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग में स्थापित उदयनाचार्य चेयर के द्वारा ‘उदयनाचार्य का दार्शनिक अवदान’ विषय पर विचारगोष्ठी आयोजित

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दरभंगा /ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में नवस्थापित उदयनाचार्य चेयर के तत्वावधान में “उदयनाचार्य का दार्शनिक अवदान” विषय पर विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो की अध्यक्षता में विचारगोष्ठी का आयोजन पीजी संस्कृत विभाग में किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में जामिया मिलिया इस्लामिया (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के पूर्व पीजी संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जयप्रकाश नारायण, मुख्य वक्ता के रूप में प्रताप नारायण संस्कृत महाविद्यालय, बौंसी, बांका के प्रधानाचार्य डॉ प्रकाश चन्द्र यादव, विशिष्ट वक्ता के रूप में मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के प्राध्यापक डॉ रवि कुमार राम, विषय प्रवेशक एवं स्वागत कर्ता के रूप में डॉ आर एन चौरसिया, उदयनचार्य चेयर के समन्वयक एवं संचालक डॉ विकास सिंह तथा धन्यवाद कर्ता के रूप में विभागीय प्राध्यापिका डा मोना शर्मा आदि ने अपने- अपने विचार व्यक्त किये। विचारगोष्ठी में कंचन, मनोज, अभिषेक, अतुल, रीतु, मणिपुष्पक, गिरधारी, बालकृष्ण, मिहिर, उदय, अश्विनी, अजय, सचिन्द्र, योगेन्द्र, विद्यासागर, रंजना, राधा, रवीन्द्र, मंजू तथा खुशी कुमारी सहित 40 से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे।

मुख्य अतिथि प्रो जयप्रकाश नारायण ने कहा कि उदयनचार्य पीठ की स्थापना कर मिथिला विश्वविद्यालय ने सराहनीय काम किया है। इस पीठ के कार्यक्रमों से महापुरुषों के ज्ञान, शिक्षा तथा दर्शन से युवा पीढ़ी न केवल अवगत होंगे, बल्कि उन्हें अपने जीवन में भी अपनाएंगे। उन्होंने उदयनाचार्य पर अब तक हुए शोधों, टीकाओं, पुस्तकों एवं शोध- आलेखों को पीठ द्वारा संग्रहित कर युवाओं को लाभ पहुंचाने का आग्रह करते हुए छात्रों से ऐसे महापुरुषों पर अधिक से अधिक शोध करने का आह्वान किया, ताकि समाज को नई दिशा- दशा मिल सके।
अध्यक्षीय संबोधन में डा घनश्याम महतो ने कहा कि ज्ञान एवं दर्शन की धरती मिथिला के विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग में उदयनाचार्य पीठ तथा मंडन मिश्र पीठ की स्थापना कुलपति प्रो संजय कुमार चौधरी का सराहनीय कदम है, जिसके लिए संस्कृत विभाग उनके प्रति आभार व्यक्त करता है। उन्होंने उदयनाचार्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि दर्शन के क्षेत्र में उदयनाचार्य का अतुलनीय योगदान रहा है। वे हमारे अमूल्य धरोहर एवं महान् मार्गदर्शक रहे हैं।
विषय प्रवेशक डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि समस्तीपुर के करियौर नामक गांव के मूल एवं मिथिलावासी उदयनाचार्य प्रसिद्ध नैयायिक और न्याय- वैशेषिक दर्शन के मूर्धन्य आचार्य थे, जिन्होंने अपने तर्कों के द्वारा ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित कर बौद्धों को परास्त किया था। न्यायकुसुमांजलि तथा आत्मतत्त्वविवेक सहित उनकी सात रचनाएं उपलब्ध हैं। उनकी जीवनी भविष्यपुराण में मिलती है।
मुख्य वक्ता डा प्रकाश चन्द्र यादव ने कहा कि उदयनाचार्य अक्षपाद गौतम से प्रारंभ प्राचीन न्याय की परंपरा के अंतिम प्रौढ़ नैयायिक माने जाते हैं। अपने प्रकाण्ड पाण्डित्य, तीक्ष्ण बुद्धि एवं प्रौढ़ तार्किकता के कारण उदयन उदयनाचार्य के नाम से विख्यात हुए। दशम शतक के उत्तरार्ध में आविर्भूत हुए वे न्याय- परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक माने जाते हैं। विशिष्ट वक्ता के रूप में डा रवि कुमार राम ने कहा कि उदयन की किरणावली, लक्षणावली, बोधसिद्धि, तात्पर्यपरिशुद्धि, आत्मतत्त्वविवेक, न्यायकुसुमांजलि तथा आत्मतत्त्वविवेक नमक सात कृतियां हैं।
उदयनचार्य पीठ के समन्वयक एवं मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ विकास सिंह ने कहा कि आचार्य उदयन ने आठ प्रमुख तर्कों- कार्य, आयोजन, धृति, पद, प्रत्यय, श्रुति, वाक्य और संख्या विशेष के माध्यम से ईश्वर की सत्ता का समर्थन किया। उनके अनुसार जगत् का कोई न कोई कारण अवश्य होना चाहिए। ईश्वर निराकार, नित्य, दयालु, सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान् है। वही जगत् का सृष्टिकर्ता, पालक एवं संहारक है जो जीवों को उनके कर्मानुसार फल प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि उदयनाचार्य रचित न्यायकुसुमांजलि पर चेयर द्वारा शीघ्र ही सात दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जाएगी। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संस्कृत- प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा ने कहा कि उदयनाचार्य अप्रतिम विद्वान् एवं दार्शनिक थे, जिनपर अधिक से अधिक अध्ययन- अध्यापन, लेखन एवं शोध करने की जरूरत है।