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उस दिन सिर्फ एक घर का दरवाज़ा बंद नहीं हुआ था बल्कि भारतीय राजनीति के एक युग का अंतिम पन्ना भी चुपचाप

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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वह दिन था 31 मई 2022 ई०, जब शरद यादव का दिल्ली स्थित 7, तुगलक रोड वाला सरकारी बंगला खाली कराया गया था, और उस दिन सिर्फ एक घर का दरवाज़ा बंद नहीं हुआ था बल्कि भारतीय राजनीति के एक युग का अंतिम पन्ना भी चुपचाप मुड़ गया था, क्योंकि वह घर सिर्फ ईंटों और दीवारों का ढांचा नहीं था।वह शरद यादव के संघर्ष, उनकी विचारधारा, उनके जमीनी आंदोलन, उनकी आवाज़, उनकी यात्राओं और उनकी पूरी राजनीतिक आत्मा का आश्रय था। दो दशक से अधिक समय तक जिन कमरों में सामाजिक न्याय की बैठकों की गूंज उठती थी, जहाँ गरीब और वंचितों की पैरवी के लिए देर रात तक दीप जलता था, जहाँ सत्ता को आईना दिखाने वाला एक साहसी नेता हर नए सूर्योदय के साथ तैयार होता था।उन्हीं कमरों को एक सरकारी आदेश की स्याही ने पल भर में खाली करवा दिया। और उस क्षण ऐसा लगा जैसे लोकतंत्र ने फिर याद दिलाया कि यहाँ आदर्श कितने ही बड़े क्यों न हों, मगर सरकारी बंगले दिलों की तरह नहीं रहते वे समय और सत्ता के हिसाब से बदल जाते हैं, चाहे भीतर कितनी ही यादें बसती हों।

आज 25 नवम्बर 2025 ई० को जब लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी को पटना के 10, सर्कुलर रोड वाले बंगले को खाली करने का आदेश मिला है, तो यह दृश्य मानो इतिहास की दोहराई हुई प्रतिध्वनि बनकर सामने आया है क्योंकि वही दर्द, वही विडंबना, वही राजनीतिक अनिश्चितता फिर लौट आई है। यह वही बंगला है जहाँ से बिहार की राजनीति ने करवटें लीं, जहाँ सामाजिक न्याय की धड़कनें पनपीं और जहाँ वर्षों तक बिहार की जनता की उम्मीदें दस्तक देती रहीं, लेकिन सरकार की नई फाइलों ने यह बता दिया कि पते बदलने में इतिहास नहीं देखा जाता, बस नियम देखा जाता है, और कभी-कभी वे घर भी छूट जाते हैं जो स्मृतियों और संघर्षों की नींव पर खड़े थे।

31 मई 2022 ई० को शरद यादव का घर छोड़ना और 25 नवम्बर 2025 ई० को लालू–राबड़ी पर आदेश आना इन दोनों क्षणों ने यह सिखाया कि सरकारी आवास किसी नेता की पहचान नहीं बल्कि सत्ता की अस्थायी छाया होते हैं, जहाँ शक्ति का प्रभाव चाहे जितना भी हो, अंततः निर्णय वही तय करते हैं जो एक सादा सरकारी पत्र में लिखे होते हैं, और लोकतंत्र सभी को एक दिन यह समझा देता है कि यहाँ कोई भी हमेशा के लिए नहीं ठहरता न नेता, न पते, न अधिकार।

शरद यादव ने अपना घर 2022 ई० में छोड़ा, पर वह बंगला छोड़ते समय उन्होंने सिर्फ एक मकान नहीं छोड़ा था।उन्होंने अपने जीवन के अनगिनत अध्याय पीछे छोड़ दिए थे। लेकिन यही राजनीति की कठोरता है कि उसकी यात्रा चाहे कितनी ही महान क्यों न हो, उसका अंत अक्सर एक प्रशासनिक आदेश से होता है जो वर्षों की जड़ों को एक झटके में उखाड़ देता है और उन्हीं दीवारों को किसी और नाम के हवाले कर देता है, जैसे स्मृतियों की जगह पर अचानक खालीपन उग आता हो।