देश की सांप्रदायिक अलगाव में ब्रिटिश हुकूमत के बाद घुसपैठिया सफल
दिल्ली /भारत में भारी संख्या में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई आदि भी पूरी स्वतन्त्रता के साथ रहते हैं और बराबर के नागरिक अधिकारों से लैस हैं। इस देश का समाज भी विविधतापूर्ण संस्कृति का हामी है। इस देश में निर्विवाद रूप से ‘सर्वधर्म समभाव’ रूप में रखने कि वरीयता देती है और भारत का संविधान भी यही घोषणा करता है। लेकिन भारत में सांप्रदायिक अलगाव की राजनीति का इतिहास पुराना और भयावह है।आक्रामक सांप्रदायिकता के चलते स्वाधीनता के पूर्व भी तमाम दंगे हुए थे और आज भी होते रहते हैं। सांप्रदायिक दंगों के पीछे भड़काऊ ताकतें एवं संकीर्ण मानसिकताएं होती हैं। भारतीय समाज में सौहार्द और सद्भाव को बढ़ाने वाली शक्तियां भी अपना काम करती हैं लेकिन वह विफल साबित हो रही हैं।
ब्रिटिश हुकूमत के दौर में सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाये रखने के लिए भारतीयों के बीच फूट डाली और विभिन्न समुदायों के बीच हमेशा के लिए दूरियां पैदा कर दीं। हम बचपन से ही यह सुनते आये हैं कि अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति उन्होंने अपनाई थी।
हाल के कुछ वर्षों से देश में सनातनी विचारधारा बाली भगवा परचम फहरता हुआ दिखाई दे रहा है और इसमें कोई संदेह भी नहीं है। शायद यह पड़ोसी देशों में चुभन का विषय हो सकता है और नतीजा तन एक बड़ी सामाजिक मतभेद में साज़िश के तहत पहला हथियार घुसपैठ अपना कर देश विरोधी ताक़तों को टारगेट कर का खेल जारी है। भले ही मोहरे कोई हों, मगर इस सब खेल के पीछे कोई बड़ा शातिर दिमाग नजर आ रहा है। देश में यकायक सांप्रदायिक वारदातें हो रही हैं। लग यही रहा है कि सौहार्द बिगाड़ने की कोई बड़ी साजिश चल रही है और प्रशासनिक मशीनरी की तमाम कोशिशें के बावजूद इसे रोकने में विफल है। सूत्रों के अनुसार भारत मे लगभग दश करोड़ से अधिक विदेशी घुसपैठिये फर्जी प्रमाण पत्र के जरिये सरकारी योजनाओं पर अधिकार जमाकर लाभ उठा रहे हैं जो बेहद चिंता का विषय है। पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट की घटना के बाद वहां अराजकता फैली हुई है। ऐसे में वहां से एक बार फिर बड़े पैमाने पर घुसपैठियों के भारत आने की आशंका पैदा हो गई है। इससे देश के कई हिस्सों के राज्य प्रभावित हो सकते हैं।
हाल मैं भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर अपनी चिंताओं को साझा किया। उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र के लिए लाखों अवैध प्रवासियों का भार उठाना संभव नहीं है, क्योंकि यह न केवल देश की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करता है, बल्कि कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर दबाव भी डालता है।
साथ ही उन्होंने लोगों से अपील की कि वे देशभक्ति और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दें और क्षुद्र राजनीति के बजाय इस समस्या के समाधान पर ध्यान केंद्रित करें। प्रश्न है कि सांप्रदायिक अलगाववाद कब तक भारत के अस्तित्व एवं अस्मिता के लिये खतरा बना रहेगा ?
देश के कुछ हिस्सों के सांप्रदायिक आक्रामकता ने देश के व्यापक जनधन की हानि की है और कुछ छानबीन की परिणाम बेहद चौंकाने वाली है।इसलिए अब समय आ गया है कि देश के सभी वर्गों के लोगों को अपने आसपास व परिवार में ग़लत गतिविधियों लिप्त व्यक्तियों को नज़रअंदाज़ ना करें और सांप्रदायिक नफरत एवं द्वेष की मानसिकता की समाप्ति को लेकर व्यापक जन अभियान अपनाएं। इसके लिये देश के राजनीतिक दलों को भी ईमानदार प्रयास करने होंगे। भारत में कई तरह की शासन अधिनियम प्रणाली पहले भी लागू किया है और भविष्य में इसे और कठोर करने की ज़रूरत है।