संस्कृति

पुराने जमाने में पड़ोसी सचमुच पड़ोसी कहने के लायक हुआ करते

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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आज जो दौर चल रहा है उसमें यह जरूरी नहीं कि पड़ोसी कभी मुसीबत में काम आ ही जाए ,क्योंकि पड़ोसी अच्छा भी हो सकता और बुरा भी पड़ोसी किसी मुहल्ले में निवास के आसपास का हो या राष्ट्र के बात लगभग एक ही है। पुराने जमाने की बात और थी कि पड़ोसी सचमुच पड़ोसी कहने के लायक हुआ करते थे ।

अब तो हालत यह हो गई है कि पड़ोसी से संभलकर रहना होता है।अगर किसी ने अपने पड़ोसी को कभी कोई सुविधा दे दी कुछ वक्त तक देते रहे और अचानक किसी दिन उसे न कह दिया गया तो देख सकते हैं । पड़ोसी अपने तेवर दिखाना शुरू कर देता है । ऐसी शत्रुता ठान लेता है कि कई बार ऐसा लगता है । उससे बड़ा कोई शत्रु नहीं। एक परिचित के पड़ोसी अति लिप्सा की अप्राप्ति के कारण खुद बेचैन रहता है तो अपने आसपास किसी को भी चैन से नहीं रहने देता वह कर्म और व्यवहार में अतिक्रमण कर अपने पड़ोसी को परेशान करने में ही अपना वक्त काटता है और उसे ही अपनी उपलब्धि मान कर कल्पना लोक में जीता रहता है।एक पड़ोसी व होते हैं जो उत्तम पड़ोसी कहलाते हैं व हमसे मानवीय व्यवहार बनाए रखते हुए किसी भी परेशानी या दुख-दर्द के वक्त तुरंत अच्छे दोस्त की तरह सहयोग के लिए तत्पर हो जाते हैं ।अगर किसी तरह का सहयोग व कर पाते हैं तो ऐसा करने के बाद व भूल जाते हैं यही नहीं अगर किसी संदर्भ में उनके सहयोग की याद दिलाई जाए तो व वैसा करना अपनी जिम्मेदारी बताते है।

आज के जमाने में ज्यों-ज्यों अपार्टमेंट संस्कृति का विस्तार हुआ है और उसमें एक बंद फ्लैट में रहने की व्यवस्था शुरू हुई है वैसे-वैसे ऐसी जगहों पर रहने वाले लोग एक दूसरे को पहचान भी नहीं पाते कि ये किसी के पड़ोसी भी हैं।