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जातीय जनगणना से ही निकलेगा देश में सामाजिक न्याय का रास्ता : प्रमोद मंडल

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मधुबनी/ फुलपरास, बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस नेता प्रमोद कुमार मंडल ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार के 9 सालों में देश में भेदभाव और पक्षपात चरम पर पहुंच गया है। सबका साथ, सबका विकास के नाम पर सत्ता हथियाने वाले प्रधानमंत्री सामाजिक न्याय के शत्रु बन गए हैं। केंद्र सरकार की कार्यशैली से स्पष्ट नजर आता है कि सामाजिक न्याय के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने वाले प्रधानमंत्री के मन में वंचित तबके के प्रति नीयत और नीति में खोट है। इसलिए सरकार जाति जनगणना से कन्नी काट रही है। जबकि अब बिहार के जातिगत सर्वे से बहुत कुछ साफ हो चुका है। देश को मालूम हो गया है कि समाज के पिछड़े, दलित और आदिवासियों का हक कैसे सरेआम मारा जा रहा है। बिहार में OBC + SC + ST 84% हैं। जबकि सरकारी नौकरियों से लेकर सार्वजनिक संसाधनों में इनकी बेहद कम भागीदारी है।
श्री मंडल ने कहा कि बिहार के सर्वे से ये स्पष्ट हो चुका है कि पूरे देश में विभिन्न जातियों के जातिगत आंकड़े जानना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि बगैर इसके सामाजिक न्याय के सपने को साकार नहीं किया जा सकता, समाज में संक्रामक रोग की तरह फैले भेदभाव को खत्म नहीं किया जा सकता है। जब तक OBC + SC + ST वर्गों की वास्तविक स्थिति की जानकारी नहीं होगी तब तक इनका कल्याण और सशक्तिकरण किसी कीमत पर संभव नहीं है। ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय को उनका हक दिलाने के ल‍िए कांग्रेस पूरी तरह से जातीय जनगणना के पक्ष में है। राहुल गांधी लगातार इसकी मांग कर रहे हैं। मोदी सरकार के 9 साल के कार्यकाल में देश के इन वंचित वर्गों को खोखले वादों के अलावा कुछ नहीं मिला है। यदि मोदी सरकार ओबीसी, दलित, आदिवासी समुदाय की हितैषी होती तो 2011 की जनगणना के जातिगत आँकड़े उजागर करने से परहेज नहीं करती। नरेंद्र मोदी चुनावी मंचों और रैलियों में ‘मैं पिछड़ी जाति में पैदा हुआ हूं’ कहकर वोट तो मांगते हैं, लेकिन दो-दो बार प्रधानमंत्री बनने के बाद ओबीसी की भलाई के लिए कुछ करना तो दूर, सोचते तक भी नहीं। ऐसी स्थिति में सामाजिक न्याय कैसे मिलेगा। मोदी सरकार द्वारा इन वर्गों की उपेक्षा का नतीजा है कि आज देश को चलाने वाले भारत सरकार के 90 सचिवों में केवल तीन ओबीसी समुदाय से आते हैं। जो भारत का मात्र 5% बजट संभालते हैं। इसके अलावा देश की दिशा और दशा तय करने वाले शीर्ष संस्थानों में वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व लगभग न के बराबर है। आईआईटी, आईआईएम और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उच्च पदों पर नाम मात्र के ही ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्ग के लोग हैं।
ये दुर्भाग्य ही है कि इन वंचित वर्गों का वोट लेकर भाजपा भ्रष्टाचार की मलाई खा रही है, वहीं यह तबका अपने हक के लिए तानाशाह सिस्टम से आज भी जंग लड़ रहा है। मौजूदा स्थिति में देश के ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्गों को राजनीतिक और आर्थिक शक्ति की ज़रूरत है। इसलिए कांग्रेस पार्टी और सामाजिक न्याय में विश्वास करने वाले देशवासी मोदी सरकार से जातीय जनगणना कराकर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं। खुद को ओबीसी बताकर पूरे वंचित समाज को गुमराह करने वाले प्रधानमंत्री को अब इस पर जिद नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जातिगत जनगणना भेदभाव को समाप्त कर सामाजिक न्याय की स्थापना करने का पहला और सबसे जरूरी कदम है।