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दो-तिहाई सीटों पर मतदान के बाद पीएम मोदी को आगे की राह नहीं सूझ रही

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बिहार हलचल न्यूज़(टीम)

चार चरण के चुनावों के बाद अब देश ऐसे मुकाम पर खड़ा है,जहां से एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के लिए रेस जीतने के लिए दिन-रात एक करने की जरूरत है। अप्रत्याशित रूप से इस बार के चुनाव में भारी उलटफेर देखने को मिल रहा है। जैसे-जैसे चुनाव अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है, आम लोगों के भीतर का जमा गुस्सा मतदान पेटियों में जमा होकर सत्तारूढ़ दल के लिए एक बड़े बवंडर के तौर पर तब्दील हो रहा है। भाजपा-आरएसएस नेताओं और कार्यकर्ताओं के उत्साह में कमी और विपक्षी एकता में लगातार इजाफा हो रहा है।

शायद ही किसी ने इस बात की कल्पना की हो कि जमीन पर आम मतदाताओं के रुख और कांग्रेस पार्टी के चुनावी घोषणापत्र के आगे भारी बहुमत से जीतने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी को अपने भाषणों में 10 वर्षों के कामकाज और 2047 के विजन डॉक्यूमेंट की जगह कांग्रेस के घोषणापत्र और गारंटियों को अपने भाषणों का आधार बनाना पड़ेगा। हिंदू-मुस्लिम, मंगलसूत्र, भैंस और टेंपो में अडानी-अंबानी द्वारा नोट भर-भरकर कांग्रेस के दफ्तर में खेप पहुंचाने जैसे बचकाने बयानों के बाद जौनपुर की सभा में उन्होंने उत्तर-दक्षिण भारत विवाद तक को हवा देने की कोशिश की।

हर चरण के बाद भाजपा के लिए मुश्किलें पहले से ज्यादा

बता दें कि चार चरण के बाद दक्षिण भारत का चुनावी अभियान पूरा हो चुका है। तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के बाद चौथे चरण में आंध्र और तेलंगाना राज्य के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। अब सारा फोकस उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों सहित दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की ओर शिफ्ट हो चुका है। बनारस में हुए भव्य रोड शो में बिहार के मुख्यमंत्री को छोड़ एनडीए के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचे थे।

अब खबर आ रही है कि इतने बड़े पैमाने पर सरकारी तामझाम और पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद विभिन्न राज्यों से भाजपा के कार्यकर्ताओं की मौजूदगी ने स्थानीय मतदाताओं के मुंह का जायका बिगाड़ दिया है। इस भव्य आयोजन को इस उम्मीद से भी किया गया था, ताकि पूर्वांचल सहित यूपी से सटे बिहार के लोकसभा क्षेत्रों को भी प्रभावित किया जा सके। लेकिन इसके लिए आम मतदाताओं का मूड अगर मौजूदा सरकार के पक्ष में हो, तभी इसका सकारात्मक असर भी पड़ता, जिसके लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है।

महिला वोटरों के बीच भाजपा की लोकप्रियता में कमी

इस बार चुनाव में कम वोटिंग को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। इंडिया गठबंधन के समर्थकों का यह तर्क काफी हद तक गले उतरता है कि सरकार के खिलाफ वोट करने वाले तो वोटिंग के ले आ रहे हैं, लेकिन मोदी के 10 वर्ष के कार्यकाल से निराश उनके समर्थक इस बार वोटिंग के लिए खास उत्साहित नहीं हैं। द इंडियन एक्सप्रेस ने भी अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि इस बार महिला मतदाताओं का मत प्रतिशत गिरा है। कुछ राज्यों को छोड़ दें तो अधिकांश राज्यों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं कम मतदान के लिए आगे आई हैं। रिपोर्ट में यह भी देखा गया है कि 2019 में जिन सीटों पर भाजपा जीती थी, उन सीटों पर इंडिया गठबंधन की तुलना में कम मतदान हुआ है। तीन चरण के चुनावों पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष मतदाताओं के वोट प्रतिशत में 2.1% की गिरावट की तुलना में महिलाओं के मत प्रतिशत में 2.7% की गिरावट देखने को मिल रही है।

