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शहीद मोहम्मद इम्तियाज़ सरहद पर अमर हुए बिहार के लाल की कहानी : तेजस्वी यादव

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शहीद मोहम्मद इम्तियाज़: सरहद पर अमर हुए बिहार के लाल की कहानी

पटना एयरपोर्ट पर जब शहीद मोहम्मद इम्तियाज़ का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा पहुंचा, तब सिर्फ उनकी माँ की आंखें नहीं नम थीं, बल्कि पूरा बिहार रो रहा था। छपरा की ज़मीन ने जिस लाल को जन्म दिया, उसने जम्मू-कश्मीर की सरहद पर अपने प्राणों की आहुति देकर देश को गर्व से भर दिया।

आरएस पुरा सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जब पाकिस्तानी गोलियों की बौछार हुई, तब बीएसएफ के सब-इंस्पेक्टर मोहम्मद इम्तियाज़ ने जवाबी कार्रवाई में न सिर्फ वीरता दिखाई, बल्कि वह सर्वोच्च बलिदान देकर अमर हो गए।

उनका बेटा इमरान जब एयरपोर्ट पर पिता के पार्थिव शरीर के सामने खड़ा हुआ, तो देश की आत्मा कांप उठी। शब्दों से ज़्यादा उस बालक की आंखों ने बताया कि पिता को खोने का ग़म क्या होता है।

“हिम्मत रखो बेटे, तुम्हारे पापा का दर्जा सबको नहीं मिलता। माँ और परिवार का ख्याल रखना – यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”

सच ही है, मृत्यु तो सबकी होती है, पर कुछ मौतें इतिहास बना जाती हैं। मोहम्मद इम्तियाज़ की शहादत भी उन्हीं में से एक है। उनकी कुर्बानी देश की सरहदों पर दर्ज हो चुकी है – और आने वाली पीढ़ियाँ जब देशभक्ति का पाठ पढ़ेंगी, तब इम्तियाज़ साहब का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।

व्यक्तिगत अनुभव

मैं स्वयं उस दर्द को समझ सकता हूँ, जब एक बेटा अपने पिता को खोता है। मेरे पिताजी भी फौजी रहे हैं और उन्होंने युद्ध का सामना किया है। उनके शब्द आज मेरे कानों में गूंजते हैं – “सरहद पर हर गोली से पहले कोई माँ काँपती है, कोई बहन दुआ करती है, और कोई बेटा अपने पिता के लौट आने की आस रखता है। शहीद इम्तियाज़ का बेटा इमरान उस लड़ाई में है, जहाँ आंसुओं से भी हिम्मत पैदा होती है।

हमने शहीद को श्रद्धा के फूल चढ़ाए, लेकिन सिर्फ़ श्रद्धांजलि काफ़ी नहीं होती। एक सवाल भी साथ उठता है
क्या हमारे जवानों को सिर्फ़ शहादत के बाद ही याद किया जाएगा?क्या उनके परिवारों को वह सहायता, सम्मान और सुरक्षा मिलेगी, जिसकी वे वास्तविक रूप से हक़दार हैं?

मैंने पहले भी सरकार से यह अपील की थी कि शहीदों को केवल फॉर्मेलिटी के तौर पर नहीं, बल्कि राजकीय स्तर पर स्थायी सम्मान और सहयोग मिलना चाहिए।

राजद नेता तेजस्वी यादव शहीद मोहम्मद इम्तियाज़ के पार्थिव शरीर के पटना आगमन पर स्वयं पहुंचे और उन्हें सीधे एयरपोर्ट पर श्रद्धांजलि दी। यह एक प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि संवेदनशीलता से जुड़ा कदम था।

अब वक्त है कि वे इस मुद्दे को बिहार विधानसभा में ज़ोरशोर से उठाएँ और एक “शहीद स्थायी सहायता योजना” की मांग करें जिसमें:
• शहीद के परिवार को आजीवन मासिक सहायता,
• बच्चों की मुफ्त शिक्षा,
• आश्रित को सरकारी नौकरी,
• और स्थानीय स्तर पर स्मारक व सम्मान शामिल हों।

हमारा सर शहीद मोहम्मद इम्तियाज़ की शहादत पर गर्व से झुकता है,पर हमारी आंखों में सवालों की चिंगारी भी है।
यह देश तभी सच्चा सम्मान देगा, जब शहादत को नारे नहीं, नीतियाँ मिलेंगी।