संस्कृति

विवाह संस्कार धर्म कि जय

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प्रदीप कुमार नायक

सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन मिलता है इन संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है | मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद वैवाहिक संस्कार महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सनातन धर्म में बताए गए चार आश्रम में सबसे महत्वपूर्ण है गृहस्थाश्रम |
गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिए विवाह संस्कार आवश्यक है | विवाह दो शब्दों से मिलकर बना है | वि + वाह जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ विशेष रुप से दायित्वों का वहन करना |
विवाह संस्कार में पाणिग्रहण संस्कार मुख्य है जिसमें वर के द्वारा कन्या का हाथ ग्रहण किया जाता है और उसके जीवन की जिम्मेदारियों को संभालने का संकल्प लिया जाता है | मंडप में उपस्थित देवताओं , अग्नि एवं ध्रुव तारे को साक्षी मानकरके दो अन्जान पथ के पथिक एक साथ जीवन यापन करना प्रारंभ करते हैं |
सनातन धर्म की मान्यता है कि मनुष्य तीन प्रकार से ऋणी होता है देवऋण , ऋषिऋण एवं पितृऋण | पितृऋण से उऋण होने के लिए विवाह संस्कार होना परम आवश्यक है | भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक , सामाजिक अनुबंध मात्र नहीं बल्कि दांपत्य के द्वारा एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप है इसलिए कहा गया है “धन्यो गृहस्थाश्रम:” |
विवाह संस्कार में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध होना परम आवश्यक है क्योंकि आत्मिक संबंधी सात जन्मो तक साथ निभाते हैं | इस प्रकार विवाह संस्कार की मान्यता सनातन धर्म की धुरी कहा जा सकता है |
आज जिस प्रकार मनुष्य अपने सभी संस्कार भूलता चला जा रहा है उसी प्रकार विवाह संस्कार भी भव्यता की भेंट चढ़ता चला जा रहा है | पूर्व काल में जहां वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विवाह संपन्न होता था वही आज वैदिक मंत्रोच्चार मात्र दिखावा बनकर रह गए हैं क्योंकि अधिकतर समय जयमाल स्टेज पर अपनी भव्यता दिखाने में ही व्यतीत कर दिया जाता है |
आज का विवाह समाज के लिए अधिक से अधिक धन खर्च करने का पर्याय बन गया है | हमारे सनातन शास्त्र ने बताया था कि पति-पत्नी के बीच जन्म जन्मांतरों का संबंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता है , वहीं आज जरा जरा सी बात पर सात जन्मों के संबंध को तोड़ देना बहुत आसान सा लग रहा है | आज के लोग अधिक पढ़े लिखे होकर भी आत्मिक संबंध नहीं बना पा रहे हैं क्योंकि कहीं ना कहीं से उनमें अहंभाव की भावना भी है |
विवाह कोई साधारण खेल नहीं है विवाह दो प्राणी , दो आत्माओं का पवित्र बंधन है जिसमें अलग अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण पति-पत्नी मिलकर करते हैं | इस संसार में कोई भी पूर्ण नहीं है पति हो चाहे पत्नी कुछ ना कुछ अपूर्णता दोनों में होती है इसी अपूर्णता को दोनों मिलकर के अपनी विशेषताओं से पूर्ण कर लेने वाले वैवाहिक संबंधों का निर्वहन कर पाते हैं |
एक दूसरे को अपनी योग्यता और भावनाओं से लाभ पहुंचाते हुए गाड़ी में लगे हुए दो पहियों की तरह प्रगति पथ पर अग्रसर होते रहना ही विवाह का उद्देश्य है , परंतु आज दांपत्य जीवन में भी वासना ने अपना घर बना लिया है शायद इसीलिए आज वैवाहिक संबंध पल भर में टूट जा रहे हैं | विवाह संस्कार के महत्व को समझते हुए इस पर विचार करने एवं मंडप में दिए गए वचनों को याद करने की आवश्यकता है जिससे कि समाज में वैवाहिक संबंध विच्छेदन कम हो सके |
