लगन में खुशियों की चकाचौंध, लेकिन डीजे साउंड बना सिरदर्द ध्वनि प्रदूषण से परेशान लोग, प्रशासन मौन
मधुबनी/खुटौना प्रखंड क्षेत्र में शादी-ब्याह का सीजन जोरों पर है। हर गली-मोहल्ले में बारात निकल रही है, बैंड-बाजे बज रहे हैं और लोग खुशी-खुशी समारोह में शामिल हो रहे हैं। यह सब कुछ होना भी चाहिए, आखिर भारतीय समाज में विवाह सिर्फ एक संस्कार ही नहीं, बल्कि एक उत्सव भी होता है। लेकिन इन खुशियों के शोर में अब एक ऐसा शोर भी जुड़ गया है, जिसने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। बात हो रही है डीजे साउंड सिस्टम की, जो अब सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रह गया, बल्कि ध्वनि प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। स्थानीय उप मुखिया संतोष कुमार साह का कहना है, “रात के 12 बजे तक डीजे बजता है।
बच्चे पढ़ नहीं पाते, बूढ़े नींद नहीं ले पाते, और मरीजों की हालत और खराब हो जाती है। प्रशासन को कुछ करना चाहिए।” शहर से लेकर गांव तक, हर जगह तेज आवाज में बजते डीजे लोगों की नींद, स्वास्थ्य और मानसिक शांति को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। नियमों के अनुसार, रात्रि 10 बजे के बाद किसी भी प्रकार के तेज ध्वनि यंत्रों का प्रयोग निषिद्ध है, और ध्वनि स्तर भी 55 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए। परंतु ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। कई डीजे संचालक बिना अनुमति के सड़कों और गलियों में साउंड सिस्टम लगा देते हैं और इतने तेज आवाज में गाने बजाते हैं कि आसपास के लोग कान बंद कर घर में बैठने को मजबूर हो जाते हैं। स्कूल-कॉलेज के छात्र, वृद्धजन, बीमार लोग और कामकाजी वर्ग इस अत्यधिक ध्वनि से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।
प्रशासन मौन, लोग हैरान
स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। शिकायतों के बावजूद न तो कोई ठोस कार्रवाई हो रही है और न ही नियमों का पालन सुनिश्चित किया जा रहा है। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या नियम केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाएंगे।
समाधान की जरूरत
समाज में उत्सव की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन वह दूसरों के जीवन को प्रभावित किए बिना। यह समय है जब जागरूकता के साथ-साथ प्रशासनिक सक्रियता की भी आवश्यकता है। डीजे साउंड पर नियंत्रण सिर्फ नियमों से नहीं, सख्त अमल और जन जागरूकता से ही संभव है।