संस्कृति

राहुल ने बदली विपक्षी राजनीति की तस्वीर

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संपादकीय 

बिहार / राजनीति नया मोड़ ले रही है। बिहार की राजनीति में लंबे समय से दो ध्रुव रहे हैं, एक ओर सत्तारूढ़ जदयू-भाजपा गठबंधन और दूसरी ओर राजद के नेतृत्व में विपक्ष। लेकिन हालिया घटनाक्रम ने तस्वीर बदल दी है। लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के नेतृत्व के बरअक्स राहुल गांधी की सक्रियता ने कांग्रेस को फिर से प्रासंगिक बना दिया है।

वोटर अधिकार यात्रा ने राज्य के राजनीतिक माहौल को बदल दिया है। यह यात्रा न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार कर रही है, बल्कि जनता के बीच राहुल गांधी की एक नयी राजनीतिक छवि भी गढ़ रही है। राहुल गांधी ने मुद्दों और अधिकारों की राजनीति को आगे रखकर बिहार की जनता को आकर्षित किया है। लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए जनता सिर्फ सत्ता का ही विकल्प नहीं तलाशती, बल्कि विपक्ष का भी विकल्प तलाशती है।

बिहार में मतदाता सूची विशेष सर्वेक्षण के खिलाफ वोटर अधिकार यात्रा के माध्यम से राहुल जनता को बताने में सफल हो रहे हैं कि वे उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उनके साथ खड़े हैं। राहुल गांधी ने जनता के अधिकारों के साथ जमीनी मुद्दों की राजनीति को भी सामने रखा है। यही कारण है कि विपक्षी राजनीति में आज कांग्रेस को लेकर एक नया भरोसा बन रहा है।

राहुल गांधी की यात्रा के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, किसानों की समस्याएं, महंगाई और युवाओं के पलायन जैसे मुद्दों को भी जोरदार तरीके से उठाया जा रहा है। गांव और कस्बों में हुई सभाओं में बड़ी संख्या में युवाओं, महिलाओं और किसानों की भागीदारी ने यह संकेत दिया कि जनता पारंपरिक राजनीति से हटकर एक नये विकल्प की तलाश में है।

कहा जा सकता है कि यह यात्रा केवल एक राजनीतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि जनता से सीधे संवाद का ऐसा प्रयोग है, जो लंबे समय से विपक्ष की राजनीति में गायब था। राहुल गांधी गांवों की गलियों से लेकर कस्बों की चौपालों तक पहुंच रहे हैं। वे नारे लगाने या भाषण देने के बजाय लोगों की बातें सुन रहे हैं, उनकी परेशानियों को समझ रहे हैं और उन्हें राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बना रहे हैं।

यही कारण है कि इस यात्रा ने जनता के बीच भरोसे की नयी किरण जगायी है। राहुल गांधी जनता के बीच बैठकर उनकी समस्याओं को सुनते हैं, तो यह राजनीति के लिए नया अनुभव है। लोग महसूस करने लगे हैं कि शायद कोई नेता उनकी आवाज को केवल चुनावी नारे में नहीं, बल्कि वास्तविक मुद्दे में बदलने आया है। राहुल गांधी की यात्रा उस समय हो रही है, जब बिहार में विधानसभा चुनाव दस्तक दे रहा है। विपक्ष की राजनीति लंबे समय से राजद के इर्द-गिर्द घूमती रही है। लंबे समय से बिहार की राजनीति में कांग्रेस हाशिए पर थी। लेकिन, वोटर अधिकार यात्रा ने उसे दोबारा मैदान में उतार दिया है। बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की सक्रियता, संगठन की मजबूती और जनता के बीच संवाद ने कांग्रेस को वैकल्पिक शक्ति के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया है। यह स्थिति न सिर्फ सत्ता पक्ष, बल्कि राजद के लिए भी चुनौती है।

