4 दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व आज से, जानें हर दिन का महत्व और संध्या अर्घ्य की सही डेट
हिंदू धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है। यह व्रत हिंदू धर्म के सभी व्रतों में सबसे कठोर व्रतों में से एक माना जाता है। इस पर्व में भक्त सूर्य देव और छठी मईया की पूजा करते हैं। यह पर्व चार दिनों तक चलता है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बड़े श्रद्धा भाव से छठ का पर्व मनाया जाता है। छठ व्रत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें व्रती महिलाएं पूरे 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखती हैं। वे बिना जल और अन्न ग्रहण किए सूर्य देव को दो बार अर्घ्य देती हैं। पहले डूबते सूर्य को फिर अगले दिन उगते सूर्य को। इसी के साथ यह व्रत पर्व पूर्ण होता है।
छठ पूजा 2025- इस बार छठ पर्व 25 अक्टूबर (शनिवार) से शुरू होकर 28 अक्टूबर (मंगलवार) तक चलेगा।
पहला दिन: नहाय-खाय (25 अक्टूबर)
दूसरा दिन: खरना (26 अक्टूबर)
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर)
चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य और पारण (28 अक्टूबर)
पहला दिन: नहाय-खाय
छठ पर्व की शुरुआत इसी दिन होती है। व्रती महिलाएं किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करती हैं और शुद्धता के साथ व्रत की शुरुआत करती हैं। इस दिन सादा और सात्विक भोजन किया जाता है।
25 अक्टूबर को सूर्योदय सुबह 6:28 बजे और सूर्यास्त शाम 5:42 बजे रहेगा।
दूसरा दिन- खरना
खरना के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। शाम को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से खाना बनाकर पूजा होती है। गुड़ की खीर (रसिया) और घी से बनी रोटी का प्रसाद तैयार किया जाता है। सूर्य देव की आराधना के बाद यह प्रसाद पहले खुद व्रती ग्रहण करती हैं और फिर परिवार व आस-पड़ोस में बांटा जाता है। इसके बाद अगले दिन सुबह सूर्य अर्घ्य तक व्रती जल और अन्न का पूर्ण त्याग करती हैं।
तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य
यह छठ का सबसे भावनात्मक और महत्वपूर्ण दिन होता है। व्रती महिलाएं शाम को नदी या तालाब में खड़ी होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। पूरा परिवार व्रती के साथ घाट पर उपस्थित रहता है और सामूहिक रूप से सूर्यदेव की आराधना करता है।
इस दिन सूर्यास्त शाम 5:40 बजे होगा।
चौथा दिन-ऊषा अर्घ्य और पारण
अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसी के साथ 36 घंटे का निर्जला उपवास पूरा होता है। व्रती महिलाएं सूर्योदय के समय (सुबह 6:30 बजे) जल में डूबकी लगाकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और जीवन में ऊर्जा की कामना करती हैं। इसके बाद प्रसाद और जल ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है।

