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बंदी में भी आबाद, बिकती जहरीली शराब ,सुशासन बाबू पर बड़ा सवाल

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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डॉ. हर्ष वर्द्धन (लेखक)

बिहार /एक बार फिर बिहार के राजनीतिक धर्म है । बिहार में यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार नाजुक मुद्दा पर गर्म बाहर जारी है विपक्ष कमर कसे हुए हैं, तो सरकार के मुखिया नीतीश कुमार भी आपा खोते दिख रहे हैं। विपक्षी नेता जहां आरोप लगा रहे हैं कि बिहार लालटेन युग से आगे निकल कर “बोतल युग” में प्रवेश कर चुका है, तो वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सदन में भाजपा पर तंज कसते हुए उन्हें शराब विक्रेता और गंदा काम करने वाले लोग कह रहे हैं। इतना ही नहीं नीतीश जी ने आपा खोते हुए यह भी गलत बयानबजी कर दी कि , जो पिएगा वह मरेगा ही सवाल है कि पूर्ण शराबबंदी के बावजूद आखिर शराब बिक क्यों रहा है ? कहां है शासन-प्रशासन, और उत्पाद विभाग? कितनी गहरी नापाक गठबंधन है शराब माफियाओं एवं प्रशासन के बीच जो खुलेआम शराब बिक रहा है ?नीतीश जी का आग बबूला होना स्वाभाविक है, क्योंकि सरकार के वह मुखिया हैं , प्रशासन की बागडोर उनके हाथ में हैं, ऊपर से बिहार में पूर्ण शराबबंदी है फिर भी शराब बिक रही है और लोगों की मौत हो रही है तो मीडिया से लेकर विपक्ष तक हमलावर होगा ही , यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
जी हां, पूरी कहानी पूर्ण शराबबंदी के बावजूद सूबे के छपरा जिले में जहरीली शराब से बिहार में 40 लोगों की हुई दर्दनाक मौत को लेकर है। सवाल मौजूं हैं कि क्या शराब माफिया इतने ताकतवर हैं कि वह विधि के द्वारा स्थापित शासन के लिए निरंतर चुनौती बने हैं, हर बार मौत होती है और फिर वही जांच – पड़ताल लेकिन जो समस्या का व्यवहारिक निदान होना चाहिए वह नहीं हो पाता है।कहने को सूबे में सुशासन है, कानून का इकबाल बुलंद है , फिर क्यों बार-बार जहरीली शराब कांड बिहार के माथे पर ही बतौर कलंक क्यों जुड़ती हैं? कितने शर्म की बात है कि पिछले 4 महीनों में जहरीली शराब कांड की 14 घटनाएं हो चुकी हैं, दर्जनों घरों के चिराग बुझ चुके हैं लेकिन सरकार के पास पूर्ण शराबबंदी के विकल्प के तौर पर कोई मेकानिज्म नहीं था और न हैं, जिसके द्वारा इस गहराई को पाटा जा सके!
बार-बार हो रही मौतों पर सज रही राजनीति का अखाड़ा सही नहीं है , यहां गहरी संवेदना और सामाजिक पहल करने की तीव्र जरूरत है, जिसमें पक्ष विपक्ष एवं समाज के बुद्धिजीवी तथा समाजशास्त्रियों को पहल करनी चाहिए क्योंकि हमें एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि किसी भी कानून को लागू करने में कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं होती है हकीकत तो है कि कानून की सफलता कानून लागू करने वाले लोगों एवं स्वीकार करने वाले लोगो पर निर्भर करती है। इस पूर्ण शराबबंदी प्रकरण में अगर गंभीरता पूर्वक देखा जाए तो कानून को जबरन थोपा गया था जिसे सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल पाई क्योंकि सूबे के लोगों की सोच एवं जागरूकता का स्तर अपेक्षाकृत बेहद कमजोर एवं कम है । नतीजतन मुख्यमंत्री का यह प्रयोग फिलवक्त भी एक चुनौती बना हुआ है। बतौर समाजशास्त्री हमें यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि किसी भी कानून की सफलता एवं सुनिश्चितता तभी तय होगी जब उसे सोशल एसेप्टेंस यानी सामाजिक स्वीकृति मिले। बहरहाल, छपरा जहरीली शराब कांड के बहाने शराब माफियाओं एवं प्रशासन के नापाक गठबंधन पर बड़ा हमला हो और असमय मौत के गाल में समाए लोगों के साथ हर हाल में न्याय हो, यह वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है।