पिछले दो आम चुनावों में आमतौर पर देखा गया था कि महिला मतदाताओं का रुझान पीएम नरेंद्र मोदी के पक्ष में अधिक रहा है। लेकिन 2019 के बाद उत्तर प्रदेश, मणिपुर और दिल्ली में पहलवान महिला खिलाड़ियों के साथ सरकार ने जिस प्रकार की बेरुखी और महिला विरोधी रुख दिखाया है, उसने मोदी की ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ नारे की हवा निकाल दी है। उज्ज्वला गैस स्कीम के तहत जिन करोड़ों महिलाओं को लकड़ी के धुएं से निजात दिलाने की बात मोदी जी ने कही थी, 5 वर्ष में दोगुने सिलेंडर के दामों से गरीब महिला मतदाता खुद को छला महसूस कर रही हैं। इसके विपरीत, दिल्ली और कर्नाटक में महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा जैसी योजनायें आकर्षित कर रही हैं, और कांग्रेस की महिलाओं और महिला श्रमिकों के लिए किये जा रहे वादों के प्रति आकर्षण बढ़ा है।

अब उत्तर बनाम दक्षिण भारत को तूल देने की कोशिश

कल पीएम नरेंद्र मोदी जौनपुर और प्रतापगढ़ संसदीय लोकसभा के अपने प्रत्याशियों के समर्थन में जनसभा को संबोधित करते हुए कुछ नए विवादों को हवा दे गये। मोदी ने उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के मुख्य घटक दल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर हमला करते हुए कहा, “ये कांग्रेस और सपा के खेल खतरनाक हैं। ये दो शहजादे यहां पर आपसे वोट की मांग कर रहे हैं। यहां पर इन शहजादों की नीति आपसे वोट मांगने की है, जबकि दक्षिण में ये उत्तर प्रदेश के लोगों को अपमानित कराते हैं, गालियां दिलवाते हैं। उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए दक्षिण में अनाप-शनाप भाषा बोलते हैं। ये लोग सनातन धर्म को गालियां दिलवाते हैं। इनके साथी तमिलनाडु में डीएमके के लोग हों, कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस के लोग हों, ये लोग यूपी के लोगों को गालियां देते हैं। जब इनसे कहो तो सपा और कांग्रेस वाले अपने कान में रुई डाल लेते हैं। क्या इंडी गठबंधन को माफ़ कर देंगे क्या? हम यूपी के लोगों को गाली देने वालों को माफ़ कर देंगे क्या?”

इसके बाद उन्होंने भाजपा के पक्ष में वोट की अपील करते हुए कहा, साथियों विकसित भारत बनाने के लिए भाजपा को जिताना है, हमें भारत को मजबूत बनाना है। इसके बाद उन्होंने पूर्वांचली लहजे में कहा, “ई बतावा हम इहां से जीत के लिए आश्वस्त होई के जाईं ना? बोला? अरे फिर से बोला? मछलीशहर में भी कमल के फूल खिली न? बोला खिली न?इसी प्रकार प्रतापगढ़ में भी सभा को संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने जी20 की अध्यक्षता और मून मिशन की सफलता से अपनी बात शुरू कर विपक्ष के उन्हें सत्ता से हटाने की मंशा पर सवाल खड़े किये। अपने भाषण से उन्होंने यह जाहिर करने की कोशिश की कि स्थिर और मजबूत सरकार ही देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सक्षम है। उनका इशारा इंडिया गठबंधन के 27 दलों की मिलीजुली सरकार की संभावना के मद्देनजर थी। उन्होंने अपने भाषण में कहा, “5 साल में पांच पार्टी के पांच पीएम। हर साल एक नया पीएम। लूट का बराबर मौका दिया जायेगा। क्या आपको हर साल नया पीएम मंजूर है? ये देश को बर्बाद करेंगे या नहीं करेंगे?” पीएम मोदी स्वंय मान रहे हैं कि इंडिया गठबंधन बहुमत पाने के नजदीक है। ऐसे में उसके खिलाफ अस्थिर और समझौतावादी सरकार बनाने की आशंका को अगर मतदाताओं के गले उतारा जा सके तो वे भाजपा के पक्ष में वोट दे सकते हैं। यह एक बड़ा शिफ्ट है, जिसे नोट किया जाना चाहिए।

