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प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ की ‘पॉकेट’ पार्टी जन सुराज दल के ‘मनमोहन सिंह’ बने मनोज भारती, कॉंग्रेस के ‘सामंती’ दौर की वापसी में क्या सफल हो पायेंगे ये ‘रबर स्टाम्प’ कार्यकारी अध्यक्ष

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सुभाष सिंह यादव का विश्लेषण/विचार

पटना(बिहार) पिछले दो वर्षों से बिना पारदर्शिता के अरबों-खरबों रुपये खर्च कर पदयात्रा करने वाले ‘तानाशाही’ प्रवृत्ति के महत्वाकांक्षी प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ की राजनीति का आज 02 अक्टूबर 2024 को बड़ा पड़ाव और परीक्षा एवं सम्भावनाओं का दिन रहा। भीतर से असुरक्षित व्यक्तित्व के प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ ने दो वर्षों से अरबों रुपये फूंककर जो हाइप बनाया था वह “खोदा पहाड़, निकली चुहिया” बनकर साबित हुई। बिहार प्रांत की राजधानी पटना के वेटनरी मैदान में आयोजित जन सुराज अभियान के शक्ति प्रदर्शन के दौरान आज इसके राजनीतिक दल होने की विधिवत घोषणा हुई।

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने का लक्ष्य लेकर चल रहे प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ ने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में ‘मनमोहन सिंह’ रूपी रबर स्टाम्प को पार्टी पर थोप दिया जो इसके स्वयं के भीतर से असुरक्षित और भयभीत होने को दर्शाता है। जानकारी के लिए बता दें कि भारत के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह जिस तरह सोनिया गांधी की ‘कठपुतली’ और ‘रबर स्टाम्प’ थे उसी तरह का प्रयोग प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ ने बिहार के समक्ष किया है। सबसे बड़ी बात यह कि स्वच्छ राजनीति की बात करने वाले प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ आय-व्यय को सार्वजनिक नहीं करते हैं और न ही यह सार्वजनिक किये कि आज के आयोजन में कितना खर्च हुआ और पैसा कहाँ से आया। इतना ही नहीं, अकूत पैसा खर्च करने के बाद भी इनके ‘फ्लॉप शो’ का आत्मविश्वास तभी डाउन हो गया जब वे गांधी मैदान की बजाय अन्य जगह कार्यक्रम किये। समर्थन ही दिखाना था तो बिहार में पटना का गाँधी मैदान सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक प्रदर्शन स्थल है लेकिन वो यह साहस भी नहीं जुटा सके।

प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ से अधिक पारदर्शी तो 2011-12 के दौर के अरविंद केजरीवाल थे जो कम-से-कम चंदे की जानकारी सार्वजनिक करते थे और उसके बावजूद आज केजरीवाल किस गिरावट पर है यह सबके सामने है। अभी तो प्रशांत किशोर ‘पांडे’ को सत्ता मिली भी नहीं है और वे पारदर्शिता नहीं बरत रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि पीके उर्फ/उपाख्य प्रशांत ‘पांडेय’ सत्ता प्राप्ति बाद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से भी ‘भ्रष्ट’ और ‘लुटेरा’ साबित होंगे। प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ की गतिविधियों के सामने तो अरविंद केजरीवाल जैसा ‘फ्रॉड’ और ‘अतिधूर्त’ तो देवता जैसा है, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रशांत ‘कुमार पांडेय’ बिहार के लिए विनाशकारी सिद्ध होंगे, इसमें कोई शक नहीं है।

प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ का लक्ष्य जदयू और राजद को समाप्त या कम-से-कम कमजोर कर कॉंग्रेस के लिए रास्ता बनाना और कॉंग्रेस के पुराने ‘सामंती’ दौर जिसमें ओबीसी, एससी, एसटी का कोई स्थान नहीं के बराबर था वैसा दौर लाना है इसके लिए भले ही थोड़ा-बहुत भाजपा भी कमजोर हो जाय तो चलेगा। पीके का लक्ष्य बिहार में बहुदलीय से द्विदलीय यानि कॉंग्रेस और भाजपा की राजनीति का अखाड़ा बनाने का लक्ष्य है इसके लिए वे राजद और जदयू को खत्म करना चाहते हैं। प्रशांत किशोर ‘पांडेय’ जदयू, राजद, भाजपा का विरोध करते हैं लेकिन कॉंग्रेस का नाम तक नहीं लेते। ‘कॉंग्रेस’ और ‘सामंतवाद’ के ‘लाडले’ प्रशांत किशोर ‘पांडे’ मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चल पड़े हैं लेकिन बिहार की सबसे बड़ी समस्या बिहार में लाखों की संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ पर अपना स्टैंड नहीं बताते। जातिविहीन और सार्थक राजनीति के नाम पर ये कॉंग्रेस के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं और सामंतवाद की वापसी के लिए बेचैन है और उसके टूल के रूप में मनोज भारती को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। इन्हें अध्यक्ष नहीं बल्कि कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है और वह भी केवल 06 महीने के लिए। पीके का यह प्रयोग सामंती व्यवस्था के लिए टेस्टिंग हथियार की तरह है। वे हिन्दुओं के लिए बात नहीं करते लेकिन इस्लामिक नारे लगाने में जरा भी संकोच नहीं करते। आज तो इनके चेहरे से पर्दा खिसका है, मुखौटा उतरना शेष/बाकी है।