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व्यावहारिक रूप से सिद्धांतों के प्रति समर्पित राजनीति का अब कोई मोल नहीं

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राजनीति का खेल किसी गहरे रोमांच से कम नहीं

देशभक्ति और जनसेवा की जुगाली करते करते दांव खेला जाता सत्ता हथियाने

उप संपादक

यों तो राजनीति में भांति भांति के जादूगर हुआ करते हैं।जो अपने वाक चातुर्य से आम नागरिकों को निरंतर बहलाया करते हैं।लेकिन सभी का जादू चल सकना संभव नहीं होता जिस किसी के आका की बलिहारी होती है सारी कायनात उसी के साथ चला करती है।राजनीति एक प्रकार से सीढ़ी के समकक्ष होती है एक शीर्ष पर होता है और अंतिम पायदान पर कार्यकर्ता खड़ा होता है।अलग अलग लोग अलग अलग सीढ़ी पर ठहरे हुए होते हैं।जगह मिलने पर अगली सीढ़ी पर पैर रखने के लिए जगह बनाई जाती है कभी कभी अगले को धक्का देकर अपने लिए जगह सुरक्षित की जाती है  ।

यह सिलसिला निरंतर चलता है इस समय सक्रिय राजनीति धक्का मारो और आगे बढ़ो के आधार पर क्रियान्वित होती दिखाई देती है।खैर कुछ भी कहो लेकिन राजनीति का खेल किसी गहरे रोमांच से कम नहीं होता विशेषकर जब चुनाव आते हैं नेताओं तथा कार्यकर्ताओं के नजारे देखते ही बनते हैं । देशभक्ति और जनसेवा की जुगाली करते करते सत्ता हथियाने का दांव खेला जाता है। आजकल प्रचार अभियान भी धनसाध्य होता जा रहा है वित्तीय निवेश के बिना चुनावी सफलता संभव नहीं है हर छोटा और बड़ा चुनाव लगातार खर्चीला होता जा रहा है। इसीलिए आजकल चुनाव लड़ने का भी बजट बनाना जरूरी होता जा रहा है।

राजनीति के सारे के सारे खिलाड़ी अवसर की तलाश में दिखाई देते हैं जो अवसर पा जाते हैं हाथ आए अवसर को जाने नहीं देते।चुनाव लड़ने से पूर्व इस बात पर अवश्य ही गौर किया जाता है कि चुनाव जीतने के बाद उन्हें कितना बजट मिलने वाला हैै।देखते ही देखते राजनीति के तौर तरीकों में व्यापक परिवर्तन आ चुका है!व्यावहारिक रूप से सिद्धांतों के प्रति समर्पित राजनीति का अब कोई मोल नहीं रह गया है।यही नहीं नागरिकों का एक वर्ग राजनीति में स्वार्थसिद्धि को काफी हद तक स्वाभाविक मान कर चलता है!शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक ऐसी स्वाभाविकता पर कहीं कोई सवाल नहीं उठाया जाता।अब तो इसने एक परंपरा का रूप अख्तियार कर लिया है पता नहीं यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा।

निश्चित रूप से राजनीति में परोपकार की भावना विलुप्त हो गई है।परोपकार का स्वांग रचते हुए सत्ता के प्रति गिद्धदृष्टि का भाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है!एक प्रकार से सत्ता के प्रति आतुरता के चलते राजनीति में नैतिकता भी तार तार होने लगी है। ऐसे में समय की मांग है कि राजनीति में उच्चस्तरीय आदर्शों की स्थापना करने की दिशा में विभिन्न राजनीतिक दल अपनी रीति नीति में परिवर्तन करें।