जीडीपी वृद्धि और उसका सच

देश की जीडीपी को लेकर उनके द्वारा दिया गया ज्ञान तो हैरान करने वाला था। पीएम मोदी ने प्रतापगढ़ के मतदाताओं को संबोधित करते हुए बताया, “देश आजाद हुआ तो हम दुनिया में छठे स्थान पर थे। इन लोगों ने देश को ऐसे चलाया कि हम 6वें स्थान से खिसककर 11वें स्थान पर चले गये थे। फिर आपने मोदी को मौका दिया और आज हम देश की अर्थव्यस्था को दुनिया के नंबर 5 पर ले आये हैं। लेकिन मोदी इतने से खुश होने वाला और रुकने वाला नहीं है। हमने तय किया है कि तीसरी बार सरकार में आने पर हम हिंदुस्तान को दुनिया में तीसरे नंबर की ताकत बनाकर रहेंगे। ये मोदी की गारंटी है।”

अब ये ज्ञान मोदी जी किस आधार पर फ्री में बांट रहे हैं? 1947 में जब देश आजाद हुआ था, तब देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद थी, और विश्व की जीडीपी में भारत का योगदान 3% था। 1987 के आंकड़े भारत की अर्थव्यस्था को महज 283.75 बिलियन डॉलर बताते हैं। 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी थी, भारत की अर्थव्यस्था 721.59 विलियन डॉलर की आंकी गई थी जो 2014 में बढ़कर 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी थी। इसका अर्थ है 10 वर्षों में भारत में करीब तीन गुना वृद्धि हुई थी। इसकी तुलना में मोदी राज के 10 वर्षों में यह बढ़कर 2023 में 4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंची है, जो पिछले दस वर्षों में दोगुनी हुई है। जीडीपी में भारत से आगे अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं, जिनमें जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ने के लिए भारत को 2-3 वर्ष और लगेंगे, क्योंकि दोनों देशों की विकास दर 1% के आसपास रहने वाली है। यह बात विश्व में सभी जानते हैं, इसलिए मोदी सरकार या कोई भी सरकार आये भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बनने से कोई रोक नहीं सकता है।

बड़ा सवाल है क्या भारत की बहुसंख्यक आबादी के शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दे पर पीएम मोदी अपनी चुप्पी तोड़ेंगे? प्रेस के समक्ष पिछले दस साल से कतराने वाले प्रधानमंत्री आजकल ताबड़तोड़ प्रायोजित इंटरव्यू दे रहे हैं। कल ही आजतक और इंडिया टुडे ग्रुप के चार पत्रकारों से 90 मिनट लंबी बातचीत में उनके साधारण से सवालों पर अपने मन की बात सुनाते हुए पीएम एक बार भी महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर, किसानों को दोगुनी आय के मुद्दे पर पूरी तरह से खामोश बने रहे।

2024 का चुनाव अब एक तिहाई रह गया है। 20 मई को 49 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है। भाजपा से आस लगाये करोड़ों हिंदू आस्थावान मतदाता अभी भी रोजगार, किसान और अग्निवीर के मुद्दे पर राहुल गांधी की तरह ठोस गारंटी सुनना चाहते हैं। लेकिन पिछले 10 वर्षों से देश को धर्म और विभाजनकरी नीति पर हांकने में सक्षम भाजपा के लिए 2004 के अपने चुनावी वादों को दोहराने में कितनी शर्मिंदगी महसूस हो रही है, इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है। बिग कॉर्पोरेट परस्त नीतियों से बहुसंख्यकों की रोजी-रोटी और शिक्षा-स्वास्थ्य के मुद्दों पर लौटना महज मृग-मरीचिका साबित होने जा रही है, जिसे राहुल गांधी लगातार केंद्र में रखकर 4 जून को भाजपा की विदाई से जोड़, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए संकट को बढ़ाते जा रहे हैं।