नीतीश vs तेजस्वी: वोटिंग रिकॉर्ड ने लिख दी नई स्क्रिप्ट
विकास यादव
बिहार की सियासी हवा में एक बार फिर बदलाव की सरगर्मी है। पहले चरण की मतदान प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है, और यह चुनाव पिछले कई दशकों के मुकाबले बिल्कुल अलग साबित हो रहा है। राज्य के चुनावी इतिहास में अब तक का सबसे ऊंचा मतदान प्रतिशत दर्ज किया गया है। हालांकि अभी केवल एक चरण का मतदान पूरा हुआ है, लेकिन मतदाताओं ने उम्मीद से कहीं अधिक जोश और उत्साह दिखाया है। यह उत्साह न केवल सियासी दलों को उत्साहित कर रहा है, बल्कि चुनाव आयोग को भी खुशी से भर दे रहा है। आयोग को उम्मीद है कि दूसरे चरण में भी यही लय बरकरार रहेगी।
पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर करीब 65% मतदान हुआ, जिसने पूरे राज्य में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। सभी दल इसे अपने पक्ष में व्याख्या कर रहे हैं – कोई इसे अपनी लहर बता रहा है, तो कोई जनादेश की शुरुआत। लेकिन इतिहास की किताबें कुछ और ही कहानी बयां करती हैं। बिहार में जब-जब मतदान प्रतिशत 60% के पार गया है, तब-तब सत्ता के सिंहासन पर नया चेहरा विराजमान हुआ है। और खास बात यह कि यह परिवर्तन अक्सर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) या उसके पूर्ववर्ती जनता दल के पक्ष में रहा है।
यह बंपर मतदान ऐसे समय में हुआ है, जब पिछले महीने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराया गया। विपक्षी दलों ने इसे लेकर जमकर हंगामा किया, चुनाव आयोग पर धांधली और मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप लगाए। लेकिन मतदाताओं ने इन विवादों को दरकिनार कर मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें लगाईं। क्या यह उत्साह RJD के लिए शुभ संकेत है? आइए, इतिहास की गहराई में उतरकर देखें।
अभी बाकी है 122 सीटों का फैसला
पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान के बाद अब बारी है शेष 122 सीटों की। राजनीतिक दलों ने अपने अभियान को और तेज कर दिया है – रैलियां, जनसभाएं और डोर-टू-डोर कैंपेन जोरों पर हैं। पहले चरण में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव समेत दोनों उपमुख्यमंत्रियों सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। कुल 1,314 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें कई दिग्गज शामिल हैं।
बिहार में पिछले 40 वर्षों में यह चौथी बार है जब मतदान प्रतिशत 60% से ऊपर जाने की संभावना बन रही है। इन चार दशकों में मतदाता विभिन्न कारणों से उत्साह नहीं दिखाते रहे – कभी निराशा, कभी अविश्वास। यही वजह है कि मात्र तीन बार ही 60% का आंकड़ा पार हुआ, और अब 2025 का चुनाव चौथा रिकॉर्ड बनाने जा रहा है। आखिरी बार यह कारनामा साल 2000 में हुआ था।
60% वोटिंग: RJD की सत्ता वापसी का पैटर्न
बिहार की चुनावी कहानी में 60% से अधिक मतदान का मतलब हमेशा RJD की वापसी रहा है। लालू प्रसाद यादव ने 1997 में जनता दल से अलग होकर RJD का गठन किया। इससे पहले जनता दल के बैनर तले उन्होंने राज्य पर राज किया, फिर RJD के दम पर सत्ता में लौटे। भ्रष्टाचार के मामलों में सजा होने पर बागडोर पत्नी राबड़ी देवी को सौंपी। आइए, पिछले 40 सालों के पैटर्न को करीब से देखें:
1985: कांग्रेस की आखिरी बंपर जीत
– मतदान प्रतिशत: 56.27% (60% से कम, लेकिन उस समय का उच्चतम)
– 324 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 196 सीटें जीतीं
– अपने दम पर आखिरी सरकार।
– लोकदल: 46 सीटें, BJP: 16 सीटें।
– यह कांग्रेस का स्वर्णिम दौर था, लेकिन 60% का जादू अभी नहीं चला।
1990: पहली बार 60% पार, लालू का उदय
– मतदान प्रतिशत: 62.04%
– मंडल कमीशन की लहर, पिछड़े वर्ग का उत्साह।
– जनता दल (लालू के नेतृत्व में): 122 सीटें, वामदलों के समर्थन से सरकार।
– कांग्रेस: 196 से गिरकर 71 सीटें।
– BJP: 16 से 39 सीटें।
– लालू बिहार के मुख्यमंत्री बने, केंद्र में भी छाए।
1995: लालू की वापसी
– मतदान प्रतिशत: 61.79%
– जनता दल: 167 सीटें (264 उम्मीदवार उतारे)।
– कांग्रेस: मात्र 29 सीटें।
– लालू फिर मुख्यमंत्री – उनका जलवा बरकरार।
2000: राबड़ी का दौर, RJD की जीत
– मतदान प्रतिशत: 62.57%
– RJD (राबड़ी देवी के नेतृत्व में) चुनाव लड़ी।
– किसी को पूर्ण बहुमत नहीं, लेकिन RJD ने सरकार बनाई।
– नीतीश कुमार की NDA को 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा।
– बिहार बंटवारा और झारखंड का गठन इसी दौर में।
2005: मतदान गिरा, लालू-राबड़ी का पतन
जब मतदान 60% से नीचे आया, सत्ता बदली:
– फरवरी 2005: 46.50% – किसी को बहुमत नहीं, राष्ट्रपति शासन।
– अक्टूबर 2005: 45% से थोड़ा अधिक – NDA (नीतीश की JDU: 88, BJP: 55) सत्ता में।
– विधानसभा सीटें 243 पर सिमट गईं (बिहार बंटवारा के बाद)।
– खराब कानून-व्यवस्था, पलायन – यही लालू-राबड़ी दौर का अंत।
नीतीश युग: 60% का सूखा
नीतीश कुमार ने सुशासन का नया अध्याय लिखा, लेकिन मतदाता उत्साह नहीं दिखा:
– 2010: 52.73% – नीतीश फिर मुख्यमंत्री।
– 2015: 56.91% – महागठबंधन (RJD के साथ), नीतीश बने CM।
– 2020: 57.29% – NDA वापसी, RJD सबसे बड़ी पार्टी (75 सीटें), नीतीश तीसरे नंबर।
तो क्या तेजस्वी का सपना पूरा होगा
पिछले 40 सालों का पैटर्न स्पष्ट है: 60% से ऊपर मतदान = RJD (या जनता दल) की सत्ता। 1990, 1995, 2000 में यही हुआ। नीतीश के दौर में मतदान कभी 60% पार नहीं गया। अब 2025 में पहले चरण का 65% क्या तेजस्वी यादव के लिए वरदान साबित होगा? क्या नीतीश का दो दशक पुराना शासन इतिहास बन जाएगा?
लेकिन इतिहास चेतावनी दे रहा है – बिहार के मतदाता जब उत्साह दिखाते हैं, तो सत्ता बदलती है। यह चुनाव न केवल संख्याओं का खेल है, बल्कि बिहार की आत्मा की पुकार। देखते हैं, इस बार इतिहास खुद को दोहराता है या नया अध्याय लिखता है।

