बिहार

मूलनिवासी सम्राट महिषासुर का शहादत दिवस मनाया

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बिहारशरीफ/ बिहारशरीफ के पचासा चौक स्थित संविधान निर्माता बाबा साहेब के प्रतिमा के समक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के तत्वाधान में मूल निवासी सम्राट महिषासुर के चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित करते हुए शहादत दिवस मनाया गया।

इस मौके पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल पासवान,मंच के प्रदेश अध्यक्ष एवं फुटपाथ संघर्ष मोर्चा के जिला अध्यक्ष रामदेव चौधरी, मंच के प्रदेश महासचिव बलराम साहब ने संयुक्त रूप से कहा कि सम्राट महिषासुर वंग देश के राजा थे। उनका साम्राज्य बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर मैसूर तक फैला था। वे दयालु, पशुपालक,किसान, यज्ञ विरोधी एवं एक सच्चे अहीर थे। महिषासुर यादव वंश के राजा थे।
अनार्य महापुरुष महिषासुर ने जब इंद्र को परास्त किया तो आर्य में मायूसी छा गई। यह मायूसी कैसी थी? यह मायूसी यज्ञ न कर पाने की थी। यज्ञ में क्या होता था यज्ञ में लाखों गायों, बलों,भैसों,घोड़ों,भेड़ों, बकरों को काटकर आर्य लोग चावल मिश्रित मांस पका कर मधुपर्क के रूप में खाते थे। सोमरस एवं मैयरे( उच्च कोटि की शराब) पीते थे। जौ, तिल, धी आग में डाल कर जलाते थे, अनार्य लोग पशुपालक एवं कृषक थे। जबकि आर्य मुफ्तखोर थे, जो अनार्यो से यह सब कुछ छीनने के लिए युद्ध करते थे।
महिषासुर से वर्षों तक लड़ने के बाद जब आर्य राजा इंद्र महिषासुर को परास्त नहीं कर पाने के बजाय खुद परास्त होकर भाग खड़ा हुआ तो आर्यों ने छल बल का सहारा लिया और आर्य कन्या दुर्गा को महिषासुर के पास भेज कर महिषासुर का दिल जीत कर उसे मारने की रणनीति बनाई इसी राजनीति के तहत आर्य कन्या दुर्गा ने विभिन्न मोहन रूपों एवं अदाओं से महिषासुर जैसे प्रतापी राजा को अपनी राजनीति के तहत फॅसाया और दिल जीत लिया। इसी प्रक्रिया के तहत दुर्गा ने महिषासुर का विश्वास जीतकर महज 10 दिनों में धोखे से महिषासुर को मार डाला।
पश्चिम बंगाल,झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के आदिवासी एवं दलित महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं और पूज्य मानकर आज तक पूजा करते आ रहे हैं। हमारे पूर्वज सम्राट महिषासुर का वंशज का प्रमाण मिलता है, लेकिन दूसरे तरफ आर्य कन्या दुर्गा का वंश का प्रमाण नहीं मिलता है,जो आज तक रहस्यमय बना हुआ है। सम्राट महिषासुर का किला आज भी उत्तर प्रदेश में बिजवान (महजूद) है जिसका देखरेख आज भी भारत सरकार के संरक्षण में हो रहा है। दूसरे तरफ इतिहासकार एवं जानकार मानते हैं कि सम्राट महिषासुर के नाम पर बिहार के नालंदा जिला बिहारशरीफ में भैसासुर एवं भारत में मैसूर नगर बसा हुआ था।
आज जिस स्वरुप में दुर्गा पूजा मनाई जाती है, उसकी शुरुआत महज 260 साल पहले 1757 में पलासी युद्ध के बाद लार्ड क्लाइव के समान में कोलकाता के नवाब कृष्णदेव ने की थी। इस प्रकार यह त्यौहार न सिर्फ नया है। बल्कि इसके ऊपर में मुसलमान का विरोध और साम्राज्यवाद-परस्ती भी छुपी हुई है।
दुर्गा और महिषासुर की गाथा आर्यों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व छल पूर्वक अपनी संस्कृति थोप कर हमें गुलाम बनाने की कहानी का एक हिस्सा है। जिस पर पढ़े-लिखे मूल निवासियों को व्यापक पैमाने पर शोध करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए तथा परंपरावादी बनकर सड़ी लाश को कंधे पर ढोने की बजाय उसे दफन कर एक नई सभ्यता और संस्कृति विकसित करनी चाहिए जो कमैरों की पक्षधर हो। मैं अपने कुल श्रेष्ठ महाबली महिषासुर की स्मृतियों के समक्ष नतमस्तक हूं तथा उन तमाम साथियों, पत्रिकाओं, संस्थाओं को धन्यवाद देता हूं जो अपना इतिहास ढूंढने लिखने एवं जानने की दिशा में आकुल -व्याकुल है।*जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली में वर्ष 2011में महिषासुर परिनिर्वाण दिवस मनाने का क्रम जारी होने से देश भर में एक बहस की शुरुआत हुई है।*
इस मौके पर डॉ भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के जिला उपाध्यक्ष उमेश पंडित जिला महासचिव महेंद्र प्रसाद महिला प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष लालती देवी राम प्रसाद दास आदि दर्जनों लोग उपस्थित थे।