युवाओं के सपनों की उपेक्षा
हमारे देश मैं बेरोजगार युवाओं के साथ नोकरी के नाम पर छुपी छुपाई होती रहती हैं और जिम्मेदार लोग शांत बैठे सब देखते रहते हैं।अगर किसी देश को स्वावलंबन आत्मनिर्भर बनना है तो बहुत जरूरी है कि उस देश में मानव संसाधन का सर्वोत्तम प्रयोग हो और उसमें भी युवा आबादी इसमें सबसे निर्णायक भूमिका निभा सकती है।हाल ही में प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए युवाओं के महत्त्व को एक बार फिर दोहराया लेकिन हम बीते कुछ सालों से देख रहे हैं कि किस तरीके से हमारे देश के युवाओं के साथ उनके सपनों की उपेक्षा की जा रही है!जब भी युवाओं की बात होती है । उन्हें सबसे पहले जो सुविधा उपलब्ध कराने की चुनौती होती है वह है रोजगार लेकिन केंद्र और राज्य स्तर दोनों स्तर पर ही नौकरियों की भर्ती को लेकर उदासीनता ही एक लंबे वक्त से देखी जा रही है।
केंद्र और राज्य सरकार के तहत दोनों में ही परीक्षाएं साल दर साल लंबित होती जा रही हैं। प्रश्नपत्र लीक होते हैं परीक्षाएं समय से नहीं हो रही हैं।मसलन उत्तराखंड वन दरोगा की परीक्षा रद्द कर दी गई।राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सरकारी भर्ती को लेकर सरकारों द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही बहुत हैरान करने वाली है।सरकारों ने अब नौकरियों को केवल चुनावी उपकरण के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया है।इस प्रवृत्ति की वजह से कहीं न कहीं युवाओं का हक मारा जा रहा है।