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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेटे निशांत की लॉन्चिंग से BJP और RJD का बड़ा मकसद फेल कर देंगे

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पटना /मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिटायरमेंट का इंतजार कर रहे थे। दोनों दल इस ताक में थे कि नीतीश कुमार के न होने की स्थिति में अति पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक दो भागों में बंट जाएगा और इसका लाभ उन्हें होगा।

एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  के बेटे की होली के बाद राजनीति में लांचिंग के चर्चे हो रहे हैं तो सीतामढ़ी में जेडीयू नेता आनंद मोहन ने कहा है कि अगर निशांत राजनीति में आना चाहते हैं तो निश्चित रूप से यह स्वागत योग्य कदम होगा।

पिछले एक साल से नीतीश कुमार की उम्र उनकी राजनीति पर भारी पड़ती दिख रही है।  कई बार अपने बयानों से पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर देते हैं।

तेजस्वी यादव  तो उन्हें मानसिक रूप से अस्वस्थ करार दे चुके हैं।

दरअसल ,क्षेत्रीय दलों की सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि एक नेता के रहते दूसरे नेता को चुनने का दबाव होता है।यह बहुत ही कठिन दौर होता है।यह केवल एक नेता के उभरने का समय नहीं होता, बल्कि पूरी पार्टी का पीढ़ीगत परिवर्तन भी होता है।तमाम पुराने नेता दरकिनार किए जाते हैं और नए नेताओं का राजनीति में उदय होता है। कई नेता खुद को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।

समाजवादी पार्टी में जब पीढ़ीगत परिवर्तन हो रहा था, तब न केवल राज्य स्तर के बल्कि जिला, तहसील और ब्लॉक स्तर पर भी नए नेताओं का उदय हो रहा था और पुराने नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित दिख रहे थे।आखिरकार पुराने नेताओं को लेकर शिवपाल सिंह यादव अलग खेमा बनाकर निकल पड़े । फिर भी अखिलेश यादव ने अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करते हुए मुलायम सिंह की पारिवारिक विरासत को न केवल संभाला, बल्कि आज वहीं शिवपाल सिंह यादव अपने भतीजे के नेतृत्व में काम कर रहे हैं।

अगर निशांत कुमार जेडीयू में शामिल होकर एक्टिव पॉलिटिक्स में शिरकत नहीं करते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब जेडीयू में शक्ति के लिए संघर्ष होना शुरू हो जाएगा।

अगर निशांत कुमार जेडीयू में शामिल होते हैं और नीतीश कुमार की विरासत को संभाल लेते हैं तो पार्टी के सभी नेता उनके नेतृत्व में काम करने को राजी हो जाएंगे।एक क्षण के लिए मान लिया जाए कि निशांत कुमार का राजनीति में मन नहीं लगता या फिर राजनीति उनके लिए नहीं है तो यह भी जान लेना जरूरी है कि अगर वे राजनीति में आते हैं तो राजीव गांधी, राहुल गांधी, उद्धव ठाकरे, नवीन पटनायक, चौधरी अजीत सिंह की तरह बेमन से पॉलिटिक्स में एंट्री लेने वाले नेता बन जाएंगे।

कम्युनिस्ट पार्टियों और भाजपा को छोड़ सभी दलों की कमान किसी न किसी परिवार के हाथों में है।जिस दल को पारिवारिक विरासत नहीं मिली, वो पार्टी खत्म हो गई। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक को देख लीजिए। जयललिता की मौत के बाद से पार्टी लगातार बुरी हालत में जाती दिख रही है।  बसपा सुप्रीमो मायावती हों या फिर टीएमसी की ममता बनर्जी, अपने भतीजों को कमान सौंपने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है. राष्ट्रीय स्तर पर सोनिया गांधी ने कांग्रेस को पूरी तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हवाले कर ही दिया है।

माना जाता है कि अगर राहुल गांधी पिछले 2 दशक में लीडरशिप में नहीं उभरते तो कांग्रेस अब तक पता नहीं किस स्थिति में होती।

नेशनल कांफ्रेंस की कमान फारुक अब्दुल्ला के बाद उमर अब्दुल्ला, पीडीपी की कमान मुफ्ती मोहम्मद सईद के बाद महबूबा मुफ्ती, अकाली दल की कमान प्रकाश सिंह बादल के बाद सुखबीर सिंह बादल, हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला के बाद अजय चौटाला और दिग्विजय चौटाला, हरियाणा में ही बंसीलाल का परिवार, भजनलाल का परिवार और हुड्डा परिवार, समाजवादी पार्टी की कमान मुलायम सिंह यादव के बाद उनके बेटे अखिलेश यादव, राष्ट्रीय जनता दल की कमान लालू प्रसाद यादव के बाद उनके बेटे तेजस्वी यादव, झामुमो की कमान शिबू सोरेन के बाद उनके बेटे हेमंत सोरेन, शिवसेना की कमान बाला साहब ठाकरे के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे, भारत राष्ट्र समिति की कमान चंद्रशेखर के बाद उनकी बेटी कविता, द्रमुक की कमान एम. करुणानिधि के बाद उनके बेटे एमके स्टालिन के हाथ में है।

जिन दलों में पारिवारिक विरासत का नेतृत्व हावी नहीं हो पाया, वो दल या तो वीरगति को प्राप्त हो गए या फिर बुरी स्थिति में है।राजनीति के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार भी इन सब चीजों का अध्ययन कर रहे होंगे। आखिर उन्हें भी तो अपनी पार्टी और उसकी विरासत को लेकर चिंता हो रही होगी।नीतीश कुमार को पता है कि उनकी पार्टी के टूटने का इंतजार बिहार के दोनों बड़े दल भाजपा और राजद कर रहे हैं. दोनों बस नीतीश कुमार के रिटायरमेंट का इंतजार कर रहे हैं।

दरअसल, नीतीश कुमार बिहार में अति पिछड़ा वर्ग का ऐसा वोटबैंक लेकर बैठे हुए हैं, जिसके बिना न तो राजद और कांग्रेस की अपनी सरकार बन पाएगी और न ही भाजपा की इसलिए इन दोनों दलों की नजर नीतीश कुमार के थक जाने पर है । उसके बाद जेडीयू नेताओं और उसके वोटबैंक के भी भाजपा और राजद में बंटने की पूरी गारंटी है. ऐसे में अगर नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में ज्वाइन कराते हैं तो जेडीयू नेताओं को एकजुट करने वाला एक नेता मिल जाएगा और पूरी की पूरी पार्टी इंटैक्ट भी रह सकती है। नीतीश कुमार शायद राहुल गांधी को इसके लिए उदाहरण मानकर चल रहे हैं । यह जगजाहिर है कि कांग्रेस पिछले 2 दशकों से केवल इसलिए बची हुई है, क्योंकि राहुल गांधी इस पार्टी के चेहरा हैं।