कौन थे बिग्रेडियर भावनी सिंह, लाहौर पर कब्जा करने की कर ली थी तैयारी,मिला उन्हें महावीर चक्र सम्मान
सा ल 1971 में हुये भारत-पाकिस्तान की जंग में कई बीर सैनिक ने अपने साहस और बलिदान से भारतीय इतिहास में अपना अमिट छाप छोड़ गए ।जिन्हें आने वाले पीढ़ी कभी भूल नही सकते।आज वैसे हीं एक भारतीय सेना के एक जवांज नायक का यहां चर्चा करते हैं जिसका नाम स्वर्ण अक्षर में भारतीय इतिहास में दर्ज है।
ये छाछरो युद्ध के नायक और भारत-पाक युद्ध के हीरो महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर भवानी सिंह की वीरगाथा है जो आज भी जयपुर की गलियों में सुनाई जाती है। भारतीय सेना के वीर योद्धा और जयपुर राजघराने के अंतिम महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह ना सिर्फ राजस्थान, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का प्रतीक हैं।
उन्होंने साल 1971 के भारत-पाक युद्ध में साहसिक प्रदर्शन किया था।जिस से आज भी सेना प्रेरणा के रूप में लेते हैं।
इस युद्ध के दौरान ब्रिगेडियर भवानी सिंह, तत्कालीन 10 पैराशूट ब्रिगेड के कमांडर के रूप में पश्चिमी मोर्चे पर तैनात थे। पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में छाछरो कस्बे को जीतने के लिए उन्होंने गहरी रणनीति के साथ एक तेज और साहसी सैन्य अभियान चलाया. उनके नेतृत्व में भारतीय सेना की टुकड़ी ने सीमित समय और कठिन परिस्थितियों में दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।इस विजय ने भारत की सामरिक स्थिति को मजबूत करने के साथ-साथ सैनिकों के मनोबल को भी बढ़ाया।
पहले पुत्र गोद लिए गए थे, बताया जाता है कि पुत्र जन्म के जश्न के दौरान शैंपेन की इतनी बोतलें खुलीं कि चारों ओर बुलबुले (बबल्स) ही दिख रहे थे।इसलिए पिता मान सिंह ने उनका उपनाम बबल्स रख दिया था।
जाने कैसे मिली ब्रिगेडियर की उपाधि
साल 1951 में तीसरी कैवेलरी रेजिमेंट में कमीशन पाने वाले सेकेंड लेफ्टिनेंट भवानी सिंह ने साल 1974 में बटालियन के कमांडर पद लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी।श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के तहत भारतीय सेना की कार्रवाई के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें वहां अपनी यूनिट का मनोबल बढ़ाने के लिए भेजा था।इसमें सफलता मिलने पर उनको साल 1991 में ब्रिगेडियर की मानक पदवी से सम्मानित किया गया।
राजनीति के खट्टे-मीठे अनुभव :
सेना के अफसर के रूप में भवानी सिंह को 1971 के युद्ध में बहादुरी दिखाने पर महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था, लेकिन 4 साल बाद ही जेल में डाल दिया गया. 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें अपनी सौतेली मां महारानी गायत्री देवी के साथ तिहाड़ जेल में भी रखा गया था ।जिसका जिक्र द हाउस ऑफ जयपुर नाम की किताब में है. जिस पार्टी ने उन्हें जेल में डाला, उसी ने 15 साल बाद टिकट देकर चुनाव में भी उतार दिया. ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और राजीव गांधी के कहने पर साल 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन भाजपा नेता गिरधारी लाल भार्गव से मात खा गए।फिर महाराजा ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली।
कर्नल के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी. श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के तहत भारतीय सेना की कार्रवाई के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें वहां अपनी यूनिट का मनोबल बढ़ाने के लिए भेजा था. इसमें सफलता मिलने पर उनको साल 1991 में ब्रिगेडियर की मानक पदवी से सम्मानित किया गया।
राजनीति के खट्टे-मीठे अनुभव :
सेना के अफसर के रूप में भवानी सिंह को 1971 के युद्ध में बहादुरी दिखाने पर महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था, लेकिन 4 साल बाद ही जेल में डाल दिया गया. 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें अपनी सौतेली मां महारानी गायत्री देवी के साथ तिहाड़ जेल में भी रखा गया था. जिसका जिक्र द हाउस ऑफ जयपुर नाम की किताब में है. जिस पार्टी ने उन्हें जेल में डाला, उसी ने 15 साल बाद टिकट देकर चुनाव में भी उतार दिया. ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और राजीव गांधी के कहने पर साल 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन भाजपा नेता गिरधारी लाल भार्गव से मात खा गए. फिर महाराजा ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली.