जदयू की प्रेस कॉन्फ्रेंस में हंगामा, मुसलमानों के सवालों पर चुप्पी क्यों सिर्फ़ दिखावा
पटना / जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस उस वक़्त विवादों में घिर गई जब अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े सवालों पर पार्टी के नेता जवाब देने से बचते नज़र आए। वक़्फ़ बोर्ड और मुसलमानों के हक़ को लेकर पूछे गए सवालों पर न तो कोई स्पष्ट उत्तर मिला और न ही कोई रणनीतिक जवाब।
जदयू की यह प्रेस कांफ्रेंस एक बार फिर यह सवाल उठाने पर मजबूर करती है कि आख़िर नीतीश कुमार की सरकार ने 21 सालों के शासन में बिहार के मुसलमानों को क्या दिया।
जदयू के पास एक भी मुस्लिम सांसद या विधायक नहीं है। यह सवाल बेहद गंभीर है – इतने लंबे शासन के बावजूद पार्टी में मुस्लिम नेतृत्व को क्यों जगह नहीं मिली? क्या यह मुसलमानों के साथ किया गया महज़ दिखावटी ‘हमदर्दी’ नहीं है।
नीतीश सरकार की उपलब्धियाँ सिर्फ प्रचार या हकीकत
सरकार द्वारा स्कॉलरशिप, बस सेवा, और अन्य सुविधाओं का दावा तो किया जाता है, मगर क्या यह ज़मीनी स्तर पर दिखता है? मुसलमानों को लेकर जो प्रचार किया जाता है, क्या वह सिर्फ़ वोट बैंक की राजनीति है।
प्रेस कांफ्रेंस में यह भी देखने को मिला कि जब मीडिया ने वक़्फ़ बोर्ड और मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल किए, तो सबसे पहले गुलाम गौस और फिर खालिद अनावश्यक रूप से प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर बाहर चले गए। इससे साफ संकेत मिलता है कि सवालों से बचने की कोशिश की जा रही है।
क्या यह सच में ‘सबका साथ’ है
नीतीश कुमार की सरकार ने संसद में जिस बिल का समर्थन किया है, उससे मुसलमानों में बेचैनी है। जनता यह जानना चाहती है कि जदयू ने आखिर क्यों ऐसा कदम उठाया जो समुदाय के हितों के खिलाफ़ माना जा रहा है?
मीडिया के तीखे सवालों का कोई स्पष्ट जवाब न देना, और नेताओं का मंच से हट जाना यह साबित करता है कि जदयू इस मुद्दे पर या तो तैयार नहीं थी, या फिर सच छुपाया जा रहा है।
अब वक़्त आ गया है कि मुसलमान अपने हक़ की आवाज़ खुद उठाएं और सवाल करें। क्या हमें सिर्फ़ वादों और दिखावे से संतोष करना चाहिए? 21 साल की सरकार के बाद भी अगर समुदाय को नेतृत्व, प्रतिनिधित्व और असली तरक़्क़ी नहीं मिली, तो यह सोचने का विषय है।

