बेटी के जिस्म को नोच कर मार डाला AC में सिस्टम हांकने
ये क्या बिहार में
बेटी 30 मई को घर से निकली। नहीं लौटी। रात 1 बजे परिजन थाने पहुंचे। कहा गया ‘कल आना’। अगले दिन 31 मई को फिर परिजन फिर थाने की चौखट पर पहुंचे। बेटी को ढूंढने की गुहार लगाई। लेकिन एक FIR तक नहीं लिखी गई। फिर कहा, ‘कल आना’। अगले दिन 1 जून को बेशर्म खाकीधारियों ने थक-हार कर केस रजिस्टर्ड कर जिम्मेदारी का निर्वहन कर लिया। परिजनों ने पुलिस से कहा कि बेटी के मोबाइल का लोकेशन निकाल दीजिए। वर्दी के नशे में मदहोश पुलिस ने परिजनों को थाने से भगा दिया। संवेदनहीन सिस्टम से हार कर परिजनों ने एसपी दफ्तर से न्याय की उम्मीद लगाई। जब एसपी ऑफिस पहुंचे तो आवेदन तक नहीं लिया गया। कहा, डीएसपी के पास जाओ। यहां क्यों आए हो। डीएसपी ने कार्रवाई के नाम पर बस इतना किया कि आवेदन को अपने टेबल पर न्याय की उम्मीद में धूल फांक रही फाइल में सजा दिया। अगले दिन परिजन फिर थाना पहुंचे। यहां महिला दारोगा का नंबर मिला। फोन किया गया तो बेशर्म महिला दारोगा पूजा कुमारी ने पीड़ितों को ऑनलाइन ही वर्दी का रौब दिखाया। फोन पर फटकारा। कहा, दो दिन बाद आना। पटना में हैं।
आएंगे तो देखेंगे
अभी रखो
आखिर में परिजनों को बेटी की लाश उस हालत में मिली जिसकी कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाएंगे। हाथ-पैर रस्सी से बंधा था। खेत में पड़ी हुई लाश से आती दुर्गंध बिहार के भ्रष्ट सिस्टम की सड़ांध का सच बयां कर रही थी।
रंगरा थाना क्षेत्र में मिली लाश उस लड़की की है जिसका सपना बिहार पुलिस में भर्ती होकर न्यायतंत्र का हिस्सा बनना था। अफसोस कि उसी भ्रष्ट सिस्टम के भ्रष्ट कर्मियों के रवैए ने उसकी जान ले ली। अब सुशासन की काहिल पुलिस FSL और पोस्टमाटर्म के जरिए यह तय करेगी कि बेटी के साथ बलात्कार हुआ या नहीं। अगर हुआ तो बलात्कारियों की संख्या कितनी थी। दरिंदों ने कितनी देर बेटी के जिस्म को नोचा। फिर कई साल तक कोर्ट-कचहरी और थाने का चक्कर लगाने के बाद परिजनों को बेटी के अपहरण, हत्या और बलात्कार का ठप्पा लगा सरकारी सर्टिफिकेट दिया जाएगा।
क्या कोई बताने वाला है कि न्याय विधान क्या है।
कहां है
आखिर पीड़ित किस चौखट पर सिर पटके? क्या नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर जिंदा होते तो बेटी को दरिंदे नोच पाते? क्या समय रहते पुलिस मोबाइल लोकेशन को ट्रेस कर बेटी को नहीं बचा सकती थी, क्या इस मौत के लिए पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए? क्या इसके लिए भागलपुर के एसएसपी हृदय कांत दोषी नहीं हैं? अगर उनकी चौखट से बेटी के परजिनों को दुत्कारा गया तो पुलिस कप्तान को कुर्सी पर रहने का हक है।वर्दी की हनक और सनक का इलाज कौन करेगा।
क्या हम बस सवाल उठाते रह जाएंगे
आखिर जवाब की उम्मीद करें भी तो किससे करें।ऐसे मुख्यमंत्री से जो कभी मंत्रियों का सिर टकराते हैं। कभी राष्ट्रगान का अपमान करते हैं। कभी आईएएस के सिर पर गमला रखते हैं या ऐसे प्रधानमंत्री से जो बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का नारा देकर आवाज दूर-दूर तक जानी चाहिए का उदघोष करते हैं।