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चुनाव के वक्त काम के नाम पर धार्मिक स्थलों के निर्माण का काम गिनाया जाता और चुनावी वायदे में धर्म की प्रगति

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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चुनाव और धर्म ऐसे साथी हैं जो आजाद भारत के साथ बढ़ते चले आ रहे हैं ,पर बीते कुछ वर्षों में धर्म की राजनीति ने दोनों साथियों का ऐसा तख्तापलट किया है कि ये साथी अब साथ निभाने भर सीमित नहीं रहे।चुनावों में धर्म का हावी होना उतना ही जरूरी माना जाने लगा है जितना चुनावों में चिह्न का चुनाव के वक्त काम के नाम पर धार्मिक स्थलों के निर्माण का काम गिनाया जाता है और चुनावी वायदे में धर्म की प्रगति विकास का स्तर मंदिर मस्जिद तक सीमित रह गया है।

चाहे बाहर बेरोजगारी से भिखारियों की संख्या धार्मिक स्थलों के दरवाजे पर बढ़ती ही क्यों न चली जा रही हो!
धर्म की शक्ति इतनी बढ़ गई है कि विकास इसके सामने बौना दिख रहा है।शायद यही वजह है कि भारत विकासशील से विकसित देशों की सूची में आज तक नहीं जा पाया और आज विकासशील देशों की सूची से भी बाहर आने को है। चुनावों में धर्म का राजनीति ऐसी ही चलती रही तो आजादी की जद्दोजहद में विकास का जो सपना हमारे शहीदों ने देखा था वह धुंधला पड़ जाएगा।
जनता के बीच धर्म, जाति की लड़ाई का फायदा हमारे राजनेता उठाते हैं व हमें हमारे समुदाय के विकास व धर्म के नाम का लाॅलीपाॅप पकड़ा देते है हम स्वाद लेते रह जाते हैं और व अपनी राजनैतिक रोटियां सेंक कर खा भी लेते हैं।धर्म हमें गलत रास्ते पर जाने से बचाता है, हमें सही राह दिखाता है हमें सूकून शांति देता है वह हमें किसी का खून बहाना किसी का गला काटना नहीं सिखाता फिर क्यों हम धर्म के नाम पर राजनेताओं के इशारों पर ऐसा करते हैं जो हमे शर्मशार करता है यदि हम सही मायने में धर्म का पालन करें तो ये दुनिया में कोई गम ही न हो सभी मिल जुल कर खुशी खुशी रहें लेकिन हम धर्म के सही अर्थ को न समझ कर पता नहीं क्या क्या समझ लेते हैं क्यों हम दूसरों के हाथों का खिलौना बन जाते हैं।दूसरों के हाथ की कठपुतली बन कर नाचते रहते हैं हमें अपने विवेक और अंर्तमन की आवाज सुननी चाहिये न कि दूसरों के द्वारा फैली गईं अफवाहों पर ध्यान देना चाहिये।