भारत में न्यायपालिका लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ है, लेकिन वर्तमान में इसकी पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं : जवाहर यादव निराला
कॉलेजियम प्रणाली में जज खुद अपने उत्तराधिकारियों का चयन करते हैं, जिससे इसमें पारदर्शिता की कमी, भाई-भतीजावाद और पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा, जजों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया (महाभियोग) अत्यंत कठिन और लंबी है, जिससे न्यायपालिका की जवाबदेही सीमित हो जाती है।
इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना की गई थी, जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका और नागरिक समाज की भागीदारी सुनिश्चित की गई थी। हालांकि, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।
वर्तमान संदर्भ में, एक संतुलित और संशोधित NJAC की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जिसमें निम्नलिखित सुधार किए जा सकते हैं:
• पारदर्शिता सुनिश्चित करना – न्यायाधीशों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए स्पष्ट और वस्तुनिष्ठ मापदंड बनाए जाएं।
• न्यायिक स्वतंत्रता बनाए रखना – आयोग का गठन इस तरह से हो कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता न हो।
• लोकप्रिय भागीदारी – इसमें वरिष्ठ अधिवक्ताओं, कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को भी उचित स्थान दिया जाए।
• संतुलन और संवाद – संसद और सुप्रीम कोर्ट के बीच संवाद बढ़ाया जाए ताकि नियुक्तियों को लेकर टकराव की स्थिति न बने।
यदि NJAC को इन सुधारों के साथ लागू किया जाता है, तो यह न्यायपालिका की साख, निष्पक्षता और विश्वसनीयता को मजबूत कर सकता है। इससे न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी, बल्कि जवाबदेही और पारदर्शिता भी सुनिश्चित होगी, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।

