एफआईआर: लोकतंत्र पर हमला संविधान की अवहेलना
बेगूसराय / बलिया प्रखंड में एक ऐसा दृश्य सामने आया, जिसने भारत के लोकतंत्र, पत्रकारिता की स्वतंत्रता और संवैधानिक व्यवस्था को गहराई से झकझोर कर रख दिया। वरिष्ठ पत्रकार श्री अजित अंजुम, जो चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता का जायज़ा लेने मैदान में थे, उनके खिलाफ प्रशासन ने आपराधिक धाराओं में एफआईआर दर्ज कर दी। यह न केवल निंदनीय है, बल्कि यह घटना लोकतंत्र को दबाने के गंभीर प्रयासों में से एक प्रतीत होती है।
क्या था मामला
बलिया प्रखंड में BLO द्वारा वोटर सत्यापन प्रक्रिया में व्यापक अनियमितताओं और घोर लापरवाही की जानकारी पहले से ही मिल रही थी। श्री अजित अंजुम ने स्वयं मौके पर पहुंचकर इस प्रक्रिया का सच उजागर करने की कोशिश की, और यह दिखाया कि किस प्रकार सरकारी BLO ने लोगों की जानकारी के बिना ही वोटर लिस्ट से नाम हटाने या गलत रिपोर्ट दर्ज करने का खेल किया।
विडंबना देखिए कि इस सच को उजागर करने वाले पर ही धारा 186 (सरकारी कार्य में बाधा), 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला), 505 (अफवाह फैलाना), और RP Act की धारा 123(7) जैसी धाराओं में केस दर्ज कर दिया गया।
यह मामला क्यों खतरनाक है
1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला: भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) हर नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। एक पत्रकार का काम सच्चाई को सामने लाना है — और जब उस पर ही मुकदमा किया जाए, तो यह लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है।
2. प्रशासन की असहिष्णुता: यह घटना दर्शाती है कि आज भी कई प्रशासनिक अधिकारी पत्रकारों और नागरिकों की निगरानी या आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर पाते। उनकी जवाबदेही तय करने के बजाय उल्टा एफआईआर करके उन्हें डराया जा रहा है।
3. BLO की भूमिका पर सवाल: चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त BLO का काम निष्पक्षता से काम करना है, न कि पत्रकारों के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराना। यह स्पष्ट करता है कि कैसे कुछ अधिकारी अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर कार्य कर रहे हैं।
4. चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता खतरे में: जब वोटर सत्यापन जैसे मौलिक लोकतांत्रिक कार्यों में गड़बड़ी होती है, और उसे उजागर करने वालों पर कार्रवाई होती है — तो पूरा चुनावी ढांचा संदेह के घेरे में आ जाता है।
कानून क्या कहता है
सुप्रीम कोर्ट ने Shreya Singhal vs Union of India (2015) में स्पष्ट कहा कि जब तक कोई व्यक्ति सीधा हिंसा के लिए न उकसाए, तब तक उसकी अभिव्यक्ति पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यहाँ तो अजित अंजुम न तो किसी सरकारी कार्य में बाधा बना, न ही किसी कर्मचारी पर हमला किया। उन्होंने सिर्फ कैमरे के सामने सवाल किए — जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर नागरिक का अधिकार है।
अब क्या होना चाहिए
इस एफआईआर को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए।BLO और संबंधित अधिकारियों की जांच कर उन्हें निलंबित किया जाए।
भारत निर्वाचन आयोग को स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए कि मीडिया की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाए।
पत्रकारों को डराने-धमकाने की ऐसी प्रवृत्ति पर देशभर में आवाज़ उठाई जानी चाहिए।
अंत में
जब पत्रकार सवाल पूछना छोड़ देंगे, जब सच दिखाने वालों को झूठा अपराधी बना दिया जाएगा। तब देश की आत्मा मर जाएगी। लोकतंत्र केवल चुनावों का नाम नहीं है, बल्कि वह जनता की भागीदारी, स्वतंत्रता और सच्चाई पर आधारित है।
श्री अजित अंजुम पर हुआ यह हमला किसी एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि भारत के संविधान, लोकतंत्र और हर जागरूक नागरिक की अंतरात्मा पर हमला है।