भले ही राजद दावा करे कि यह यात्रा एकजुट विपक्ष की साझी यात्रा है, लेकिन हकीकत है कि जनता सीधे तौर पर राहुल से मुखातिब है। राहुल गांधी ने बिहार में एसआईआर के खिलाफ यात्रा कर एक तीर से दो निशाना साधा है। पहला एनडीए सरकार को कटघरे में खड़ा करना, तो दूसरी ओर कांग्रेस को अपने पीछे चलनेवाली पार्टी समझने वाले राजद को ताकत का अहसास कराना। जनता विपक्ष से यह उम्मीद करती है कि वह केवल सत्ता पक्ष की आलोचना तक सीमित न रहे, बल्कि जनता के मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतरे और उसे ठोस आंदोलन का रूप दे। इस कसौटी पर राहुल गांधी आगे दिखाई देते हैं, जबकि तेजस्वी यादव विपक्षी नेता की औपचारिक भूमिका में बंधे नजर आते हैं। बिहार में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए जो काम आगे बढ़कर तेजस्वी यादव को करना चाहिए था, वह दिल्ली से आकर राहुल ने कर दिखया। पूरी यात्रा में अगुआ कांग्रेस रही और राजद सहयोगी दल की भूमिका में। सत्ताधारी दल पर जनता के सवालों को धार देने की जिम्मेदारी विपक्ष पर होती है। इस मोर्चे पर बिहार में सबसे बड़ा नाम विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का है। विपक्ष के नेता के रूप में तेजस्वी यादव की राजनीति का स्वरूप अलग है। वे विधानसभा के भीतर सत्ता पक्ष को घेरने में माहिर हैं। उनके भाषणों में धार होती है और मुद्दे उठाने में वे पीछे नहीं रहते। लेकिन, उनकी राजनीति विधानसभा और मीडिया के दायरे तक सीमित रह जाती है। उन्होंने बेरोजगारी, शिक्षा और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को बार-बार उठाया और सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश की। लेकिन, यह कोशिश ज्यादातर कथनी तक सीमित रही, करनी तक पहुंचते ही कमजोर पड़ गयी। उनकी राजनीति में दमखम दिखता है, लेकिन उसका असर जनता तक नहीं पहुंच पाता। विधानसभा के भीतर उनके भाषण गूंजते हैं, विपक्ष के नेता के रूप में बेरोजगारी का सवाल सबसे मुखर तरीके से उठाया, लेकिन इन मुद्दों को आंदोलन नहीं बना पाये। नतीजा है, विपक्ष के नेता की हैसियत से तेजस्वी यादव भले ही सुर्खियां बटोरते हों, लेकिन जनता के बीच उनकी छवि अधूरी और असंतोषजनक बनी रहती है। वहीँ राहुल की पदयात्रा और जनता से संवाद ने कांग्रेस को पिछलग्गू की छवि से निकालकर विपक्ष का असली चेहरा बना दिया है। राहुल गांधी गांव–कस्बों की राह पर निकले और विपक्षी राजनीति को नयी धार दी। अपनी यात्रा से जनता के दिलों में जगह बनाते हुए बिहार में विपक्ष का चेहरा लालू-तेजस्वी को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने बिहार में बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा और उद्योग जैसे बुनियादी सवालों को विपक्ष की राजनीति के केंद्र में ला दिया है।

यह वही सवाल हैं जिन पर तेजस्वी यादव लगातार बोलते तो रहे, लेकिन व्यापक राजनीतिक आंदोलन का रूप नहीं दे पाये। इसके विपरीत राहुल गांधी की सक्रियता विपक्ष को एक नयी दिशा दे रही है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद उनकी वोटर अधिकार यात्रा ने यह साबित कर दिया है कि वे केवल संसद या मंचों पर बोलने वाले नेता नहीं हैं, बल्कि सड़कों पर उतरकर जनता के लिए संघर्ष करने वाले नेता हैं। उनकी शैली अलग है। वे केवल बयान नहीं देते, बल्कि जनता से सवाल सुनते हैं, उन्हें नोट करते हैं और फिर उन्हें राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनाते हैं। यही रवैया उन्हें पारंपरिक विपक्षी राजनीति से अलग करता है। राहुल गांधी का यह बदला हुआ तेवर कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। अब तक राजद के इर्द-गिर्द घूमती विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस ने अपनी ठोस मौजूदगी दर्ज करायी है। राहुल गांधी ने बिहार में कांग्रेस को फिर से प्रासंगिक बना दिया है।

कांग्रेस संगठनात्मक स्तर पर भी सक्रिय हुई है और बूथ स्तर तक अभियान ले जाने की तैयारी में है। यह स्थिति राजद के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कांग्रेस के उभार से विपक्षी एकता का समीकरण भी प्रभावित होगा। बिहार जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस का उभरना राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। यदि कांग्रेस राजद के विकल्प के रूप में मजबूत होती है, तो भविष्य में वह न केवल बिहार में सत्ता समीकरण बदल सकती है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी गठबंधनों की दिशा तय करेगी।