दुर्गामंदिर सिधपा का इतिहास है 300 वर्ष पुराना
लदनियां से अमरनाथ यादव की रिपोर्ट
मधुुुबनी /लदनियां प्रखंड के सीमाई क्षेत्र स्थित सिधपा गांव में विगत 300 वर्षों से महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा की पूजा होती आ रही है। इस गांव स्थित भगवती स्थान ने लंबी यात्रा के क्रम में तीसरीबार स्थल परिवर्तन किया है। मिट्टी के पिंड से संगमरमरी सकल में यहां के लोगों ने भगवती की पूजा की है। 300 वर्ष पूर्व सिधपा निवासी स्व. गुदर महतो के पूर्व की चौथी पीढ़ी के पूर्वज रहे सताई महतो ने अपने घर में अंकुरित भगवती की पूजा शुरू की थी। वर्षों बाद इसका प्रतिष्ठापन डाकबाबू अजबलाल मंडल के टोले में किया गया, जहां मंदिर की सकल फूसनुमा थी। 1962 ई. में इसका प्रतिष्ठापन महंथ पोखर के पूर्वी भिंडे पर गांव की मुख्य सड़क के किनारे किया गया। जगह की उपलब्धता के कारण यहां भगवती स्थान, पूजन कार्य व मेले की सकल ने वृहत आकार लेना शुरू किया। ग्रामीणों के चंदे से इसका विकास निरंतर होता गया। भगवती की कृपा से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती रही।
इसी क्रम में सिधपा पहुंचने का सुअवसर मधुबनी के बाबूसाहब प्रो. कुलधारी सिंह को प्राप्त हुआ और उसने भगवती स्थान स्थित लंबा-चौड़ा आकार वाले अपने तालाब का जलकर भगवती स्थान को दान किया। उसकी आमदनी से स्थान का चतुर्दिक विकास हुआ। सम्प्रति विशालकाय मंदिर में दशहरे से संबंधित सभी मूर्तियों की संगमरमरी सकल देखते बन रही है।
जानकारी कमेटी के नए अध्यक्ष योगेन्द्र सिंह उर्फ योगीजी, सचिव अवकाशप्राप्त शिक्षक व जिप सदस्य झमेली राम व कोषाध्यक्ष अवकाशप्राप्त डाकबाबू अजबलाल मंडल ने दी। कमेटी के अन्य सहयोगी सदस्यों में सीताराम यादव, योगेन्द्र सिंह, शिवशंकर यादव, राधेप्रसाद सिंह, अवकाशप्राप्त शिक्षक जगदीश ठाकुर, हरिश्चन्द्र साह, हुकुमलाल पासवान, मोहनसाह आदि शामिल हैं।
मेले की देखरेख व सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने में सर्वाधिक भूमिका ग्रमीण युवकों की होती है।

