विपक्ष ने क्यों एक पहले-से-इंजीनियर किए गए चुनाव को वैधता दे दी
जब चुनाव आयोग (ECI) ने ही पहले से NDA की जीत सुनिश्चित करने वाली सभी आवश्यक संरचनात्मक इंजीनियरिंग कर दी थी तो ऐसे चुनाव में हिस्सा लेना वस्तुतः उस इंजीनियरिंग की संवैधानिक स्वीकृति देना था।
यह ऐसे ही है जैसे आप मैदान में तब भी उतर जाएँ
जब आपको पहले से पता है कि अंपायर विरोधी टीम का हिस्सा है।फिर मैच चाहे जैसे भी आपकी भागीदारी ही खेल को वैध बना देती है।
परिणाम
सत्ता को वोटों की नहीं, वैधता की ज़रूरत थी और विपक्ष ने वही दे दी।दुःख की बात सिर्फ़ यह नहीं है कि चुनाव इंजीनियर किए गए थे,बल्कि यह कि उस इंजीनियरिंग को भारत के लोकतंत्र का “नॉर्मल” ढाँचा मान लिया गया।
अब यह देखें: चुनाव आयोग द्वारा की गई ढाँचागत इंजीनियरिंग (डेटा-समर्थित तथ्य)नीचे वे तथ्य हैं जो यह दिखाते हैं कि चुनाव की “मिट्टी” ही पहले से तैयार कर दी गई थी।
A. बिहार में अभूतपूर्व मतदाता-सूची इंजीनियरिंग
1. बड़े पैमाने पर डिलीशन
विशेष पुनरीक्षण (SIR) के दौरान ECI ने 2.2 मिलियन (22 लाख) वोटर “मृतक” बताकर हटाए।
3.6 मिलियन (36 लाख) को “permanently shifted/absent” बताकर हटाया।
0.7 मिलियन (7 लाख) को “already enrolled elsewhere” बताकर हटाया।
(Hindustan Times रिपोर्ट)
कुल डिलीशन: लगभग 65 लाख
(ECI द्वारा प्रकाशित सूची — Supreme Court के आदेश के बाद)
2. बिहार में SIR के Phase-1 में 60.5 लाख वोटरों को हटाने का प्रस्ताव
(Economic Times रिपोर्ट)
3. 5 सप्ताह में 8 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन — असंभव समयसीमा
Washington Post की रिपोर्ट:
ECI ने अधिकारियों को आदेश दिया कि 5 सप्ताह में लगभग 80 मिलियन मतदाताओं का सत्यापन करें।
यह प्रक्रिया न तो पारदर्शी थी, न ही व्यावहारिक।
4. अंतिम मतदाता सूची में भारी गिरावट — 4 मिलियन (40 लाख) की कमी
NDTV रिपोर्ट
75–78 मिलियन से गिरकर लगभग 74 मिलियन।
सबसे अधिक प्रभावित: महिला मतदाता।
B. मतदाता सूची में छेड़छाड़ और पारदर्शिता की कमी — अन्य राज्यों के उदाहरण कर्नाटक में बड़े पैमाने पर वोटर डिलीशन पर फिर से सवाल उठे।
महाराष्ट्र में ECI ने खुद कहा कि किसी भी सीट में 2% से अधिक डिलीशन “विशेष जांच” योग्य है लेकिन कई सीटों में यह 4–8% तक था।आधार-वोटर लिंकिंग के नाम पर गरीबों, प्रवासियों, महिलाओं का असम अनुपात में नाम हटाया गया।
C. चुनावी माहौल की इंजीनियरिंग
1. महिलाओं को चुनावों के बीच 10,000 रुपये की भुगतान योजना यह सीधी चुनाव–पूर्व “वोट इनफ्लुएंस स्कीम” थी,
जिसे आयोग ने चुनौती नहीं दी बल्कि “कल्याणकारी योजना” कहकर चुप्पी साधी।
2. प्रचार बंद होने के बाद भी पूर्ण-पृष्ठ विज्ञापन जारी रहे
Model Code of Conduct लागू होने के बाद
पूरा पेज सरकारी–सत्ताई विज्ञापन छपते रहे।
ECI पूर्ण मौन में रहा।
3. मीडिया पर अदृश्य नियंत्रण चुनावी सीजन में 90% से अधिक टीवी प्राइम टाइम एकपक्षीय ररहा और आयोग ने “मीडिया ड्यू डिलिजेंस” लागू नहीं किया।
विपक्ष ने क्या किया उन्होंने इस पूरे ढाँचे को चुनौती नहीं दी।उन्होंने चुनावी प्रक्रिया को गैर-तटस्थ साबित करने के लिए अभियान नहीं चलाया।उन्होंने संशोधित मतदाता-सूचियों का व्यापक ऑडिट नहीं माँगा।उन्होंने वोटर डिलीशन को चुनाव का “पूर्व-सभागार” नहीं बताया। मैदान में उतर गए,
जिससे यह सारा ढाँचा वैध और स्वीकार्य लगने लगा।इससे क्या हुआ।ढाँचा बदले बिना चुनाव हो गया।
सत्ता वही रही।

