सियासत में मुसलमान फिर से हाशिये पर
पटना/जदयू ने 57 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की और हैरत की बात ये कि एक भी मुसलमान उम्मीदवार नहीं! हाँ, आपने सही सुना… एक भी नहीं क्या बिहार की सियासत से मुसलमानों का चेहरा मिटाने की कोशिश की जा रही है? या फिर ये नया सियासी पैमाना” है जिसमें वोट तो मुसलमानों का चाहिए, मगर टिकट देने की बारी आए तो नाम तक याद नहीं आता?
महागठबंधन की बड़ी पार्टियाँ RJD और Congress — अब तक अपनी सूची जारी नहीं कर पाईं। लोगों की निगाहें टिकी हैं कि क्या ये दोनों दल मुसलमानों के दर्द को समझेंगे या वही पुराना वोट लो, हक़ दो मत” वाला खेल चलेगा।
माले ने अब तक 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें सिर्फ़ 2 मुस्लिम उम्मीदवार हैं यानी सिर्फ़ दिखावे भर की नुमाइंदगी क्या यही है इंसाफ़? क्या यही है साझी विरासत और बराबरी की बात करने वालों का असली चेहरा?
हर चुनाव से पहले वही वादे, वही नारे “मुसलमान हमारे साथ हैं मगर जब टिकट की बारी आती है, तो मानो सियासत के नक़्शे से मुसलमान का नाम ग़ायब हो जाता है। बिहार की अवाम समझ रही है कौन साथ निभा रहा है, कौन सिर्फ़ नारे लगा रहा है। वक़्त आ गया है कि मुसलमान खुद सोचें, कितनी बार इस्तेमाल होकर भी खामोश रहेंगे? अब तो सियासत से कहना होगा हम वोट नहीं, इज़्ज़त माँगते हैं। हम हिस्सेदारी नहीं, बराबरी माँगते हैं। क्योंकि अगर सियासत में हमारा चेहरा मिटा दिया गया तो ये सिर्फ़ मुसलमान की हार नहीं होगी, बिहार की रूह की हार होगी।