सनातन धर्म की यही दिव्यता है कि जहां अन्य समुदायो में विवाह को एक समझौता माना गया है वहीं सनातन धर्म ने विवाह को एक संस्कार की संज्ञा दी है |
भज मन जय श्री राम।
धर्म की जय हो अधर्मी का नाश हो l
प्राणियों में सद्भावना हो विश्व का कल्याण हो वसुधैव कुटुंबकम
हर हर महादेव जय महाकाल l
क्या नाचने गाने को विवाह कहते हैं, क्या दारू पीकर हुल्लड़ मचाने को विवाह कहते हैं, क्या रिश्तेदारों और दोस्तों को इकट्ठा करके दारु की पार्टी को विवाह कहते हैं ? डीजे बजाने को विवाह कहते हैं, नाचते हुए लोगों पर पैसा लुटाने को विवाह कहते हैं, घर में सात आठ दिन धूम मची रहे उसको विवाह कहते हैं? दारू की 20-25 पेटी लग जाए उसको विवाह कहते हैं ? किसको विवाह कहते हैं?
विवाह उसे कहते हैं जो बेदी के ऊपर मंडप के नीचे पंडित जी मंत्रोच्चारण के साथ देवताओं का आवाहन करके विवाह की वैदिक रस्मों को कराने को विवाह कहते हैं।
लोग कहते हैं कि हम आठ 8 महीने से विवाह की तैयारी कर रहे हैं और पंडित जी जब सुपारी मांगते हैं तो कहते हैं अरे वह तो भूल गए जो सबसे जरूरी काम था वह आप भूल गए विवाह की सामग्री भूल गए और वैसे तुम 10 महीने से विवाह की कोनसी तैयारी कर रहे हैं।
विवाह – नहीं साहब आप दिखावे की तैयारी कर रहे हो कर्जा ले लेकर दिखावा कर रहे हो हमारे ऋषियों ने कहा है जो जरूरी काम है वह करो । ठीक है अब तक लोगों की पार्टियां खाई है तो खिलानी भी पड़ेगी ठीक है समय के साथ रीति रिवाज बदल गए हैं मगर दिखावे से बचे।*
मैं कहना चाहता हूं आज आप दिखावा करना चाहते हो करो खूब करो मगर जो असली काम है जिसे सही मायने में विवाह कहते हैं वह काम गौण ना हो जाऐ, 6 घंटे नाचने में लगा देंगे, 4 घंटे मेहमानो से मिलने में लगा देंगे’, 3 घंटे जयमाला में लगा देंगे, 4 घंटे फोटो खींचने में लगा देंगे और पंडित जी के सामने आते ही कहेंगे पंडितजी जी जल्दी करो जल्दी करो , पंडित जी भी बेचारे क्या करें वह भी कहते है सब स्वाहा स्वाहा जब तुम खुद ही बर्बाद होना चाहते हो तो पूरी रात जगना पंडित जी के लिए जरूरी है क्या उन्हें भी अपना कोई दूसरा काम ढूंढना है उन्हें भी अपनी जीविका चलानी है, मतलब असली काम के लिए आपके पास समय नहीं है। मेरा कहना यह है कि आप अपने सभी नाते, रिश्तेदार, दोस्त ,भाई, बंधुओं को कहो कि आप जो यह फेरों का काम है वह किसी मंदिर, गौशाला, आश्रम या धार्मिक स्थल पर किसी पवित्र स्थान पर करें ।
जहां दारू पीगई हों जहां हड्डियां फेंकी गई हों क्या उस मैरिज हाउस उह पैलेस कंपलेक्स मैं देवता आएंगे, आशीर्वाद देने के लिए, आप हृदय से सोचिए क्या देवता वहां आपको आशीर्वाद देने आऐंगे, आपको नाचना कूदना, खाना-पीना जो भी करना है वह विवाह वाले दिन से पहले या बाद में करे मगर विवाह का कोई एक मुहूर्त का दिन निश्चित करके उस दिन सिर्फ और सिर्फ विवाह से संबंधित रीति रिवाज होने चाहिए , और यह शुभ कार्य किसी पवित्र स्थान पर करें। जिस मै गुरु जन आवें, घर के बड़े बुजुर्गों का जिसमें आशीर्वाद मिले ।
आप खुद विचार करिये हमारे घर में कोई मांगलिक कार्य है जिसमें सब आये और अपने ठाकुर को भूल जाऐं अपने भगवान को भूलजाऐं अपने कुल देवताओं को भूलजाये।*
मेरा आपसे करबद्ध निवेदन है कि विवाह नामकरण अन्य जो धार्मिक उत्सव है वह शराब के साथ संपन्न ना हो उन में उन विषय वस्तुओं को शामिल ना करें जो धार्मिक कार्यों में निषध है l