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20 साल बाद लौट रही है सामाजिक स्वाभिमान की सरकार महागठबंधन 127 पार, 115 पर अलटकता दिख रहा है एनडीए

बिहार हलचल न्यूज ,जन जन की आवाज
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वीरेंद्र यादव न्‍यूज का एक्जिट एनालसिस —

बिहार में 20 साल बाद सामाजिक न्‍याय की सरकार लौट रही है। इसमें मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के शारीरिक एवं मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर गढ़ा गया नैरेटिव की महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है। नोट फॉर वोट स्‍कीम (महिला रोजगार योजना के नाम पर 10000 का अनुदान) ने नीतीश खेमा की लुढ़कन की गति को थाम लिया है, लेकिन उसे सरकार बनाने के लायक नहीं छोड़ा है। चुनावी डाटा बता रहे हैं कि तेजस्‍वी यादव अपने सहयोगियों के दम पर सरकार बनाने में सक्षम हैं। यदि तोड़-फोड़ की स्थिति में एनडीए की सरकार बनती भी है तो उसके सीएम नीतीश कुमार नहीं होंगे। भाजपा के सूत्र बताते हैं कि पार्टी अपनी सत्‍ता और आर्थिक संसाधन के बल पर नीतीश को ढोने को तैयार नहीं है।
वीरेंद्र यादव न्‍यूज दोनों चरणों के मतदान के दौरान प्रदेश में वोट के ट्रेंड के आकलन और स्‍थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर इस निष्‍कर्ष पर पहुंचा है कि महागठबंधन को चंपारण में नुकसान उठाना पड़ रहा है कि मिथिला और कोसी में जीवन दान मिल रहा है। पहले चरण में वीरेंद्र यादव न्‍यूज का आकलन था कि महागठबंधन पर एनडीए का पलड़ा भारी था। लेकिन दूसरे फेज में एनडीए पर महागठबंधन भारी पड़ता दिख रहा है। यही बढ़त उसे बहुमत के पार पहुंचाता है। हमारे आकलन के अनुसार राजद अपने घटक दलों के साथ 127 के पार होता दिख रहा है, जबकि एनडीए 115 सीटों तक पहुंचते-पहुंचते हांफने लगता है। 8 से 10 निर्दलीय या अन्‍य पार्टियों के उम्‍मीदवार भी चुनाव जीत सकते हैं।
वोटों का ट्रेंड बता रहा है कि 20 साल बाद बिहार में सामाजिक न्‍याय की विचारधारा की सरकार बन रही है। सत्‍ता का नेतृत्‍व सवर्णों से प्रभाव से मुक्‍त होकर गैरसवर्णों के सरोकार से जुड़ रहा है। नीतीश राज में सत्‍ता का नेतृत्‍व और प्रभाव सवर्णों के कब्‍जे में ही बना रहा था। आकलन बता रहा है कि बिहार का राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बदलने वाला है।
हम पिछले 35 वर्षों के बिहार के विकास और सरकार के सरोकार की बात करें तो 15 साल ही सरकार मजबूत रही है और अपने सरोकार को लेकर प्रतिबद्ध रही है। जबकि 20 वर्षों का कार्यकाल सरकार चलाने और बचाने में गुजर गया। लालू यादव का साढ़े सात साल ( जुलाई1997 में सीएम पद से इस्‍तीफा देने तक) और नीतीश कुमार का साढ़े सात साल (2013 में भाजपा को धकिया कर सत्‍ता से बाहर करने तक) का कार्यकाल ही सरोकार की राजनीति के लिए याद किया जाएगा। इसके बाद लालू यादव और नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रभाव सरकार चलाने और बचाने में ही गुजर गया। लालू यादव का कार्यकाल (1990-97) सामाजिक स्‍वाभिमान के लिए याद किया जाता है, जबकि नीतीश कुमार का कार्यकाल (2005-2013) कानून व्‍यवस्‍था और विकास के याद किया जाता है।
हम विधान सभा चुनाव के बाद एक्जिट आकलन की बात कर रहे थे। वीरेंद्र यादव न्‍यूज ने अपना आकलन जिलावार भी किया है। जिलवार आकलन के आधार पर आप भी नयी सरकार की संभावना का विश्‍लेषण कर सकते हैं।
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जिला — कुल विस सीट — इंडिया — एनडीए
1. पश्चिम चंपारण — 9 — 2 — 7
2. पूर्वी चंपारण — 12 — 4 — 8
3. शिवहर — 1 — 1 —0
4. सीतामढ़ी — 8 — 3 — 5
5. मधुबनी — 10 — 4 — 6
6. सुपौल — 5 — 2 — 3
7. अररिया — 6 — 3 — 3
8. किशनगंज — 4 — 4 — 0
9. पूर्णिया — 7 — 3 — 3
10. कटिहार — 7 — 4 — 3
11. मधेपुरा — 4 — 2 — 2
12. सहरसा — 4 — 2 — 2
13. दरभंगा — 10 — 4 — 6
14. मुजफ्फरपुर — 11 — 5 — 6
15. गोपालगंज — 6 — 3 — 3
16. सिवान — 8 — 4 — 4
17. सारण — 10 — 6 — 4
18. वैशाली — 8 — 4 — 3
19. समस्‍तीपुर — 10 — 6 — 4
20. बेगूसराय — 7 — 4 —3
21. खगडि़या — 4 — 3 — 1
22. भागलपुर — 7 — 3 — 4
23. बांका — 5 — 2 — 3
24. मुंगेर — 3 — 1 — 2
25. लखीसराय — 2 — 1 — 1
26. शेखपुरा — 2 — 1 — 1
27. नालंदा — 7 — 2 —5
28. पटना — 14 — 8 — 6
29. भोजपुर — 7 — 5 — 2
30. बक्‍सर — 4 — 3 — 1
31. कैमूर — 4 — 2 — 1
32. रोहतास — 7 — 6 — 1
33. अरवल — 2 — 1 — 1
34. जहानाबाद — 3 — 2 — 1
35. औरंगाबाद — 6 — 5 — 1
36. गया — 10 — 7— 3
37. नवादा — 5 — 3 — 2
38. जमुई — 4 — 2 — 2