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त्रिवेणी नाट्य महोत्सव के आखिरी दिन नाटक ” गधे की बारात ” का मंचन

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पटना / माध्यम फाउंडेशन द्वारा कालिदास रंगालय में आयोजित तीन दिवसीय त्रिवेणी नाट्य महोत्सव शनिवार को संपन्न हुआ। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत मुख्य अतिथि बिहार सरकार के सूचना जनसम्पर्क मंत्री संजय झा, विशिष्ट अतिथि जदयू नेता संतोष कुशवाहा, शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक रमेश चंद्र, कला समीक्षक विनोद अनुपम, वरिष्ठ रंगकर्मी अभय सिन्हा, किरण कांत वर्मा, मिथिलेश सिंह, संजय उपध्याय व माध्यम फाउंडेशन के सचिव व निर्देशक धर्मेश मेहता ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर की। इसके पश्चात आगत अतिथियों द्वारा प्रमोद कुमार त्रिपाठी को मगध रत्न रंग सम्मान, दीपक सिंह को मगध श्री रंग सम्मान, रास राज को मगध शिखर रंग सम्मान, पायल कुमारी को त्रिवेणी रंग श्रेष्ठ सम्मान, हॉविन्स कुमार को मौर्य रत्न रंग श्रेष्ठ सम्मान व नबाब आलम को मगध रंग लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान से सम्मानित किया गया। कलाकारों को सम्मान के रूप में शॉल, मोमेंटो एवं प्रमाण पत्र दिया गया। इसके बाद ओम प्रकाश, राधा सिन्हा और कुमार उदय सिंह के द्वारा पारंपरिक लोक नृत्य का प्रदर्शन किया गया।

IMG 20230527 WA0014 त्रिवेणी नाट्य महोत्सव के आखिरी दिन नाटक " गधे की बारात " का मंचन नुक्कड़ स्थल पर शशि फाउंडेशन द्वारा नुक्कड़ नाटक जैसा बाप वैसा बेटा का प्रदर्शन मुकेश चंद्र विधार्थी के निर्देशन में किया गया।

IMG 20230527 WA0018 त्रिवेणी नाट्य महोत्सव के आखिरी दिन नाटक " गधे की बारात " का मंचननाटक गधे की बारात हमारे ढोंगी समाज के दोहरे मापदंड पर व्यंग्य है। यह जीवन की बेरुखी को हास्यास्पद बनाता है। नाटक का अर्थ है की दुनिया में केवल दो वर्ग हैं, अमीर और गरीब। वे बिलकुल अलग – अलग हैं और कभी एक नहीं हो सकते। कोई भी जो बीच के अंतर को भरने की कोशिश करता है। अपना जीवन बर्बाद कर लेता है। कहानी की पंक्ति यह है की देवता इंद्र अपने गंधर्व को गधा होने का श्राप देते हैं क्योंकि उन्होंने अपने दरबार में अप्सरा रंभा का अपमान किया था। खेद महसूस करने पर। इंदर उसे वरदान देता है कि जब भी वह वहां राजा की बेटी से शादी करेगा। वह इस श्राप से मुक्त हो जाएगा। गधा धरती पर आ जाता है और कल्लू नाम के एक कुम्हार के साथ रहने लगता है। वे उसकी देखभाल करते हैं और एक बेटे की तरह उसका पालन-पोषण करते हैं। लेकिन जब समय आता है और राजकुमारी से शादी कर लेता है तो वह उन्हें भूल जाता है और कल्लू और उसकी पत्नी की देखभाल करने वाली अपनी खूबसूरत पत्नी के साथ स्वर्ग के लिए निकल जाता है। इसी घोर उदासीनता को प्रासंगिक पंचों को अपनाकर नाटक में दिखाया गया है। नाटक श्री हरिभाई वडगांवियार द्वारा मराठी में लिखा गया है और श्री द्वारा हिंदी में अनुवाद किया गया है। राजेंद्र मेहरा और रमेश राजहंस।

इस नाटक में भाग लेने वाले कलाकार इस प्रकार है :-
कल्लू – अविनाश सैनी, गंगी – पारुल आहूजा, इंदर – विश्व दीपक त्रिखा, ब्रहस्पति – डॉक्टर सुरेंद्र शर्मा, चित्रसेन – अनिल शर्मा, रंभा – रिंकी बत्रा, राजा – विश्व दीपक त्रिखा, दीवान – डॉक्टर सुरेन्द्र शर्मा, राजकुमारी – रिंकी बत्रा, रजनी कुमारी, बुआ जी – निकिता, ममता कुमारी, राजनर्तकी – श्वेता, मेकअप – अनिल शर्मा, हारमोनियम – विकास रोहिल्ला, नगारा – सुभाष, निर्देशक – विश्व दीपक त्रिखा अन्य लोगों महजूद थे।